प्रदूषण से बचने के लिए मास्क लगा रहे लोग। फोटो एएनआई
जागरण संवाददाता, भागलपुर। धुंध और नमी के बढ़ते प्रभाव ने भागलपुर की हवा को बेहद प्रदूषित कर दिया है। सोमवार तक जहां शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 172 था, वहीं मंगलवार को यह उछलकर 278 पर पहुंच गया। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यही रफ्तार जारी रही, तो अगले 24 घंटों में एक्यूआई का स्तर 300 के पार जा सकता है, जो अत्यंत खतरनाक श्रेणी में आता है। शहर में सुबह के समय दृश्यता भी काफी कम बनी रही। ऐसे में सड़क हादसों की भी आशंका बनी रहती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
मौसम विभाग और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, लगातार बढ़ती नमी, ठंडी हवाओं और लंबे समय तक बने रहने वाले घने धुंध ने प्रदूषकों को जमीन के नजदीक रोक दिया है। हवा में लटके सूक्ष्म कण पीएम 2.5 और पीएम 10 तेजी से बढ़ रहे हैं। यही वजह है कि सुबह और रात के समय लोग सांस लेने में कठिनाई, सीने में जकड़न, खांसी, गले में खराश जैसे लक्षण महसूस करने लगे हैं।
एक्यूआई का पैमाना
एक्यूआइ रेंज वायु गुणवत्ता श्रेणी
0 - 50
अच्छा
51 - 100
संतोषजनक
101 - 200
मध्यम प्रदूषित
201 - 300
खराब
301 - 400
बहुत खराब
401 - 450
गंभीर
प्रदूषण को लेकर जागरुकता जरूरी
आधुनिकता के इस युग में निरंतर निर्माण कार्य जारी है, जिससे निकलने वाले धूल-कण हवा में मिलकर मानव शरीर में प्रवेश कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप सरकारी अस्पतालों में प्रदूषण के कारण बीमारियों से ग्रसित मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है।
हालांकि, जिले में प्रदूषण का स्तर इतना गंभीर नहीं है कि सांस लेना मुश्किल हो जाए, लेकिन महानगरों जैसी स्थिति से बचने के लिए पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को तेज किया गया है। इसी संदर्भ में, स्वास्थ्य विभाग ने राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस पर एक कार्यक्रम आयोजित किया है, जिसमें विशेष रूप से सरकारी अस्पतालों में आने वाले लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाएगा।
फेफड़ों की बीमारी से सबसे ज्यादा मौतें
गैर-संचारी रोग पदाधिकारी डॉ. पंकज मनस्वी ने बताया कि वायु प्रदूषण एक अदृश्य खतरा है, जो आंखों से कम दिखाई देता है, लेकिन शरीर के लिए अत्यंत घातक है। उनके अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण निम्नलिखित बीमारियों से होने वाली मौतों का प्रतिशत है:
- 25 प्रतिशत फेफड़ों के कैंसर से
- 24 प्रतिशत मस्तिष्काघात से
- 25 प्रतिशत हृदय रोग से
- 43 प्रतिशत फेफड़ों की बीमारियों से
इसके अलावा, प्रदूषण कैंसर, मधुमेह, लकवा, नसों से जुड़ी बीमारियों, आंत संबंधी समस्याओं और मोटापे का खतरा भी बढ़ाता है। राहत की बात यह है कि सरकारी अस्पताल के गैर-संचारी रोग विभाग में प्रदूषण जनित बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या अभी कम है, लेकिन अस्थमा और सांस संबंधी बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं।
जागरूकता के लिए आयोजित कार्यक्रम में जिला स्वास्थ्य समिति और एनसीडी मिलकर मॉडल सदर अस्पताल परिसर में चित्रांकन प्रतियोगिता और जागरूकता कार्यक्रम करेंगे। इस दौरान मरीजों और उनके परिजनों को प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दी जाएगी। |