भारत की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट की जीवन यात्रा (Picture Courtesy: Instagram)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आज के समय में महिलाएं वो सारे काम कर रही हैं, जिन्हें कभी सिर्फ पुरुष किया करते थे। ऐसा ही एक पेशा फोटो जर्नलिज्म का भी था। आज आपको कई महिला फोटो जर्नलिस्ट मिल जाएंगी, लेकिन एक दौर था जब इस फील्ड में महिलाएं थी ही नहीं। लेकिन भारत में ये तस्वीर होमाई व्यारावाला (Homai Vyarawalla) ने बदली। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
होमाई व्यारावाला भारत की भारत की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट होमाई व्यारावाला एक ऐसी शख्सियत थीं, जिन्होंने देश के इतिहास को अपनी तस्वीरों के जरिए जीवंत कर दिया। उन्होंने देश के आजाद होने से लेकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित होने तक के पूरे सफर को अपने कैमरे में कैद किया। आइए जानते हैं इनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों के बारे में।
जन्म और शुरुआती जीवन
होमाई व्यारावाला का जन्म 9 दिसंबर, 1913 को गुजरात में हुआ था। वह पारसी समुदाय से थीं। बचपन में उन्हें लगातार घूमते-फिरते रहना पड़ा, क्योंकि उनके पिता एक ट्रैवलिंग थिएटर ग्रुप में अभिनेता थे। उनका परिवार आखिरकार मुंबई आया, जहां होमाई ने जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से फोटोग्राफी और फाइन आर्ट्स की पढ़ाई पूरी की।
कैमरे से परिचय और \“डालडा 13\“ नाम की पहचान
कॉलेज के दिनों में ही उनकी मुलाकात फ्रीलांस फोटोग्राफर मानेकशॉ व्यारावाला से हुई, जिनसे बाद में उनकी शादी हुई। मानेकशॉ ने ही होमाई को कैमरे की दुनिया से परिचित कराया। कॉलेज में उन्हें पिकनिक की तस्वीरें खींचने का काम मिला और यहीं से उनके प्रोफेशनल करियर की शुरुआत हुई।
शुरुआत में उनकी तस्वीरें उनके पति के नाम से छपती थीं। लेकिन जल्द ही उन्होंने अपना खास पेन नेम \“डालडा 13\“ अपनाया। इसमें \“13\“ अंक उनके जन्म वर्ष 1913 को दर्शाता था। उनकी तस्वीरें आज भी इतिहास की सबसे सटीक और भावनात्मक झलक मानी जाती हैं।
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मुंबई से दिल्ली तक का सफर
होमाई व्यारावाला ने मुंबई की गलियों, लोगों और उनके रोजमर्रा के जीवन को जिस खूबसूरती से कैमरे में उतारा, उसकी वजह से उन्हें \“द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया\“ जैसी मैगजीन में जगह मिली। 1942 में, व्यारावाला दंपती दिल्ली आ गए, जहां उन्होंने ब्रिटिश इन्फॉर्मेशन सर्विस के लिए काम करना शुरू किया।
आजादी के पलों को सहेजना
होमाई व्यारावाला ने देश के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी के बाद के कई ऐतिहासिक पलों को अपने कैमरे में कैद किया। उन्होंने महात्मा गांधी के कदमों से लेकर जवाहरलाल नेहरू की मुस्कान तक, आजादी के हर लम्हे की झलक अपनी तस्वीरों में दिखाई। नेहरू, गांधी और माउंटबेटन जैसे नेताओं की दुर्लभ तस्वीरें खींचकर, उन्होंने भारत के आधुनिक इतिहास को दृश्य रूप में सहेजने का अद्भुत काम किया।
15 अगस्त 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन के वायसराय हाउस से संसद भवन तक के जुलूस की तस्वीरें भी उन्होंने ही खींची थीं। उनकी तस्वीरें आज भी फोटो जर्नलिज्म पढ़ाने वाले कॉलेजों में एक अध्याय की तरह पढ़ाई जाती हैं। 1956 में, उन्होंने बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के तिब्बत छोड़कर भारत में शरण लेने की ऐतिहासिक तस्वीर नाथू ला दर्रे पर खींची थी, जो \“लाइफ\“ मैगजीन में छपी थी।
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जीवन का आखिरी पड़ाव और सम्मान
होमाई व्यारावाला ने 1970 में अपने पति के निधन के बाद फोटोग्राफी छोड़ दी और उसी साल अपना आखिरी असाइनमेंट शूट किया। इसके बाद, वह गुजरात लौट गईं और एक सादा, शांत जीवन जिया।
2010 में, उनके काम पर मुंबई में \“अल्काजी फाउंडेशन फॉर द आर्ट्स\“ और \“नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट\“ ने एक भव्य प्रदर्शनी लगाई। इसी साल, उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से राष्ट्रीय फोटो अवॉर्ड में लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार भी मिला। 2011 में, भारत सरकार ने उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा। 15 जनवरी 2012 को 99 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
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