फर्जी तरीके से बेच दी जमीन। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता,रांची। लालपुर थाना क्षेत्र में जमीन पर कथित अवैध कब्जा और जाली दस्तावेजों के आधार पर खरीद फरोख्त का मामला सामने आया है। पीड़ित अनिल कुमार नाथ ने थाना प्रभारी लालपुर को लिखित शिकायत देकर आरोप लगाया है कि उनकी पैतृक जमीन को जमीन दलालों के एक समूह ने फर्जी कागजात तैयार कर अवैध रूप से बेच दिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पीड़ित ने मामले में शामिल व्यक्तियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की है। शिकायत के अनुसार, पीड़ित के पूर्वज गोरखनाथ के नाम से 1 एकड़ 10 डिसमिल जमीन दर्ज है।
पीड़ित के अनुसार, इस जमीन का लगभग 22 कट्ठा भाग वर्ष 1996 में जगेश्वर नाथ द्वारा शांति पाठक को विधिवत बेचा गया था। 44 कट्ठा जमीन पीड़ित अनिल कुमार नाथ तथा उनके चाचा, जो झारखंड हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति हैं, के हिस्से में आती है।
आरोप है कि सुभाष भंडारी, सष्टी भंडारी, अशोक कुमार विश्वकर्मा, रिपुंजय प्रसाद सिंह, राजीव चौधरी और राजेंद प्रसाद आपस में मिलकर एक कथित षड्यंत्र के तहत बीडीओ कोर्ट के नाम से रेंट फिक्शेशन केस नंबर 241आर8टू (वर्ष 1959–60) का फर्जी दस्तावेज तैयार किया और जिला अभिलेखागार से प्राप्त दिखाकर जमीन की खरीद फरोख्त कर दी।
पीड़ित को यह जानकारी 4 अक्टूबर को राजेश कुमार वर्मा द्वारा दी गई, जिसके बाद कागजों की जांच में उन्हें फर्जी पाया गया। पीड़ित का दावा है कि रांची में बीडीओ कोर्ट का कभी अस्तित्व ही नहीं रहा है, इसलिए उक्त दस्तावेजों का उपयोग पूरी तरह जालसाजी है।
प्रशासन ने शुरू की जांच
साथ ही न्यायिक अभिलेखों का हवाला देते हुए बताया गया कि पहले भी इसी दस्तावेज़ की जांच न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में हुई थी, जिसमें उपायुक्त तथा उपसमाहर्ता द्वारा इसे फर्जी बताया गया था। शिकायत के आधार पर पुलिस ने मामला दर्ज कर प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है।
जांच की जिम्मेदारी एसआई पंकज कुमार शर्मा को दी गई है। पुलिस का कहना है कि प्रस्तुत दस्तावेजों और आरोपों की गहन जांच की जाएगी तथा सत्यापन के बाद उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
पीड़ित ने आशंका जताई है कि संगठित जमीन दलाल गिरोह ने उनके पारिवारिक भू-स्वामित्व को धोखे से हड़पने का प्रयास किया है। इस संबंध में हाईकोर्ट के जज ने बताया कि भतीजा ने प्राथमिकी दर्ज कराई है।
जो उक्त जमीन मेरे दादा के नाम पर थी। इस जमीन पर कई फ्लैट बनकर तैयार होने की हालत में हैं। डीसी की जांच रिपोर्ट में जिस जमीन के जो दस्तावेज प्रस्तुत किए गए थे वे फर्जी हैं। जिस कोर्ट के आदेश का हवाला दिया जा रहा है वह कोर्ट उस दौरान अस्तित्व में नहीं था। |