deltin33 • 2025-12-5 07:05:58 • views 639
सुधीर बैसला, दक्षिण दिल्ली। लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास हुए आत्मघाती विस्फोट का आधार बनी धौज स्थित अल फलाह यूनिवर्सिटी में सफेदपोश आतंकियों की एंट्री टाइमलाइन से जुड़ा खुफिया ब्यूरो का आठ साल पुराना एक इनपुट राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनआइए) ने अपनी जांच में शामिल किया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
दरअसल, दिल्ली-मथुरा लोकल ट्रेन में सफर करते समय फरीदाबाद के बल्लभगढ़ रेलवे स्टेशन पर चलती ट्रेन में 22 जून 2017 को बल्लभगढ़ खंड के खंदावली गांव निवासी 16 वर्षीय जुनैद की हत्या की गई थी। यह घटना मीडिया की सुर्खियां बना था। उस वक्त खुफिया ब्यूरो (आइबी) की तरफ से हरियाणा के गृह मंत्रालय को सचेत किया गया था कि जैश ए मोहम्मद (जेम) और इंडियन मुजाहिदीन (आइएम) इस मामले को भावनात्मक रूप से अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भुनाने की सोच रहा है।
यह भी अवगत कराया कि जैश और आइएम दोनों के लोकल हैंडलर मेवात में अपना ठिकाना बनाने की सोच रहे हैं। साथ ये दोनों अपने स्लीपर सेल की फौज खड़ी करेंगे।
खुफिया सूचना पर हरियाणा के तत्काल गृहमंत्री के आदेश पर पुलिस महानिदेशक की ओर से अलर्ट जारी हुआ था। अब जब फरीदाबाद के धौज गांव स्थित अल फलाह यूनिवर्सिटी में सफेदपोश आतंकी माड्यूल का खुलासा हुआ है, तो आइबी के आठ वर्ष पुराने उपरोक्त इनपुट को महत्वपूर्ण मानते हुए खंदावली के जुनैद हत्याकांड की भी समीक्षा की जा रही है।
एजेंसियों द्वारा की जा रही जांच में जुनैद हत्याकांड के बाद सफेदपोश आतंकियों की अल फलाह यूनिवर्सिटी में अपना ठिकाना बनाने की टाइमलाइन को तैयार की गई है। टाइम लाइन से पता लगाया जा रहा है कि इस मामले से जुड़े आरोपित अल फलाह यूनिवर्सिटी में विभिन्न पदों पर आकर लगे, तो क्या उनकी मूवमेंट खंदावली गांव में थी।
यहां गौर करने लायक बात ये भी है कि आत्मघाती हमले में जिस सफेदपोश आतंकी की मौत हुई है, उसके साथ रहने वाले धौज गांव के एक युवक की खंदावली में नजदीकी रिश्तेदारी है। वही युवक आतंकी की मौत के बाद उसकी इको स्पोर्ट्स कार संख्या डीएल-10 सीके 0458 को खंदावली गांव में लेकर पहुंचा था। जांच एजेंसियां ऐसी सभी कडियों को जोडकर जांच को उस नतीजे पर ले जाना चाहती है, जिससे कि संलिप्त सभी आरोपितों को कडी सजा मिल सके।
बता दें, अल फलाह यूनिवर्सिटी की स्थापना फरीदाबाद जिले के गांव धौज में वर्ष 2015 में हुई थी। वर्ष 2017 तक इस यूनिवर्सिटी की सुरक्षा की जिम्मेदारी रिटायर्ड फौजियों के हवाले और स्थानीय डाक्टरों के सहारे ही चल रही थी। पर जुनैद हत्याकांड के करीब एक वर्ष बाद 2018 में यूनिवर्सिटी से रिटायर्ड फौजियों को धीरे धीरे हटाना शुरू कर दिया गया। लोकल स्टाफ भी कम किए जाने लगे और कश्मीर से आने वाले छात्र व अन्य स्टाफ को यूनिवर्सिटी कैंपस में तवज्जो दी जाने लगी।
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