जागरण संवाददाता, लखनऊ। अलीगंज निवासी शिवम मंगलवार को अपने घर से जरुरी काम के लिए निकले। सड़क पर वह काफी दूर तक गए। रास्ते में उन्हें अधिकांश साइन बोर्ड लगे मिले। इन साइन बोर्ड को लगाने के पीछे आशय था कि यातायात को सुगम और सुचारू रखा जाए लेकिन इनकी भाषा ऐसी है कि शिवम को भी इसे समझने में समय लग गया। ये हाल किसी एक जगह नहीं शहर के लगभग सभी इलाकों का है। हजरतगंज, वजीरगंज, महानगर जैसे तमाम इलाकों में ऐसे साइन बोर्ड लगे हैं जिन्हे लोग देखते तो हैं लेकिन उस पर लिखे शब्द आसानी से समझ में नहीं आते।
अलीगंज के ही अजीत बताते हैं कि वह अक्सर बाइक से आते-जाते हैं लेकिन सड़क किनारे लगे साइन बोर्ड ऐसे हैं जिन्हे देख कर अनदेखा करना पड़ता है। इनकी भाषा कठिन है। जो चिन्ह बने होते हैं आम जनता उसे भी जल्दी नहीं समझ पाती है। कई बोर्ड पर अंग्रेजी के अक्षर लिखे हैं इनकी वजह से समझना भी मुश्किल हो जाता है। बोर्ड से मदद नहीं मिलती उलटा असमंजस की स्थिति बन जाती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
अगर आसान भाषा का इस्तेमाल हो तो यह सबके लिए बेहतर होगा। यातायात प्रबंधन में भी काफी हद तक सहायता मिलेगी। सुल्तानपुर रोड के अर्जुनगंज निवासी रवि कहते हैं कि सरकारी कामकाज की भाषा हिंदी है। आम लोग इसे आसानी से समझ भी सकते हैं और बोलते भी हैं। बोर्ड में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा भी हिंदी ही होनी चाहिए ताकि हर आयु वर्ग के लोग इसे समझें और नियमों का पालन हो पाए।
इनके अर्थ कठिन
- हाल्ट एंड गो फार टीएसआर
- क्रास रोड
- क्रैश प्रोन जोन
- नो स्टैंडिंग
- बुलक कार्टस हैंडकार्ट्स प्रोहिबिटेड (बैलगाड़ी और हाथ गाड़ी प्रतिबंधित)
विभागों से समन्वय करेगी यातायात पुलिस
पुलिस उपायुक्त यातायात कमलेश दीक्षित ने बताया कि सड़क किनारे लगे बोर्ड लोक निर्माण विभाग, एनएचएआइ, नगर निगम की तरफ से भी लगाए जाते हैं। यातायात में कई विभाग मिलकर सहयोग करते हैं। साइन बोर्ड की भाषा आसान रहे इसके लिए सम्बंधित विभागों से समन्वय कर उनसे पत्राचार किया जा रहा है। भाषा ऐसी रखी जाएगी जो आसानी से समझ आए। |