अमित श्रीवास्तव, बलरामपुर। नवस्थापित मां पाटेश्वरी विश्वविद्यालय में विद्यार्थी सुंदरकांड और श्री हनुमान चालीसा भी पढ़ेंगे। इन्हें विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। शिक्षा के साथ-साथ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को समृद्ध करने की दिशा में यह बड़ा कदम है। सुंदरकांड और हनुमान चालीसा को शामिल करने के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व तो है ही, साथ ही 500 वर्ष के संघर्ष के बाद प्रभु श्रीराम का नव्य और भव्य मंदिर स्थापना भी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह कहते हैं कि जहां प्रभु राम होंगे वहां उनके अनन्य भक्त श्री हनुमान जी का स्मरण स्वाभाविक है। गोस्वामी तुलसीदास कृत साहित्य पहले से ही पाठ्यक्रम का हिस्सा है। हनुमानजी के समर्पण, शक्ति और चरित्र का विस्तृत वर्णन होने के कारण सुंदरकांड और हनुमान चालीसा को विशेष स्थान दिया गया है। 15 मार्च 2024 को विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया गया।
पाठ्यक्रम समिति गठित
इसके बाद पाठ्यक्रम समिति गठित की गई, जिसमें हिंदी विभाग के संयोजक प्रो. शैलेंद्र कुमार मिश्र ने सुझाव दिया कि यह विश्वविद्यालय शिक्षण के साथ ही आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना का केंद्र भी बने। पाठ्यक्रम में देवीपाटन मंडल के साहित्यकारों और यहां उपजे साहित्य को स्थान दिया गया है। सुंदरकांड और हनुमान चालीसा जैसे लोकमानस में गहराई से रचे-बसे ग्रंथों को पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय प्रधानमंत्री के सांस्कृतिक विरासत संरक्षण संबंधी भाव के अनुरूप है। देवीपाटन मंडल में गोंडा, बहराइच, बलरामपुर और श्रावस्ती शामिल हैं।
अवध क्षेत्र का हिस्सा है और यहां अवधी भाषा की समृद्ध परंपरा रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए पीजी के हिंदी पाठ्यक्रम में अवधी भाषा और साहित्य को विशेष स्थान दिया गया है। स्थानीय भाषाओं और साहित्यकारों को बढ़ावा देना इसका मुख्य उद्देश्य है।कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय ने स्थानीय साहित्यकारों के योगदान को पाठ्यक्रम में शामिल कर उन्हें योग्य सम्मान दिलाने की पहल की है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
सुंदरकांड और हनुमान चालीसा को शामिल करने के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। 500 वर्षों के संघर्ष के बाद प्रभु श्रीराम का भव्य राष्ट्र मंदिर स्थापित हुआ है। जहां प्रभु श्रीराम होंगे, वहां उनके अनन्य भक्त हनुमान जी का स्मरण स्वाभाविक है। यह निर्णय भक्तिभाव, सांस्कृतिक विरासत और साहित्यिक समृद्धि तीनों को साथ लेकर चलने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। विश्वविद्यालय का लक्ष्य है कि स्थानीय विद्यार्थियों में अपनी भाषा, परंपरा और साहित्य के प्रति गर्व और सृजनशीलता को विकसित किया जाए। |