‘आई लव मोहम्मद’ पोस्टर मामला: मुस्लिम संगठन ...

deltin55 2025-10-3 17:05:08 views 855

‘आई लव मोहम्मद’ पोस्टर विवाद, दिल्ली हाईकोर्ट में गिरफ्तारियों के खिलाफ याचिका दाखिल  

नई दिल्ली। ‘आई लव मोहम्मद’ पोस्टर प्रकरण में दर्ज एफआईआर और की गई गिरफ्तारियों का मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गया। मुस्लिम संगठनों ने हाईकोर्ट में एफआईआर और गिरफ्तारियों के खिलाफ याचिका दाखिल की है।   
भारतीय मुस्लिम छात्र संगठन और रजा अकादमी ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस याचिका में कहा गया है कि उनकी आस्था की अभिव्यक्ति को सांप्रदायिक बताकर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं और गिरफ्तारी की जा रही है, जो उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।  




याचिका में मांग की गई है कि जिन लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए हैं, उन्हें वापस लिया जाए और गिरफ्तार किए गए लोगों को तत्काल रिहा किया जाए। यह भी दलील दी गई है कि बड़े पैमाने पर मुस्लिम समुदाय के लोगों के खिलाफ जो शांतिपूर्वक अपना त्योहार मना रहे थे, उन पर दंगा करने, आपराधिक धमकी देने और शांति भंग करने का झूठा आरोप लगाकर मुकदमे दर्ज कर दिए गए।  
हाईकोर्ट में दायर याचिका के अनुसार, यह जनहित याचिका भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर की गई है। इसमें याचिकाकर्ताओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई है। ये सभी अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय से हैं और इन्हें 20 सिबंतर की एफआई में झूठे तरीके से फंसाया गया है। यह एफआईआर पुलिस स्टेशन काइसरगंज, जिला बहराइच में भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) की धारा 187 (जानबूझकर चोट पहुंचाने की सजा), 351 (आपराधिक धमकी), 187(2)/188 (दंगा/गैरकानूनी जमावड़ा) और 356 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) के तहत दर्ज की गई है।  




याचिकाकर्ता साधारण लोग हैं, जो दिहाड़ी मजदूर, छात्र और परिवार वाले हैं। उनका एकमात्र अपराध यह है कि उन्होंने पोस्टर, बैनर और शांतिपूर्ण सभाओं के माध्यम से अपने त्योहार मनाए। अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक अभिव्यक्ति के उनके अधिकार का सम्मान करने के बजाय, उन्हें बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा बिना किसी ठोस सबूत के बदनाम किया गया, निशाना बनाया गया और झूठे आरोप लगाए गए। सर्वोच्च न्यायालय ने बिजॉय इमानुएल बनाम केरल राज्य मामले (1986) 3 एससीसी 615 में कहा था कि धार्मिक आस्था के कारण राष्ट्रगान न गाने जैसे निष्क्रिय धार्मिक अभिव्यक्ति भी संविधान द्वारा संरक्षित है। इसी तरह त्योहार के हिस्से के रूप में पोस्टर और बैनर लगाने का याचिकाकर्ताओं का शांतिपूर्ण कार्य झूठी एफआईआर के माध्यम से अपराध नहीं हो सकता।  




याचिकाकर्ता ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को झूठे मामले में फंसाना न सिर्फ अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि यह अनुच्छेद 14 और 15 द्वारा गारंटीकृत भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को भी नुकसान पहुंचाता है।  







Deshbandhu Desk



Delhi High Court









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