पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक ट्रायल कोर्ट के जज पर तल्ख टिप्पणी करते हुए साफ कहा कि किसी मोबाइल एप या ऑनलाइन पोर्टल के पोप अप अलर्ट पर भरोसा कर न्यायिक आदेश नहीं दिए जा सकते। कोर्ट ने इसे न्यायिक प्रक्रिया के लिए गैर-जिम्मेदाराना और अस्वीकार्य बताते हुए कहा कि ऐसी कैजुअल निर्भरता से व्यक्तियों के अधिकार और स्वतंत्रता प्रभावित होती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऑनलाइन एप, डिजिटल पोर्टल या कानूनी ब्लॉग पर दिखने वाले छोटे नोटिफिकेशन किसी भी तरह से प्रामाणिक कानूनी स्रोत नहीं माने जा सकते। जस्टिस सुमित गोयल ने अपने आदेश में कहा कि न्यायिक आदेश केवल रिपोर्टेड जजमेंट, आधिकारिक प्रकाशन या प्रमाणित प्रतियों पर आधारित होने चाहिए।
क्या है मामला?
मामला रामजी बनाम हरियाणा के तहत दायर अग्रिम जमानत याचिका से जुड़ा था। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पाया कि कुरुक्षेत्र के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 11 जून, 2025 को जमानत खारिज करते समय एक कानूनी पोर्टल के मोबाइल एप पर आए पोप अप अलर्ट को आधार बनाया था। हाई कोर्ट ने जब इस पर स्पष्टीकरण मांगा तो जज ने स्वीकार किया कि उसने पोप अप पर आए हेडलाइन को आधार बनाया और उसका स्क्रीनशॉट भी भेजा।
\“जज ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं पढ़ा\“
हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि जज ने न तो सुप्रीम कोर्ट का पूरा आदेश पढ़ा और न ही उसकी वास्तविक मंशा को समझने की कोशिश की। जस्टिस गोयल ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया है कि यह मामला चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जाए ताकि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई पर विचार किया जा सके।
हाई कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के सभी न्यायिक अधिकारियों को ऑनलाइन सूचना और टेक्नोलॉजी के जिम्मेदार इस्तेमाल पर विशेष प्रशिक्षण देने के निर्देश दिए। |