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एम्स विशेषज्ञ ने कहा-तंज और दबाव नहीं, भावनात्मक सहारा चाहिए बच्चों को; सेंट कोलंबस घटना ने बजाई खतरे की घंटी

deltin33 2025-11-28 02:37:26 views 575

  

एम्स की इमारत (फाइल फोटो)



जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। सेंट कोलंबस स्कूल के छात्र की आत्महत्या केवल एक दुखद घटना नहीं, बल्कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर मंडरा रहे गहरे संकट की चेतावनी है। भारत में किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कई वर्षों से चिंता जताई जा रही है, लेकिन यह घटना बताती है कि हालात अब केवल चिंताजनक नहीं, बल्कि बेहद संवेदनशील हो चुके हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि हम एक ऐसी दिशा में बढ़ रहे हैं जहां स्थिति बेहद गंभीर रूप ले सकती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
अवसाद और भावनात्मक संघर्ष बढ़ रहा

मनोचिकित्सा विभाग एम्स के प्रोफेसर डाॅ. राजेश सागर कहते हैं कि यह घटना अलार्मिंग है और इसे एक सामान्य दुर्घटना की तरह नहीं देखा जा सकता क्योंकि तनाव, चिंता, अवसाद और भावनात्मक संघर्ष बच्चों में तेजी से बढ़ रहा है और ये परिस्थितियां उन्हें मानसिक रूप से कमजोर कर रही हैं।

उन्हें गलत और खतरनाक कदम उठाने को प्रेरित कर रही हैं। कहा ‘मैं इसे अभी महामारी (पेंडेमिक) नहीं कहूंगा पर, हम निश्चित रूप से उसी दिशा में बढ़ रहे हैं। क्योंकि बच्चे पहले की तुलना में कहीं अधिक दबाव झेल रहे हैं, चाहे वह पढ़ाई का हो, प्रदर्शन का हो, सामाजिक अपेक्षाओं का या डिजिटल दुनिया के प्रभाव का हो।’ डाॅ. राजेश सागर बृहस्पतिवार को एम्स में आयोजित पत्रकारवातार् को संबोधित कर रहे थे।
शिक्षकों को मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण मिलना चाहिए

डाॅ. राजेश सागर ने सलाह दी कि शिक्षकों को बच्चों के मजाक उड़ाने, तंज कसने या बच्चे को निशाना बनाने वाला व्यवहार से बचना चाहिए। ऐसा व्यवहार बच्चों में संवेदनहीनता पैदा करता है।

बच्चों के साथ सहानुभूतिपर्ण व्यवहार करने के साथ उन्हें भावनात्मक सहारा देने के लिए शिक्षकों को मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण मिलना चाहिए क्योंकि 14 वर्ष की उम्र के बच्चों के साथ गलत व्यवहार बच्चे के मन पर स्थायी नकारात्मक प्रभाव छोड़ते हैं।

बच्चों को इससे बचाने को अभिभावकों और शिक्षकों को मिलकर काम करना होगा, स्कूलों में पैरेंट-टीचर मीटिंग केवल नंबरों तक ही सीमित न रहे, वह बच्चों के आचार, विचार और व्यवहार पर केंद्रीत हो।
समस्या हो तो खुलकर बात करें

डाॅ. राजेश सागर सेंट कोलंबस की घटना को उदाहरण बनाते हुए कहा कि बच्चों को किसी भी प्रकार की मानसिक, शैक्षणिक या सामाजिक समस्या हो तो उसे अकेले झेलने की बजाय उन्हें खुलकर बात करनी चाहिए। कहा, चुप रहना सबसे खतरनाक है। क्योंकि संवाद की कमी ही अधिकतर मामलों में संकट को बढ़ाती है।

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