deltin33 • 2025-11-26 21:07:53 • views 876
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में हवा जहरीली हो गई है। सांसों पर संकट मंडराने लगा है। राजधानी काले-घने धुएं और धूल की चादर से ढकी है। AQI मीटर 500 पार कर चुका है। हर घर में खांसी और आंख में जलन के मरीज हैं। हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली सरकार ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए ग्रेप-3 लागू कर दिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
सभी सरकारी और निजी दफ्तरों को 50 फीसदी कर्मचारियों से वर्क फ्रॉम होम करने को कह दिया गया है। ऐसे में सभी के मन में एक सवाल कौंध रहा है कि कभी बीजिंग दिल्ली से ज्यादा वायु प्रदूषित शहर था तो चीन ने बीजिंग में स्मॉग और प्रदूषण को कैसे कम किया?
चीन की राजधानी बीजिंग में 2007 से एयर पॉल्यूशन शुरू हुआ तो 2011 तक पहुंचते-पहुंचते हालात दिल्ली से भी बदतर हो गए थे। शहर घने ग्रे स्मॉग से ढका रहता। PM2.5 का स्तर खतरनाक हो चुका था। 2013 में बीजिंग में एक्यूआई 755 तक दर्ज किया गया। उस साल कई रिपोर्टों में बीजिंग को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर और चीन के इतिहास में सबसे प्रदूषित साल करार दिया गया था।
दुनिया भर के मीडिया रिपोर्ट्स में बीजिंग के एयर पॉल्यूशन की चर्चा रहती। विदेशी कंपनियां निवेश करने से हिचकने लगीं। चीनी अमीर दूसरे देशों में बसने के बारे में सोचने लगे। एयर पॉल्यूशन की समस्या चीन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी का कारण बन गई थी।
तब चीन ने आक्रामक, सख्त और सुनियोजित नीतियां और योजनाएं बनाईं, जिनका ही नतीजा है कि आज बीजिंग की हवा साफ हो चुकी है। AQI लेवल 100 तक आ पहुंचा है। इसी के साथ अब बीजिंग एयर पॉल्यूशन से जूझ रहे शहरों के लिए उदाहरण बन गया है।
पहले समस्या की पहचान की; फिर रणीतियां बनाई?
चीन विकास के पथ पर चला तो जीडीपी, जनसंख्या और वाहनों की संख्या तीनों बढ़ी। देखते-देखते चीन दुनिया का सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार बन गया। तेल और कोयले की खपत तेजी से बढ़ गई। सर्दियों में भारी मात्रा में कोयला का उपयोग होता।
इन सबका असर यह हुआ कि बीजिंग की हवा जहरीली हो गई। वसंत आता तो मंगोलिया से आने वाले रेत के तूफान मुश्किलों को और बढ़ा देते थे। कोविड से बहुत पहले चीन में लोग मास्क पहनकर घूमते नजर आते थे। चीन ने जब एयर पॉल्यूशन की समस्याओं की पहचान की, तब उससे निपटने की रणनीति बनाई।
क्या थीं वो नीतियां, जिनसे साफ हुई हवा?
- चीन सरकार ने 2013 में 5 साल के लिए एयर पॉल्यूशन प्रिवेंशन एंड कंट्रोल एक्शन प्लान बनाया।
- इसमें बीजिंग-तियानजिन-हेबेई क्षेत्र के लिए PM2.5 कम करने के सख्त लक्ष्य तय किए गए।
- सरकार ने उद्योगों, ईंधन मानकों और शहर नियोजन के लिए कठोर नियम लागू किए।
- साल 2018 से ब्लू स्काई प्रोटेक्शन कैंपेन शुरू हुआ, जिसने नियमों को और कड़ा कर दिया।
एक्शन नंबर-1: उद्योगों को लेकर क्या प्लान बनाया?
- चीन की सरकार ने बीजिंग के आसपास के हजारों छोटे और अत्यधिक प्रदूषक कारखानों को या तो बंद कर दिया था या फिर दूर के प्रांतों में शिफ्ट कर दिया।
- स्टील, सीमेंट और कोयला पर चलने वाले बिजली संयंत्रों जैसे भारी उद्योगों को क्लीन एनर्जी और टेक्नोलॉजी अपनाने या फिर बीजिंग छोड़ने को मजबूर किया।
- बीजिंग ने साल 2017 में अपना आखिरी कोयला-आधारित बिजली संयंत्र भी बंद कर दिया। इसी के साथ प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर रुख किया।
फोटो- दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग की चादर। रॉयटर
एक्शन नंबर-2: वाहनों के लिए अपनाया यूरोपीय मॉडल
बीजिंग में स्मॉग बढ़ाने में गाड़ियों ने निकलने वाला धुआं एक बड़ा कारण था। इस पर लगाम लगाने के लिए चीन ने यूरोपीय मॉडल को फॉलो करते हुए सख्त उत्सर्जन नियम लागू किए।
- वाहनों के ऑड-ईवन डे का प्लान लागू किया।
- नए वाहनों को खरीदने की संख्या और समय-सीमा तय की।
- इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए प्रोत्साहन और सब्सिडी दी।
- मेट्रो लाइन और इलेक्ट्रिक बसों समेत सार्वजनिक परिवहन का विस्तार किया।
एक्शन नंबर-3: क्लीन और ग्रीन एनर्जी
- चीन ने सौर और पवन ऊर्जा में भारी निवेश किया, जिसके चलते जल्द ही दुनिया का सबसे बड़ा क्लीन-एनर्जी उत्पादक बन गया।
- बीजिंग में सर्दियों घरों में जलने वाले कोयले को गैस और इलेक्ट्रिक हीटिंग से बदला गया, जिससे प्रदूषण में कमी आई।
एक्शन नंबर-4: रियल टाइम मॉनिटरिंग, सुधार न होने पर सजा-जुर्माना
- चीन ने पूरे देश में रियल-टाइम एयर-क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम लगाए। इनका डेटा सार्वजनिक किया गया, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ी।
- पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वाले उद्योगों पर भारी जुर्माने लगाए गए। जरूरत पड़ने पर कुछ लोगों को सबक के तौर पर जेल भी भेजा।
- स्थानीय अधिकारियों के मूल्यांकन में पर्यावरण सुधार को शामिल किया गया, जिससे अफसरों को हवा स्वच्छ करने के लिए मजबूत प्रोत्साहन भी मिला।
एक्शन नंबर-5: वन और हरित क्षेत्र
- बीजिंग के आसपास बड़े-बड़े ग्रीन बेल्ट, जंगल और पार्क विकसित किए गए। इससे धूल भरी आंधियों में कमी आई और एयर क्वालिटी सुधरी।
फोटो- दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग की चादर। ANI
दिल्ली में बीजिंग जैसे कौन-से नियम तुरंत लागू किए जा सकते हैं?
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पूर्व अपर निदेशक का डॉ. दीपांकर साहा बताते हैं कि बीजिंग और दिल्ली, दो अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्र हैं। बीजिंग और दिल्ली का मौसम, सरकारी नीतियां, लोगों की आदतें और प्रशासन के काम करने का तरीका सब अलग-अलग है। चीन में तानाशाही है तो भारत में लोकतंत्र। वे शहर में एक भी अतिरिक्त गाड़ी या फिर अतिरिक्त व्यक्ति को नहीं घुसने देते हैं। भारत में ऐसा करना संभव नहीं है।
हालांकि, सर्दियों में कुछ सख्त कदम जरूरी ज़रूर लिए जा सकते हैं, जैसे-
- ठोस कचरा, निर्माण मलबा और सड़क निर्माण से जुड़ी सभी गाइडलाइनों का ठीक से पालन हो।
- धूल नियंत्रण और उत्सर्जन (emissions) पर कड़ी निगरानी की जाए।
- आगे की योजना बनाने और उपाय लागू करने के लिए मौसम पूर्वानुमान का उपयोग करें।
- पूरे क्षेत्र में एक समान नियम लागू करना।
- बेहतर जमीन उपयोग की योजना बनाने और बफर जोन में तैयारी करनी चाहिए ।
- कुछ इलाकों को वाहन-मुक्त घोषित करना।
- कचरा, टायर, पराली आदि किसी भी तरह की जलाने की गतिविधि पर पूरी तरह रोक हो।
- धूल से निपटने के लिए नदी किनारों का विकास ताकि धूल कम उठे।
- मिट्टी की ऊपरी परत (टॉप सॉइल) का बेहतर प्रबंधन किया जाए।
- सभी उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण को कम किया जाए, इसके लिए सख्ती से नियम लागू हो।
- इन सभी प्रयासों में लोगों की भागीदारी (People\“s Participation) बहुत जरूरी है।
यह भी पढ़ें- दिल्ली-NCR में फैली धुंध की मोटी चादर, सांस लेना हुआ मुश्किल; कई इलाकों में AQI \“बेहद खराब\“ श्रेणी में |
|