राम मंदिर
जागरण संवाददाता अयोध्या। भव्य-दिव्य राम मंदिर के स्वर्ण शिखर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस ध्वज का आरोहण किया उस ध्वज के साथ राम जन्मभूमि मुक्ति के लिए जीवन समर्पित करने वालों की कीर्ति भी लहराई।
वैभव, आरोह और उत्कर्ष के इस चरण का सूत्रपात होने के अवसर पर अपने अपार उद्यम और पुरुषार्थ से कभी असंभव प्रतीत होने वाले इस दिन को संभव बनाने वाले नायकों को याद करना रोमांचक और प्रेरक है।
रामचंद्रदास परमहंस को उन दिनों किशोर वय साधु के रूप में रामनगरी में धूनी रमाते अधिक दिन नहीं हुए थे।रामानंदीयरामानुरागी साधु थे, तो आराध्य की जन्मभूमि पर मौका मिलने पर जाना एवं आस्था अर्पित करना दिनचर्या में शामिल हो गया और आस्था की डोर बंधी, तो दिन ब दिन मजबूत होती गई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
1934 में राम जन्मभूमि पर अधिकार को लेकर हुए संघर्ष को उन्होंने बहुत करीब से देखा और स्वयं को भी इस संघर्ष से विलग नहीं रख सके। डेढ़ दशक बाद परमहंस राम जन्मभूमि मुक्ति के केंद्र में प्रतिष्ठित होने लगे। 22-23 दिसंबर 1949 को रामलला के प्राकट्य प्रसंग में उनकी अहम भूमिका थी।
इसके बाद यदि एक पक्ष राम जन्मभूमि को बाबरी मस्जिद की भूमि बता कर वहां से रामलला को हटाए जाने की मांग पर अड़ा था, तो परमहंस ने इस स्थल को प्रशासनिक रिसीवर से मुक्त करा राम भक्तों को सौंपने के लिए पांच दिसंबर 1950 को सिविल जज के यहां मुकदमा दर्ज कराया।
इसके बाद के साढ़े तीन दशक तक परमहंस राम जन्मभूमि मुक्ति के अभियान की आवाज बन कर स्थापित रहे। 1984 में राम जन्मभूमि मुक्ति के न्यायालय केंद्रित अभियान को विहिप ने व्यापक आंदोलन का स्वरूप देने का प्रयास किया और इस प्रयास में भी परमहंस केंद्रीय नायक के तौर पर स्थापित हुए। उन्होंने राम मंदिर के लिए दो बार प्राण त्यागने की घोषणा कर स्वयं को दांव पर लगाने तक से भी परहेज नहीं किया। ॉ
मंदिर आंदोलन के बेजोड़ प्रवक्ता, अपने स्वभाव और ढंग से मोहकता की छाप छोड़ने वाले संत, तीर्थ क्षेत्र के गठन से पूर्व राम मंदिर से संबंधित राम भक्तों की सर्वोच्च इकाई राम जन्मभूमि न्यास के सवा दशक तक अध्यक्ष, अनेक मोर्चों पर मंदिर आंदोलन के क्षितिज पर नेतृत्व की छाप छोड़ने वाले परमहंस 2003 में ब्रह्मलीन होने तक आंदोलन का चेहरा बने रहे।
अशोक सिंहल
मंदिर के प्रधानतम शिल्पी सिंहल अशोक सिंहल को मंदिर आंदोलन का प्रधानतम शिल्पी कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा। यद्यपि वह संघ की योजना के अनुरूप मंदिर आंदोलन को प्रभावी बनाने की कमान संभालने आए थे, लंबे समय तक यह आंदोलन अशोक सिंहल का प्रतीत होता रहा। संघ का कोई स्वयंसेवक नेतृत्व के अनुरूप किसी अभियान को कितना सफल कर सकता है, अशोक सिंहल इसके सबसे बड़े उदाहरण रहे। वह संगठनकर्ता और वक्ता के भी रूप में प्रभावी रहे और मंदिर आंदोलन के राष्ट्रीय दूत की भी भूमिका का सफल निर्वहन करते रहे।
महंत अवेद्यनाथ
गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ अति प्रतिष्ठित धर्माचार्य थे। उन्हें गुरु गोरखनाथ से जुड़ी आस्था के शीर्षस्थ केंद्र सहित महंत दिग्विजयनाथ जैसे हिंदुत्व के हाई प्रोफाइल धर्माचार्य का उत्तराधिकार मिला था। मंदिर आंदोलन के प्रति पूरे देश के धर्माचार्यों को प्रेरित करने में उनकी अहम भूमिका रही। प्रभावी और ताकतवर होते हुए भी वे पूरे अनुशासन और सामूहिकता की भावना से मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करते रहे और उनका मठ आंदोलन में सहयोग के प्रति सदैव तत्पर रहा। माना जाता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर गुरु दिग्विजयनाथ और गुरु अवेद्यनाथ से ही प्रेरित हो हिंदुत्व को नया शिखर प्रदान कर रहे हैं।
आचार्य सत्येंद्रदास
आचार्य सत्येंद्रदास नेतृत्व करने वाले नायकों की त्रिमूर्ति एक-एक कर अनंत पथ पर चली गई, किंतु नौ नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से उसकी साध साकार हुई। उन्होंने जिस यत्न से इस आंदोलन को शिखर का स्पर्श दिया था, उसी यत्न और भाव से कुछ लोगों ने इसे लक्ष्य तक पहुंचाने में नेतृत्व दिया। छह दिसंबर 1992 के पूर्व से ही रामलला के अर्चक रहे आचार्य सत्येंद्र दास का इसी वर्ष फरवरी में साकेतवास हुआ। उन्होंने रामलला की सेवा-पूजा में 34 वर्ष व्यतीत किए और भावनात्मक तल पर वह रामलला के संरक्षक भी रहे, उन्होंने रामलला के प्रति सेवा-संवेदना की मिसाल पेश की।
बिमलेंद्रमोहन मिश्र
अयोध्या राज परिवार के संवेदनशील मुखिया बिमलेंद्रमोहन मिश्र भी इसी दौर में रामलला के संयत एवं प्रिय प्रतिनिधि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। बिना श्रेय लिए रामलला और राम मंदिर की प्रतिष्ठा के प्रति वह बराबर समर्पित रहे। इस अभियान के प्रति उन्होंने स्वयं के साथ राजसदन के भी संपूर्ण प्रकल्प को समर्पित किया। कुछ माह पूर्व ही उनके देहांत से उपजी शून्यता राम भक्तों के बीच आज भी कायम है।
कामेश्वर चौपाल
यह शृंखला कामेश्वर चौपाल के बिना पूरी नहीं होती। आरएसएस की पृष्ठभूमि के चौपाल तब वंचित वर्ग के पढ़े-लिखे युवा के तौर पर जाने जाते थे, जब मंदिर आंदोलन से उनका जुड़ाव हुआ और साढ़े तीन दशक पूर्व राम मंदिर के शिलान्यास की पहली ईंट रख कर संदेश दिया कि श्रीराम और राम मंदिर वंचित वर्ग की आस्था के भी केंद्र हैं। 2020 में तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन में भी उन्हें याद किया गया और ट्रस्ट का सदस्य बनाया गया। इसी वर्ष सात फरवरी को वह दिवंगत भले हो गये लेकिन मंदिर आंदोलन के मंच पर वह समरसता के अग्रणी दूत माने जाते रहेंगे। |