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मुद्दा छात्रों का, कब्जा नेताओं और संगठनों का, PU के सीनेट विवाद पर बढ़ी राजनीतिक सक्रियता, वजह पंजाब के विधानसभा चुनाव

LHC0088 2025-11-20 17:07:48 views 953

  

पीयू बचाओ मोर्चा का समर्थन करने के लिए नेतागण लगातार कैंपस पहुंच रहे।  



जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। पंजाब यूनिवर्सिटी में सीनेट चुनाव को लेकर उठे विवाद ने अब राजनीतिक रंग अख्तियार कर लिया है। मुद्दा भले ही छात्रों का हो, पर अखाड़ा पूरी तरह राजनीति का बनता दिख रहा है। बीते 20 दिनों से पीयू बचाओ मोर्चा का समर्थन करने के लिए कांग्रेस, आप और अकाली दल समेत कई किसान व सामाजिक संगठनों के नेता लगातार कैंपस पहुंच रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि छात्रों के मुद्दों पर दूसरी संस्थाओं और राजनीतिक दलों की इतनी गहरी दखल आखिर क्यों। पीयू में चल रहे सीनेट विवाद के बीच राजनीतिक दलों की सक्रियता सामान्य नहीं मानी जा रही। पंजाब विधानसभा चुनाव 2027 को ध्यान में रखते हुए दल युवा मतदाता वर्ग को साधने की कोशिश में जुट गए हैं।

पीयू में पढ़ने वाले लगभग 60 प्रतिशत छात्र पंजाब से हैं, जो भविष्य के चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। यही वजह है कि सीनेट चुनाव की अधिसूचना में देरी से उपजे असंतोष को राजनीतिक मंच में बदलने की कवायद तेज हो गई है। मोर्चा स्थल पर नेताओं की रोजाना मौजूदगी इसका सीधा प्रमाण है।
20 दिनों में गई दिग्गज पीयू में चमका चुके राजनीति

पिछले 20 दिनों में विभिन्न दलों के 20 से अधिक दिग्गज नेता यहां पहुंच चुके हैं, जबकि हर दिन आठ से दस नए प्रतिनिधियों के आने का सिलसिला जारी है। यूनिवर्सिटी परिसर में अब छात्रों से अधिक प्रदर्शनकारी और राजनीतिक चेहरे दिखाई देने लगे हैं। इससे यह सवाल उठ रहा है कि छात्रों की वास्तविक चिंताएं कहीं राजनीतिक प्रचार का साधन तो नहीं बन रहीं।  
पंजाब के युवाओं का साधने का प्रयास

राजनीतिक दलों के रणनीतिकारों को भी महसूस है कि पंजाब के आगामी चुनाव में युवाओं की भूमिका निर्णायक होगी। इसी कारण पीयू छात्रसंघ चुनावों में पहले से सक्रिय दल अब सीनेट विवाद को संभावित ‘मुद्दा’ मानकर अपनी मौजूदगी मजबूत कर रहे हैं। दूसरी ओर छात्र संगठन इस राजनीतिक हस्तक्षेप से नाराज़ भी हैं, हालांकि मोर्चा नेतृत्व इसे समर्थन बता कर आगे बढ़ रहा है।

कुल मिलाकर, सीनेट विवाद ने छात्रों की मांगों से अधिक राजनीतिक महत्व हासिल कर लिया है। सवाल यह है कि क्या छात्र हितों की आड़ में राजनीतिक दल अपने चुनावी एजेंडे को मजबूत कर रहे हैं, या वाकई विश्वविद्यालय के मौजूदा संकट को हल करने का प्रयास है।
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