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गजब! मकान का पता नहीं, बैनामा कराने पहुंच गए नकली खरीदार और विक्रेता

cy520520 2025-11-16 03:07:22 views 459
  



जागरण संवाददाता, फिरोजाबाद। फर्जी तरीके से बैंक लोन लेने वाले गिरोह का पर्दाफाश हुआ है। गिरोह के चार सदस्य एक मकान को खरीदने और बेचने सदर तहसील के उप निबंधक प्रथम कार्यालय में शनिवार सुबह 11.30 बजे पहुंचे थे। जबकि वास्तविकता में न विक्रेता के पास कोई मकान था और न खरीदार उसे खरीद रहे थे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

एक फर्जी बैनामा के दम पर उनकी दूसरा बैनामा करने की तैयारी थी, जिससे बैंक से लोन लिया जा सके। इसके लिए स्टांप से लेकर वारिसान प्रमाण पत्र तक फर्जी बनाया गया था। उप निबंधक की सूचना पर पहुंची पुलिस ने महिला सहित चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया।

नगला भाऊ स्थित तहसील परिसर में बने उप निबंधक कार्यालय में गालिब नगर गली नंबर एक निवासी नूर इस्लाम खरीदार के रूप में हाजीपुरा स्थित मकान का बैनामा करने आया था। उसने उप निबंधक प्रथम जंग बहादुर शुक्ल के सामने 75.25 वर्गमीटर मकान उसके पक्ष में बेचने के लिए शादमा और उसके बेटे शाकेव खान निवासी हाजीपुरा की ओर से बैनामा प्रस्तुत किया गया। इसके साथ 2.80 लाख रुपये का ई-स्टांप लगाया था। स्टांप देखकर उप निबंधक को शक हुआ।

उन्होंने वेबसाइट की पर चेक किया तो स्टांप मात्र 2800 रुपये का निकला। उसे काटकर 2.80 लाख किए गए थे। इसके बाद उन्होंने बैनामे की जांच की तो वह भी फर्जी पाया गया। 17 जुलाई 2003 में कोषागार से जारी स्टांप पेपर, उन पर लगी कोषागार की मुहर और हस्ताक्षर भी फर्जी थे।

इसके बाद उप निबंधक ने दक्षिण पुलिस को सूचना दी तो पुलिस इन तीनों के साथ गवाह प्रदीप कुमार निवासी जाफराबाद, शिकोहाबाद को पकड़ कर थाने ले गई। दूसरा गवाह मोहर सिंह निवासी आंबेडकर पार्क, सैलई भाग गया। इस घटना से काफी देर तक तहसील में अफरातफरी मची रही। उप निबंधक ने बताया कि शाकेब ने मई-2024 में एडीएम के हस्ताक्षर से जारी वारिसान प्रमाण पत्र लगाया था।

जांच में वह भी फर्जी निकला। नगर निगम द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण पत्र भी फर्जी लग रहा है। उसकी जांच कराई जा रही है। इस मामले में क्रेता, विक्रेता और गवाहों के आधार कार्ड, पेन कार्ड भी फर्जी पाए गए हैं। बैंककर्मियों की संलिप्तता से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

इंस्पेक्टर दक्षिण योगेंद्र पाल सिंह ने बताया कि उप निबंधक की तहरीर पर पांच लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई है। रविवार को इन्हें जेल भेजा जाएगा। गिरोह में शामिल अन्य लोगों का पता किया जा रहा है।
इस तरह होता है खेल

गिरोह के सदस्य अपने परिचितों द्वारा मकान, दुकान के बैनामे की जानकारी जुटाते हैं। इसके बाद उससे संबंधित फर्जी बैनामा तैयार कर उसे खरीदा और बेचा जाता है। नया बैनामा हाथ आते ही उसे बैंक में लगाकर लोन लेते हैं। प्राइवेट बैंक के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत भी इसमें होती है। जिससे वह मौके पर जांच करने नहीं जाते। बाद में लोन लेने वाले किसी को मिलते नहीं है। इस प्रकरण में 22.58 लाख की सर्किल रेट वाले मकान की खरीद 40 लाख रुपये दर्शाई गई थी।
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