बिहार में तीन चेहरों ने बिगाड़ा महागठबंधन का खेल?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जनता ने एनडीए को भारी बहुमत देकर ऐतिहासिक जीत झोली में डाली है। गठबंधन को 202 सीटें मिलीं, जबकि महागठबंधन (एमजीबी) को केवल 35 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। ये नतीजे दोनों ही धड़ों के लिए चौंकाने वाले हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
नतीजों पर आश्चर्य जताते हुए कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा, \“ये नतीजे हम सभी के अविश्वसनीय हैं। न केवल कांग्रेस, बल्कि बिहार की जनता और हमारे गठबंधन सहयोगी भी इस पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। किसी पार्टी के लिए 90% स्ट्राइक रेट - ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। हम गहन विश्लेषण कर रहे हैं और पूरे बिहार से डेटा एकत्र कर रहे हैं।\“
छोटी पार्टियों का बड़ा धमाल
हालांकि, मुख्य आंकड़ों से परे कहानी का एक बड़ा हिस्सा छोटी पार्टियों की भूमिका और जीत के अंतर पर उनके प्रभाव को दिखा रहा है।
जन सुराज पार्टी का प्रभाव- यह चुनाव इसलिए भी खास था क्योंकि राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की स्थापित जन सुराज पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़ा था। पार्टी गठन के बाद से ही वह पूरे बिहार की यात्रा कर रहे थे।
हालांकि, उनकी पार्टी ने एक भी सीट नहीं जीत पाई लेकिन इसके बावजूद, पार्टी को कुल वोट शेयर का 3.4% हिस्सा मिला, जिससे वह बिहार की राजनीति में एक संभावित उथल-पुथल मचाने वाली पार्टी बनकर उभरी। जन सुराज पार्टी भले ही खाता खोलने में नाकाम रही, लेकिन दोनों गठबंधनों के लिए \“वोट-कटवा\“ साबित हुई।
जन सुराज पार्टी ने जिन 238 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से एक पर वह दूसरे, 129 पर तीसरे, 73 पर चौथे, 24 पर पांचवें तथा 12 सीटों पर छठे और नौवें स्थान के बीच रही। प्रशांत किशोर की पार्टी ने एनडीए और महागठबंधन दोनों को ही नुकसान पहुंचाया। 33 निर्वाचन क्षेत्रों में जन सुराज का वोट शेयर जीत के अंतर से ज्यादा था। इन 33 में से एनडीए ने 18 और महागठबंधन ने 13 सीटें जीतीं।
बसपा ने क्या किया?- मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 181 सीटों पर चुनाव लड़ा, एक सीट जीती और एक पर दूसरे स्थान पर रही। आईएनडीआईए गठबंधन के दल वर्षों से बसपा पर भाजपा की \“बी-टीम\“ के रूप में काम करने का आरोप लगाते रहे हैं और उत्तर प्रदेश विधानसभा और लोकसभा चुनावों के बाद ये आरोप और भी तेज हो गए।
बिहार के नतीजे बताते हैं कि बसपा ने एनडीए से ज्यादा महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया। 20 सीटों पर बसपा को जीत के अंतर से ज्यादा वोट मिले। इनमें से 18 सीटें एनडीए ने और केवल दो सीटें महागठबंधन ने जीतीं, यानी 90% मामलों में इसकी मौजूदगी एनडीए के लिए फायदेमंद रही।
ओवैसी फैक्टर- असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने बिहार में अच्छा प्रदर्शन किया और पांच सीटें जीतीं, जो 2020 के प्रदर्शन के बराबर है और एक पर दूसरे स्थान पर रही। इसने नौ निर्वाचन क्षेत्रों में भी नतीजों को प्रभावित किया और जीत के अंतर से ज्यादा वोट हासिल किए। इनमें से 67% सीटें एनडीए ने और 33% सीटें महागठबंधन ने जीतीं।
त्रिकोणीय मुकाबला महागठबंधन पर पड़ा भारी
- महागठबंधन और खासकर उसके मुख्य घटक दलों, राजद और कांग्रेस के लिए बिहार में सबसे खराब चुनावी प्रदर्शनों में से एक रहा है। चुनाव परिणामों से पता चलता है कि त्रिकोणीय मुकाबला एनडीए के पक्ष में रहा।
- राजद को 23.4% वोट मिले, लेकिन वह केवल 25 सीटों पर ही विजयी रही, जबकि भाजपा (20.4%) और जदयू (19.6%) ने अलग-अलग तीन गुना से भी ज्यादा सीटें जीतीं। इससे पता चलता है कि एनडीए ने अपने वोट आधार को सफलतापूर्वक मजबूत किया, जबकि विपक्षी वोट बिखर गए।
- आंकड़े बताते हैं कि 243 निर्वाचन क्षेत्रों में से 63 पर जन सुराज, बसपा और एआईएमआईएम का सीधा प्रभाव था। इन सीटों पर उनका संयुक्त वोट शेयर जीत के अंतर से ज्यादा था। इनमें से एनडीए ने 44 (लगभग 70%) सीटें जीतीं, जबकि महागठबंधन ने 19 सीटें जीतीं।
- परंपरागत रूप से महागठबंधन एनडीए-विरोधी वोट बैंक पर निर्भर करता है। लेकिन इस चुनाव में तीन-तरफा विखंडन देखने को मिला।
- बसपा ने दलित वोटों को अपनी ओर खींचा, एआईएमआईएम ने मुस्लिम वोटों को अपनी ओर और जन सुराज ने युवा और विकासोन्मुख मतदाताओं को आकर्षित किया। विपक्षी वोटों में इस विभाजन ने एनडीए को कड़े मुकाबलों को निर्णायक जीत में बदलने में मदद की।
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