विधानसभा चुनाव में कोई भी निर्दलीय प्रत्याशी नहीं जीता
कुमार रजत, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार उन्हीं को जीत नसीब हुई है, जिनके पास पार्टी का सिंबल था। बिना किसी राजनीतिक दल के मैदान में उतरे एक भी निर्दलीय इस बार चुनाव नहीं जीत सके हैं। झारखंड बंटवारे के बाद पिछले ढाई दशकों में यह पहली बार है जब विधानसभा चुनाव में कोई भी निर्दलीय प्रत्याशी नहीं जीता है। यह लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की बढ़ती ताकत और स्वीकार्यता का भी प्रमाण है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशियों की घटती पूछ कोई एक दिन की बात नहीं है। पिछले ढाई दशकों से चुनाव दर चुनाव निर्दलीय की स्वीकार्यता लगातार घटती जा रही है।
इसी बिहार में फरवरी, 2005 के विधानसभा चुनाव में जनता ने 17 निर्दलीय विधायकों को सदन भेजा था। इसके छह माह बाद ही हुए अक्टूबर, 2005 के चुनाव में यह आंकड़ा घटकर दस रहा गया।
इसके बाद 2010 के चुनाव में छह, 2015 के चुनाव में चार और 2020 के पिछले चुनाव में महज एक निर्दलीय उम्मीदवार ही जीत सका।
इस बार संख्या शून्य रह गई है। एक रोचक संयोग यह भी है कि पिछले विधानसभा चुनाव में चकाई से निर्दलीय जीते सुमित कुमार सिंह इस बार जदयू के टिकट पर लड़कर भी हार गए।
कुशेश्वरस्थान, मोहनिया, परिहार और सिकटा में रहे मुकाबले में
इस बार के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों को पहला स्थान तो नहीं ही मिला, दूसरा स्थान भी महज चार निर्दलीयों को नसीब हुआ।
कुशेश्वरस्थान में गणेश भारती, मोहनिया में रविशंकर पासवान, परिहार में रितु जायसवाल और सिकटा में खुर्शीद फिरोज अहमद दूसरे स्थान पर रहे।
हालांकि इन सभी के जीत का अंतर 17 से 47 हजार के बीच रहा। यानी जीत से इनकी दूरी बड़ी थी। पिछले विधानसभा चुनाव में दस निर्दलीय दूसरे स्थान पर रहे थे।
इस तरह घट रही निर्दलीयों की पूछ
| वर्ष | जीते | दूसरा स्थान | | 2025 | 00 | 04 | | 2020 | 01 | 10 | | 2015 | 04 | 05 | | 2010 | 06 | 09 | | 2005(अक्टूबर) | 10 | 07 | | 2005 (फरवरी) | 17 | 16 |
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