सर्दियों में गंगा में नौकायन करने वाले पर्यटकों को एक विशेष अनुभव प्राप्त होता है।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। सर्दी की शुरुआत होते ही गंगा की लहरों पर प्रवासी परिंदों की परवाज दिखाई देने लगी है। पक्षियों की चहचहाहट से गंगा की लहरें और भी जीवंत हो उठी हैं। सर्दियों में गंगा में नौकायन करने वाले पर्यटकों को एक विशेष अनुभव प्राप्त होता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इस मौसम में नौकायन करने वाले पर्यटक परिंदों के साथ सेल्फी लेने का आनंद लेते हैं। कुछ भाग्यशाली पर्यटकों को अपने हाथों से इन प्रवासी परिंदों को दाना खिलाने का अवसर भी मिलता है। स्थानीय लोगों के अनुसार, साइबेरिया से आने वाले ये सीगल वहां की जमी हुई बर्फ से बचने के लिए सर्दियों में गंगा में निवास करते हैं।
वाराणसी और आसपास के गंगेय क्षेत्र में सीगल की बड़ी संख्या इस बात का प्रतीक है कि पूर्वांचल की गंगा की धरती इन परिंदों के लिए अत्यधिक उपयुक्त है। सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करके आने के बाद उनका प्रवास स्थानीय पर्यटन को एक नई संजीवनी प्रदान करता है।
साइबेरियन पक्षी हर साल मध्य एशिया, पाकिस्तान और भारत के उत्तरी हिस्सों से होते हुए वाराणसी तक पहुंचते हैं। इसके लिए वे लगभग 5000 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। यहां मां गंगा के आंचल में वे पूरी सर्दी बिताते हैं। प्रकृति का यह अद्भुत चमत्कार पर्यटकों को आश्चर्यचकित कर देता है।
फरवरी तक इन पक्षियों का भारतीय उपमहाद्वीप में आने का सिलसिला जारी रहता है। यह यात्रा साइबेरियन पक्षियों के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है। इस दौरान वे न केवल लंबी दूरी तय करते हैं, बल्कि कई जोखिमों और बाधाओं का सामना भी करते हैं।
गंगा के किनारे प्रवासी परिंदों की उपस्थिति न केवल प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाती है, बल्कि पर्यटकों के लिए एक अद्वितीय अनुभव भी प्रदान करती है। पर्यटक जब इन परिंदों को अपने करीब पाते हैं, तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता। यह दृश्य न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि दूर-दूर से आए पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन जाता है।
सर्दियों में गंगा का यह अद्भुत नजारा न केवल पर्यटकों को आकर्षित करता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करता है। गंगा की लहरों पर उड़ते ये प्रवासी परिंदे, सर्दियों की ठंड में जीवन का एक नया रंग भरते हैं। वाराणसी की गंगा में इनकी उपस्थिति, प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी और संरक्षण की आवश्यकता को भी दर्शाती है। |