सिर पर घड़ा लेकर झिझिया नृत्य करतीं लड़कियां। जागरण
संवाद सहयोगी, केवटी (दरभंगा)। बुरी नजर से बचाव को किए जाने वाले मिथिलांचल के लोकनृत्य झिझिया को उपेक्षा की नजर लग गई है। कभी हर घर में इसकी कलाकार होती थीं। अब तो इनकी संख्या सिमट गई है। अच्छी बात यह है कि इस कला को बचाने के लिए काम हो रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
निशुल्क प्रशिक्षण के साथ प्रोत्साहन दिया जा रहा है। नवरात्रि, सरस्वती पूजा, जन्माष्टमी, रामनवमी सहित अन्य उत्सवों में झिझिया नृत्य की प्रस्तुति मिथिला की परंपरा रही है। इसमें पांच से नौ लड़कियां या महिलाएं समूह में नृत्य करती हैं।
इनके सिर पर सैकड़ों छिद्र वाला मिट्टी का घड़ा होता है, जिसमें जलता हुआ दीपक रहता है। कलाकार गोल घेरा बनाती हैं। बीच में मुख्य नर्तकी होती हैं। झिझिया करती यह कलाकार अपने आराध्य से समाज में व्याप्त कलुषित मानसिकता की शिकायत करती हैं।
गीत के माध्यम से समाज में व्याप्त कुविचारों को अलग-अलग नाम देकर उसे समाप्त करने की प्रार्थना करती हैं। झिझिया के दौरान पुरुष हारमोनियम, ढोलक, खजुरी, बांसुरी व शहनाई का वादन करते हैं।
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वहीं युवतियां “तोहरे भरोसे ब्रह्म बाबा झिझरी बनैलिये हो“ गाती हैं तो मन झूम उठता है। नृत्य के दौरान वे बुरी नजर से बचाव के लिए इष्टदेव ब्रह्म बाबा और माता भगवती से प्रार्थना करती हैं।
सरकारी पहल से मिलेगी पहचान
केवटी प्रखंड की पिंडारूच, गोपालपुर, लाधा, चंडी, कोठिया आदि गांव में 50-60 प्रशिक्षणार्थी विद्यार्थी (कलाकार) हैं जो सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यक्रमों में प्रस्तुति देती हैं। इससे सालाना करीब पचास हजार तक की आमदनी हो जाती थी। अब यह सिमट कर दस-पंद्रह हजार तक आकर सिमट गई है।
प्रशिक्षक दिव्य नाथ महाराज निराला ने बताया कि झिझिया सहित अन्य लोक नृत्य का प्रशिक्षण तो दिया जाता है, लेकिन कम ही लड़कियां आती हैं। मैथिली फिल्म अभिनेता पिंडारूच गांव निवासी नवीन चौधरी ने बताया कि भरत नाट्य, कथक जैसे नृत्य को जो पहचान मिली, वह झिझिया को नहीं मिल सकी।
इसके लिए राज्य सरकार की ओर से पहल करने की जरूरत है। इसमें कलाकार करियर बनाएं, इसके लिए काम होना चाहिए।
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