नगर पालिका परिषद एटा की तस्वीर। जागरण
जागरण संवाददाता, एटा। प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना का सत्यापन करने वालों से भी चूक हुई। समय रहते अगर टीमें पहुंचीं होंती और सही निगरानी की जाती तो मामला पहले ही पकड़ में आ सकता था। पिछले वित्तीय वर्ष में यह आवेदन किए गए थे। जिन लोगों ने आवेदन किए उनके बारे में फीडबैक ठीक तरह नहीं जुटाया गया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
शहरी आवास याेजना में नगर निकायों द्वारा सत्यापन किया जाता है। निकाय जो संस्तुती करते हैं उसके आधार पर डूडा विभाग कार्रवाई आगे बढ़ाता है। नगर पालिका की भी कहीं न कहीं चूक रही है। सत्यापन में गोलमाल कर दिया। अभिलेख देखे बिना आवेदन स्वीकृत कर दिए।
आवेदनकर्ताओं का सही फीडबैक नहीं जुटाया
आवेदन कर्ताओं का सही फीडबैक नहीं जुटाया गया। आवेदन करने के बाद आवेदकों की स्थिति का आकलन नहीं किया गया। सबसे बड़ी चूक यह हुई कि जिन आवेदकों ने आवेदन किए नियमानुसार यह देखा जाना चाहिए था कि उनके पास मकान बनाने के लिए अर्द्धनिर्मित मकान है अथवा नहीं। अगर जगह नहीं है तो वे पात्रता की श्रेणी में नहीं आ सकते। यह नियम है कि आवेदक अपनी जगह पर ही मकान बना सकता है।
सरकार से दिया जाने वाला पैसा प्लाट खरीदने के लिए नहीं है। आपके पास अपनी जगह है तो ही किस्तों में पैसा लेकर कमरे बना सकते हैं। 50 हजार रुपये की किस्त मिलने के बाद कितना मकान बनवाया इसके साक्ष्य डूडा विभाग को देने होते हैं, तब दूसरी किस्त आवंटित की जाती है।
पीओ डूडा सुभाष वीर सिंह का कहना है कि मामला संज्ञान में आते ही कार्रवाई शुरू करा दी है। पहले हमारी कोशिश है कि जो पैसा लाभार्थियों के पास पहुंचा है उसकी वसूली हो जाए।
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घपले की आशंका
शहरी पीएम आवास योजना में बड़े घोटाले की आशंका है। आवेदनकर्ताओं से आवेदन ले लिए गए, उनसे जगह के कागजात नहीं मांगे गए। यह देखा ही नहीं गया कि जिस जगह पर आवेदक आवास बनाने के लिए आवेदन कर रहा है वह जगह उसकी है या नहीं। उसके नाम अभिलेख हैं या नहीं। आशंका इस बात की बनी हुई है कि सत्यापन करने वाली टीमों को सब कुछ जानकारी थी। सांठ-गांठ करके लाभ दिला दिया गया। यह भी आशंका है कि कमीशनखोरी भी की गई। हालांकि यह सब जांच के विषय हैं।
आरसी निकालकर लीपापोती
डूडा विभाग अब आरसी जारी करवाकर वसूली के लिए लीपापोती कर रहा है। लेकिन इस ओर अभी तक किसी भी अधिकारी ने इस मामले में पहल नहीं की कि सत्यापन किन टीमों ने किया। कौन कर्मचारी टीमों में शामिल थे। किस अधिकारी ने अंतिम मुहर लगाई। यह ऐसे सवाल हैं जिनको लेकर अगर निष्पक्ष जांच हो जाए तो एक नहीं कई कर्मचारी, अधिकारी कठघरे में खड़े हो सकते हैं, लेकिन मामला दबा हुआ है और ऊपर से ही खानापूर्ति की जा रही है।
जांच कराने तक की जहमत नहीं उठाई
बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का खेल चलता रहा। कर्मचारी मनमानी करते रहे, लेकिन जिले के किसी भी आला अफसर ने मामले की जांच कराने की जहमत नहीं उठाई, जबकि एक नहीं बल्कि आधा दर्जन से अधिक डूडा विभाग के अधिकारी इस मामले में सीधे जिम्मेदार जांच के दौरान ठहराए जा सकते हैं। यह भी तय हो सकता है कि अंतिम जिम्मेदारी किसकी है।
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