इस चुनाव में लॉन्च होंगे कई दल, परिणाम से तय होगी दिशा-दशा
रमण शुक्ला, पटना। क्षेत्रीय-स्थानीय समीकरण के अलावा राजनीतिक व्यस्तता भी एक कारण है, जो कई दिग्गज विधानसभा चुनाव में दांव आजमाने के बजाय उच्च सदन (विधान परिषद) के रास्ते अपनी राजनीति को गति दिए हुए हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जो अपने क्षेत्र में मुंह की खाने के बाद दोबारा मैदान में उतरने का साहस नहीं जुटा पाए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष राबड़ी देवी और विपक्ष के मुख्य सचेतक अब्दुल बारी सिद्दीकी इसी श्रेणी में हैं। कुछ ऐसे भी दिग्गज हैं, जो विधायक बनने का मोह छोड़कर विधान परिषद के लिए निर्धारित स्नातक, शिक्षक, स्थानीय प्राधिकार कोटे की सीट से विधान पार्षद बन गए।
हालांकि, अब विधायक और विधान पार्षद के नाम का अंतर भी समाप्त ही हो गया है। वेतन-भत्ता पहले से ही लगभग बराबर था और अब निम्न सदन के साथ उच्च सदन के प्रतिनिधि भी विधायक कहे जा रहे। कुछ माह पहले सरकार ने नामकरण की इस व्यवस्था अधिसूचित कर दिया है।
विधानसभा में हार का एकमात्र कारण लोकप्रियता नहीं होता, विशेषकर बिहार के संदर्भ में, जहां जातीय समीकरण चुनाव में सिर चढ़कर बोलता है। गठबंधनों की हेराफेरी में कभी यह समीकरण पक्ष में हो जाता है तो कभी विपक्ष में।
जीत-हार का यह प्रमुख पैमाना है, लेकिन एक बार राजनीति में उतर जाने वाले हार कहां मानते हैं! विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी राजनीतिक जमीन मजबूत बनाए रखने और सत्ता के केंद्र में बने रहने की लालसा में विधान परिषद में विराजमान हो जाते हैं। गया स्नातक क्षेत्र से लगातार कई चुनावों से जीत रहे अवधेश नारायण सिंह (विधान परिषद के सभापति) नामचीन दिग्गज हैं।
दरभंगा स्नातक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सर्वेश कुमार, पूर्वी चंपारण स्थानीय प्राधिकार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने करने वाले महेश्वर प्रसाद सिंह इसी श्रेणी में हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, पूर्व मंत्री श्रीभगवान सिंह कुशवाहा, राजेंद्र प्रसाद गुप्ता आदि ऐसे ही शीर्षस्थ चेहरे हैं।stock market outlook, stocks in news, bse, nse, sensex, nifty, share market, stocks to watch, Tata Motors, HUL, Waaree Energies, Power Grid, Oil India, Chambal Fertilizers
किस चुनाव में कौन नकारे गए?
लोकसभा चुनाव में पराजय के उपरांत कई दिग्गजों ने राजनीति की नई राह चुनी है। 2004 में पूर्णिया संसदीय क्षेत्र से पराजय के उपरांत राजेंद्र प्रसाद गुप्ता वर्तमान में विधान परिषद में सत्तारूढ़ दल के उप नेता बने हुए हैं। विधानसभा कोटे से वे विधान परिषद पहुंचे हैं।
दिलीप जायसवाल 2014 में किशनगंज से हारने के उपरांत पूर्णिया, अररिया एवं किशनगंज स्थानीय प्राधिकार से विधान पार्षद हैं। राबड़ी देवी 2014 में सारण से लोकसभा चुनाव हारी और उससे पहले 2010 में राघोपुर में विधानसभा का चुनाव।
अब्दुल बारी सिद्दिकी पिछली बार दरभंगा जिला में केवटी से विधानसभा चुनाव हार गए थे। सर्वेश कुमार ने 2015 में भाजपा के टिकट पर बेगूसराय जिले के मटिहानी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, लेकिन सफलता नहीं मिली।
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