जब बिहार ने 2016 में पूरे राज्य में शराबबंदी लागू की थी, तो नैतिक सुधार का वादा भी किया गया था। अब नौ साल बाद, उस शराबबंदी ने रातों की नींद उड़ा रखी है, लेकिन शराबियों की नहीं, बल्कि राज्य की सीमा की सुरक्षा में लगी एजेंसियों की। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश एक्साइज विभाग को एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा- यह है शराब की तस्करी और अंतरराज्यीय शराब सिंडिकेट। चुनाव के समय बिहार तक अवैध शराब पहुंचाने वाले गिरोह ज्यादा सक्रिय हो गए, जिससे बिहार-यूपी के बॉर्डर इलाकों में शराब की तस्करी बढ़ गई।
बिहार में शराब की तस्करी को रोकने और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने शराबमुक्त राज्य की सीमा से लगे सात जिलों - कुशीनगर से सोनभद्र तक - में गहन कार्रवाई शुरू कर दी है।
उन्होंने निगरानी के लिए 154 शराब की दुकानों की पहचान की है, चुनाव से 48 घंटे पहले उन्हें बंद करने का आदेश दिया है, और संवेदनशील बॉर्डर पर 25 चौकियां बनाई गई हैं। उनका मिशन है- बिहार के चुनावों में शराब को रोकना और लोकतंत्र को बरकरार रखना।
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बिहार में हर चुनाव एक जानी-पहचानी कहानी कहता है: जैसे-जैसे चुनाव प्रचार तेज होता है, वैसे-वैसे शराब के अंडरग्राउंड रास्ते भी बढ़ते जाते हैं। गोरखपुर और बलिया में अस्थायी डिपो से लेकर घाघरा और गंडक नदियों के किनारे छिपी छोटी शराब भट्टियों तक, तस्करी का नेटवर्क पूरे जोरों पर सक्रिय है।
गोरखपुर स्थित उत्तर प्रदेश के एक सीनियर आबकारी अधिकारी ने कहा, “हमने एक सेम पैटर्न देखा है - जब भी बिहार में चुनाव होता है, तो उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में शराब की मांग रातोंरात बढ़ जाती है।“
बिहार चुनाव के दौरान शराब तस्करी की रणनीति बहुत आधुनिक हो गई है। जो ट्रक कृषि उत्पाद लेकर जाते हैं, वे शराब के कंटेनर छुपाकर ले जाते हैं। छोटी नाव नदी के रास्तों से शराब के डिब्बे पहुंचाती हैं। वहीं, बाइक या स्कूटी का इस्तेमाल भी गांव के रास्तों से तेजी से शराब पहुंचाने के लिए किया जाता है, जहां पुलिस और प्रशासन की पहुंच कम होती है। स्थानीय पंचायत के नेटवर्क भी इस तस्करी में मददगार होते हैं, जो शराब को कुछ ही घंटों में इलाके में बांटते हैं। यह पूरी व्यवस्था इस अवैध धंधे को बहुत कुशल और छिपाने वाला बना देती है।
चुनाव से पहले हुई जब्ती
4 नवंबर को बलिया पुलिस ने एक ट्रक पकड़ा, जिसमें करीब 17 लाख रुपए की अवैध शराब भरी हुई थी। यह शराब बिहार के चुनाव वाले इलाकों में भेजी जा रही थी।
यह घटना बैरिया थाना क्षेत्र की है, जहां पुलिस ने एक अशोक लेलैंड पिकअप ट्रक का पीछा किया। ड्राइवर भागने की कोशिश कर रहा था, लेकिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया। ट्रक में कई ब्रांड की शराब की बोतलें मिलीं, जिनकी कीमत करीब 16.75 लाख रुपए आंकी गई।
बलिया के पुलिस अधीक्षक ओमवीर सिंह ने बताया कि शुरुआती पूछताछ में पता चला है कि यह शराब बिहार चुनाव के दौरान बेचने के लिए भेजी जा रही थी। ड्राइवर चंदन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि बाकी लोग फरार हैं।
अधिकारियों के अनुसार, यह जब्ती उस समय हुई, जब चुनाव से पहले सख्त जांच अभियान चल रहा था। इस घटना से साफ होता है कि कड़ी निगरानी के बावजूद शराब तस्कर अब भी सक्रिय हैं, जो गांव के रास्तों और नदी किनारों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
यूपी-बिहार बॉर्डर पर सख्त निगरानी
यूपी-बिहार सीमा पर चौकसी अब पहले से कहीं ज्यादा बढ़ा दी गई है। गोरखपुर रेंज के उप आबकारी आयुक्त अवधेश राम ने बताया कि बिहार की सीमा से सटे 7 संवेदनशील जिले- सोनभद्र, बलिया, देवरिया, चंदौली, गाजीपुर, कुशीनगर और महाराजगंज का एक हिस्सा निगरानी में रखे गए हैं।
उन्होंने बताया, “कुल 25 चेकपोस्ट बनाए गए हैं, और वोटिंग से 48 घंटे पहले मतदान केंद्रों से 3 किलोमीटर की दूरी तक की सभी शराब की दुकानें बंद रहेंगी।”
अवधेश राम के अनुसार, विभाग को तस्करों पर नजर रखने में काफी मुश्किलें आ रही हैं, क्योंकि वे अब सामान बदल-बदलकर तस्करी कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “अब सिर्फ शराब ही नहीं, हमने कफ सिरप, एथेनॉल और स्पिरिट की खेपें भी पकड़ी हैं। वही गिरोह जो शराब लाता है, वही इन पदार्थों की भी तस्करी करता है।”
इससे पहले, 18 अक्टूबर को सोनभद्र जिले की आबकारी और पुलिस टीम ने दो कंटेनर ट्रकों से 1.19 लाख से ज्यादा एसकफ कफ सिरप की बोतलें पकड़ी थीं, जिनमें कोडीन नाम का नशे वाला पदार्थ था। इसकी कीमत करीब 3.5 करोड़ रुपए बताई गई।
जांच में पता चला कि यह तस्करी मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के सप्लायरों से जुड़ी हुई थी। यह मामला एक बार फिर दिखाता है कि बिहार में शराबबंदी के बाद बॉर्डर के इलाके गैरकानूनी नशे और तस्करी के बड़े रास्ते बन गए हैं।
चुनाव से पहले बड़ी जब्ती: आंकड़े चौंकाने वाले
अगर आंकड़ों पर भरोसा किया जाए, तो यह समस्या कहीं से भी मामूली नहीं है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 3 नवंबर तक बिहार और उपचुनाव वाले अन्य राज्यों में जांच एजेंसियों ने 108.19 करोड़ रुपए की अवैध नकदी, नशे का सामान, शराब और दूसरे प्रलोभन जब्त किए हैं।
इनमें से सिर्फ शराब की जब्ती ही 42.14 करोड़ रुपए की है, जो करीब 9.6 लाख लीटर के बराबर है। बाकी जब्तियों में शामिल हैं:
- - 9.62 करोड़ रुपए की अवैध नकदी
- - 24.61 करोड़ रुपए के ड्रग्स
- - 5.8 करोड़ रुपए के कीमती धातु (सोना-चांदी आदि)
- - 26 करोड़ रुपए के फ्रीबीज (उपहार व सामान)
बिहार, जहां 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में मतदान होना है, जांच एजेंसियों के लिए सबसे अहम इलाका बना हुआ है, एक तो यहां शराबबंदी लागू है, और दूसरा, चुनावों के दौरान लालच और तस्करी की पुरानी परंपरा को तोड़ना अभी भी बड़ी चुनौती है।
बिहार की समन्वित मुहिम
बिहार के अधिकारियों का कहना है कि अवैध शराब के खिलाफ लड़ाई संगठित तो है, लेकिन बेहद जटिल भी। राज्य के संयुक्त आयुक्त (निषेध एवं उत्पाद) रामाश्रय सिंह ने बताया, “हम लगातार उत्तर प्रदेश के अधिकारियों के संपर्क में हैं ताकि हर संभावित रास्ते को बंद किया जा सके।”
उन्होंने बताया कि संयुक्त टास्क फोर्स बनाई गई है, ड्रोन से निगरानी की जा रही है और जिलों से रोज़ाना जब्ती की रिपोर्ट तैयार की जा रही है- खासकर पश्चिम चंपारण, सीवान और कैमूर जैसे इलाकों से।
रामाश्रय सिंह ने कहा कि विभाग का मकसद सिर्फ पकड़-धकड़ नहीं, बल्कि डर पैदा करना और रोकथाम करना भी है। उनके शब्दों में, “हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि शराब चुनावी हथियार न बने। शराबबंदी कानून को राजनीतिक लालच से कमजोर नहीं होने देना है।”
राजनीति का तड़का
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सबसे चर्चित नीतियों में से एक शराबबंदी, आज भी बिहार की राजनीति और समाज का बड़ा मुद्दा बनी हुई है। समर्थक इसे सामाजिक सुधार मानते हैं, जबकि आलोचकों का कहना है कि इससे काला बाजार और शराब माफिया को बढ़ावा मिला है, जिससे राजस्व की हानि और भ्रष्टाचार बढ़ा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनावों के दौरान शराब की तस्करी अब स्थानीय अभियानों का अहम हिस्सा बन चुकी है। एक पटना स्थित विश्लेषक के अनुसार, “कागज पर शराबबंदी नैतिक लगती है, लेकिन जमीन पर इसने दोहरी अर्थव्यवस्था बना दी है, एक जो कानून के नाम पर चलती है, और दूसरी जो राजनीतिक संरक्षण और ढिलाई पर।”
बॉर्डर की हकीकत
यूपी और बिहार के बीच करीब 720 किलोमीटर लंबी सीमा नदियों, खेतों और कच्चे रास्तों से होकर गुजरती है, जिसे पूरी तरह सील करना लगभग असंभव है। बैरिया (बलिया) और तमकुही (कुशीनगर) जैसे इलाकों में स्थानीय लोग कहते हैं कि अब तस्करी उतनी ही आम हो गई है जितना व्यापार।
स्थानीय दुकानदार रंजीत तिवारी बताते हैं, “यहां लोग शराब को अपराध नहीं, रोज़गार का ज़रिया मानते हैं। चुनाव आते ही मांग बढ़ जाती है और दाम तीन गुना हो जाते हैं। जोखिम सब जानते हैं, लेकिन मुनाफा इतना बड़ा है कि कोई पीछे नहीं हटता।”
दो राज्यों की दो मुश्किलें
उत्तर प्रदेश के लिए चुनौती है — राजस्व और जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाना, जबकि बिहार के लिए असली परीक्षा है — नैतिक कानून को जिंदा रखना बिना इसके कि वह अवैध बाजार को और ताकत दे।
दोनों राज्यों के बीच फैली यह सीमा लचीली भी है और विवादित भी। जैसे-जैसे चुनाव करीब आते जा रहे हैं, दोनों राज्यों ने निगरानी और सख्ती बढ़ा दी है।
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