कांग्रेस सांसद राहुल गांधी। ANI  
 
  
 
सुनील राज, पटना। करीब 59 दिनों के लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आखिरकार विधानसभा चुनाव प्रचार में औपचारिक एंट्री कर ली। एक सितंबर को पटना में वोट चोरी यात्रा के समापन के बाद बुधवार को राहुल गांधी-तेजस्वी यादव के साथ मुजफ्फरपुर और दरभंगा की चुनावी सभाओं में नजर आए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
राहुल गांधी के प्रचार में उतरने से कांग्रेस और महागठबंधन के खेमे में उत्साह तो है, लेकिन कई सवाल भी हो रहे हैं। हालांकि, पार्टी का दावा है कि राहुल गांधी की चुनाव में देर से इंट्री की वजह पार्टी और महागठबंधन की रणनीति है।  
 
दरअसल, अक्टूबर के प्रारंभिक दिनों में जिस वक्त महागठबंधन में सीट की खींचतान चरम पर थी। दूसरी ओर, प्रदेश कांग्रेस के अंदर पार्टी के पुराने नेता, विधायक टिकट काटे जाने को लेकर बवाल काट रहे थे, उन दिनों राहुल गांधी ने इन झमेलों से दूरी बनाए रखी। हालांकि, टिकट काटे जाने से नाराज कुछ नेता राहुल गांधी से मिलने दिल्ली तक पहुंच गए, बावजूद राहुल ने ऐसे मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई न ही उनकी कोई प्रतिक्रिया सार्वजनिक हुई।  
 
उन दिनों राहुल गांधी सक्रिय रहे तो इंटरनेट मीडिया पर। अपने इंटरनेट मीडिया एकाउंट से वे बेरोजगारी, शिक्षा व्यवस्था, शराबबंदी और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों को लेकर प्रदेश की एनडीए सरकार पर हमलावर रहे।  
 
बहरहाल अब जबकि चुनाव प्रचार अपने निर्णायक दौर में है, राहुल गांधी की वापसी को महागठबंधन के लिए एक बड़ा संबल माना जा रहा है। राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ उनकी साझा सभाएं न केवल गठबंधन की एकजुटता का संदेश देंगी, बल्कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भी नई ऊर्जा भर सकती हैं। प्रचार में नई धार आएगी और पार्टी की उपस्थिति अधिक प्रभावी बनेगी।  
 
बावजूद दूसरी ओर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। बिहार की राजनीति के गलियारे में यह चर्चा है कि महागठबंधन में तेजस्वी यादव को सारा दारोमदार देकर कांग्रेस चुनाव में सिर्फ खानापूर्ति करना चाहती है। यही नहीं, पार्टी के नाराज नेताओं को मनाने के लिए भी राहुल गांधी के पास क्या योजना, रणनीति है इसे लेकर स्पष्टता नहीं है।   
 
हालांकि, पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया समन्वयक अभय दुबे कहते हैं कि बातें बनाने वाले बातें करते ही रहेंगे। हकीकत यह है कि राहुल गांधी को विशेष रणनीति के तहत चुनाव मैदान में देर से उतारा गया। रही बात सीट की खींचतान या फिर पार्टी में कलह की तो सीटों की कोई खींचतान नहीं थी। सिर्फ एक मसला था उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ा जाए जिन पर जीत संभावित है।  
 
दुबे ने कहा कांग्रेस ने सभी 243 सीटों पर प्रत्याशियों से आवेदन मांगे थे। जाहिर है सबकी आकांक्षाओं को पूरा नहीं किया जा सकता। कांग्रेस के संविधान में रहकर अपनी बात रखने वाले कार्यकर्ताओं को मनाया जाएगा, उनसे संवाद भी होगा।  
 
बहरहाल महागठबंधन के एक वरिष्ठ नेता की माने तो राहुल गांधी का आना निश्चित तौर पर सकारात्मक संदेश देगा, लेकिन यह तभी फायदेमंद होगा जब वे लगातार प्रचार में बने रहें और गठबंधन के साझा एजेंडे को लेकर जनता से संवाद करें।  
 
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