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Bihar Election: 2020 विधानसभा की हार से 2024 की जीत का सफर, क्या इस बार भी कमाल कर पाएंगे चिराग पासवान?

cy520520 2025-10-14 10:12:57 views 1019

  

चिराग पासवान: विरासत से संघर्ष तक, संघर्ष से पहचान तक। फाइल फोटो



डिजीटल डेस्क, पटना। बिहार की राजनीति काफी उतार-चढ़ाव, जटिल और अप्रत्याशित रही है। यहां की राजनीति हमेशा गठबंधनों और बदलते समीकरणों के लिए जानी जाती रही है। इसी राजनीति में PM मोदी के हनुमान चिराग पासवान की कहानी बेहद दिलचस्प रही है।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

चिराग पासवान के राजनीतिक जीवन में कई तरह के मोड़ आए हैं, जहां पारिवारिक विरासत, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और बदलते समय की आकांक्षाएं एक-दूसरे से टकराती हैं।  
पिता की मृत्यु के बाद टूटी पार्टी

स्वर्गीय रामविलास पासवान के पुत्र के रूप में राजनीति में प्रवेश करने वाले चिराग के लिए शुरुआत आसान नहीं थी। हालांकि, पिता की बड़ी राजनीतिक छवि और जनता की ऊंची उम्मीदों के बीच उन्होंने अपनी पहचान बनाने की कोशिश की। पिता की मृत्यु के बाद पार्टी टूटने से चिराग अलग-थलग हो गए थे। हालांकि, पिता से विरासत में मिली राजनीति के ककहरा में माहिर खिलाड़ी के रूप में बाहर आए।  

2020 विधानसभा चुनाव में महज एक सीट  

2020 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने 135 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन नतीजे निराशाजनक रहे। उनकी पार्टी ने चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज कर सकी। इसके अलावा, करीब 6% वोट शेयर रहा।  

इस हार के बाद चिराग को कई तरह की राजनीतिक आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। मगर चिराग ने इस हार को अंत नहीं माना। उन्होंने राजनीति की भाषा बदलने की कोशिश की। जाति से परे, युवाओं की आकांक्षाओं और विकास के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।
2024 लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन

उनकी यह नई रणनीति 2024 के लोकसभा चुनाव में रंग लाई। चिराग की LJP (R) ने जिन पांच सीटों पर चुनाव लड़ा, उन सभी पर जीत हासिल की। यह प्रदर्शन न केवल उनके आलोचकों के लिए जवाब था, बल्कि इस बात का सबूत भी कि चिराग अब एक स्वतंत्र राजनीतिक ताकत बन चुके हैं।  

इस सफलता ने उन्हें एनडीए में नए आत्मविश्वास के साथ स्थापित किया। प्रशांत किशोर जैसे राजनीतिक रणनीतिकारों के साथ उनकी बातचीत ने यह भी दिखाया कि वे केवल जनाधार नहीं, बल्कि रणनीति के स्तर पर भी परिपक्व हो रहे हैं।
2025 विधानसभा चुनाव में मिली 29 सीटें

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक बार फिर NDA की सीट शेयरिंग में 29 सीटें हासिल की है। ऐसे में इस विधानसभा चुनाव में यह देखना होगा कि चिराग की पार्टी का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव की तरह काबिल ए तारीफ रहता है या नहीं?

दिलचस्प यह भी है कि जिस दौर में कई पारंपरिक दलित नेता जैसे मायावती और जीतन राम मांझी अपने जनाधार को संभालने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उसी समय चिराग का उदय एक नई दलित राजनीति की झलक देता है। जो परंपरागत सीमाओं से परे जाकर आधुनिक, युवा और आकांक्षी समाज की बात करती है।
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