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हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण और बाढ़ की मार, मझधार में फंसी सीमांचल के विकास की धार

Chikheang 1 hour(s) ago views 807

  



प्रकाश वत्स, पूर्णिया। पावन गंगा, कोसी, महानंदा व परमान जैसी नदियों के प्रवाह वाले सीमांचल में चुनावी धारा का रंग भी कुछ अलग होता है। नेपाल व बांग्लादेश की सरहद से सटे इस इलाके का जुड़ाव पश्चिम बंगाल व झारखंड से भी है। यहां की 24 सीटों में लगभग 50 फीसद सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

जीत-हार का समीकरण उनके इर्द-गिर्द ही घूमता है। इस इलाके के दस विधानसभा क्षेत्र बाढ़ व कटाव से बुरी तरह प्रभावित रहता है। दरिया का यह दर्द हर बार चुनावी शोर भी बनता है, लेकिन चुनाव की धारा पर इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। ईवीएम तक दरिया के मारों के दिल की बात विरले ही पहुंच पाती है।
हिंदू- मुस्लिम गोलबंदी पर टिकी जीत की आस

अधिकांश सीटों का अब तक का वोटिंग ट्रेंड हिंदू व मुस्लिम गोलबंदी पर ही टिकी हुई है। पूर्णिया का अमौर व बायसी विधानसभा क्षेत्र भी इसका सबसे बेहतर उदाहरण है। दोनों विधानसभा क्षेत्र बाढ़ व कटाव प्रभावित है।  

दोनों विधानसभा क्षेत्र के लगभग दो दर्जन गांव कटाव से विस्थापित हो चुके हैं। काफी संख्या में परिवार सड़़कों व बांधों के किनारे समय बीता रहे हैं। एक दर्जन से अधिक गांवों के लोग अब भी नाव के सहारे आवागमन करते हैं।  

कई स्थानों पर तो पुल भी बना है, लेकिन पुल बनने से पहले ही नदियों की धारा ने अपनी रुख बदल लिया और लोगों का नाता नाव से नहीं छूट पाया ।  

इसके अलावा नदियों में उफान से दोनों विस क्षेत्र के चार दर्जन से अधिक गांवों में बाढ़ का पानी घुस जाता है और लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इन स्थितियों के बावजूद यह मतदान का आधार नहीं बनता है।
विकास की उड़ान करता है मोहित मगर दिल है कि मानता नहीं

अमौर के मु. रियाज, मु. सलाम, बायसी के मु. गुलाम, अर्जुन मंडल व पांचू ऋषि मानते हैं कि अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा उनका क्षेत्र अभी भी काफी पिछड़ा है। कहीं न कहीं प्रतिनिधियों के चयन में उचित मानदंड का अभाव इसका कारण रहा है।  

वे लोग दर्द झेलते हैं और हर बार अपनी समस्या के समाधान करने वाले जनप्रतिनिधि के चयन का संकल्प भी लेते हैं, लेकिन चुनाव आते-आते वोटिंग का ट्रेंड उसी किनारे पहुंच जाती है और आम जिंदगानी मझधार में ही रह जाती है।  

वहां के लोग यह भी मानते हैं कि विकास यहां अब भी अहम चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहा है। गाहे-बगाहे वोटों में बिखराव से चौकाने वाले परिणाम भी आते रहे हैं, लेकिन विकास के मुद्दे पर एकजुटता अभी भी स्वप्न ही है।
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