विदेशी विश्वविद्यालय 2040 तक 113 अरब डालर बचा सकते हैं
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में विदेशी विश्वविद्यालय 2040 तक 5.6 लाख छात्रों को शिक्षा देते हुए 113 अरब डालर की विदेशी मुद्रा की बचत कर सकते हैं। इसके अलावा इससे देश में 1.9 करोड़ वर्ग फीट रियल एस्टेट स्पेस की मांग भी पैदा हो सकती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
\“ग्लोबल यूनिवर्सिटीज आइ इंडिया आपच्र्युनिटी\“ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में भारत के 40 शहरों की संभावनाओं का अध्ययन किया गया है। रिपोर्ट में दिल्ली-एनीसीआर सबसे पसंदीदा बाजार के तौर पर उभरा है। बेंगलुरु इस मामले में दूसरे स्थान पर है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय छात्र पारंपरिक रूप से घरेलू नामांकन पर इस गिरावट के दबाव को कम करने का काम करते रहे हैं, वहीं हाल के सालों में भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं और बदलती कूटनीतिक प्राथमिकताओं के कारण यह गतिशीलता कमजोर हुई है, जिससे प्रतिबंध, सख्त इमिग्रेशन नीतियां और पढ़ाई के बाद काम के अधिकारों पर सीमाएं लगी हैं।
\“इन चुनौतियों के अलावा, वैश्विक प्रतिस्पर्धा और अंतरराष्ट्रीय रैकिंग मेट्रिक्स का दबाव भी बढ़ रहा है, क्योंकि ये सीधे तौर पर विश्वविद्यालयों की फंडिंग, पार्टनरशिप और टैलेंट हासिल करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। डीकिन यूनिवर्सिटी (गिफ्ट सिटी), यूनिवर्सिटी आफ वोलोंगोंग (गिफ्ट सिटी) और यूनिवर्सिटी आफ साउथैम्प्टन (गुरुग्राम) ने यूजीसी के नियमों के तहत भारत में अपना बेस पहले ही बना लिया है।
फिलहाल, कुल 18 विदेशी यूनिवर्सिटी को भारत में कैंपस स्थापित करने के लिए यूजीसी या आइएफसीएसए से सैद्धांतिक मंजूरी, तैयारी लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट मिल चुका है। भारत में, अभी 5.3 करोड़ छात्र उच्च शिक्षण संस्थानों में हैं। इसके अलावा, 2024 में लगभग 7,60,000 छात्र इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में गए।
इसके बावजूद भारत का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 34 प्रतिशत पर बना हुआ है, जो विकसित देशों में देखे जाने वाले 80 प्रतिशत और उससे ऊपर के स्तर से काफी कम है।
केंद्र सरकार ने 2035 तक 50 प्रतिशत जीईआर तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए कुल 7.2 करोड़ छात्रों को उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेना होगा। वैश्विक पर सेक्टर की डिमांड के लिए यह चाहत विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस स्थापित की अनुमति देती है। |