छह दिसंबर के दृष्टिगत राममंदिर के निकट तैनात एटीएस कमांडो----ध्वजारोहण
रघुवरशरण, जागरण अयोध्या : अयोध्या का अर्थ है, जहां युद्ध न हो अथवा जिसे युद्ध में जीता न जा सके। विरासत के अनुरूप अजिता-अपराजिता नगरी का मौलिक चरित्र शनिवार को विवादित ढांचा गिराए जाने की 33वीं बरसी पर भी पुष्ट हो रहा था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
चाहे वह एक मार्च 1528 को आक्रांताओं द्वारा रामजन्मभूमि पर बने मंदिर का ध्वंस रहा हो या उसकी प्रतिक्रिया में छह दिसंबर 1992 का ध्वंस। रामनगरी अब ध्वंस की स्याह स्मृति से उबर सृजन का स्वर्णिम कीर्तिमान गढ़ रही है। जो रामजन्मभूमि करीब पांच सदी तक ध्वंस की साक्षी थी, वहां अब भव्य मंदिर का निर्माण आस्था का नया प्रतिमान गढ़ रहा है। इसी मंदिर के स्वर्ण शिखर पर गत 25 नवंबर को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ध्वजारोहण कर राम भक्तों के उत्साह को सातवें आसमान पर प्रतिष्ठित किया है।
यह अविस्मरणीय अवसर भव्य राम मंदिर के साथ दिव्य रामनगरी के सृजन से और भी अविस्मरणीय सिद्ध हो रहा है। बदलाव का वाहक रामजन्मभूमि पथ, भक्ति पथ, धर्म पथ एवं रामपथ के साथ किनारों के भवन भी एक से आकार और रंग में रूपांतरित हो संभावनाएं प्रशस्त कर रहे हैं। आरोह का शिखर रामजन्मभूमि पथ पर दर्शनार्थियों की लंबी कतार से परिभाषित हो रहा है। इस कतार से लघु भारत का दर्शन हो रहा होता है, कोई राजस्थान की पगड़ी बांध कर, तो कोई पंजाबियत की भाव-भाषा के साथ कतार में लगा होता है।
विवादित ढांचा गिराए जाने की तारीख के सवाल पर झारखंड से आए करीब 50 वर्षीय सुनील महतो कहते हैं, हमें अतीत में उलझने की जगह निरंतर आगे बढ़ना है और इसकी परिणति भव्य मंदिर एवं दिव्य अयोध्या निर्मित करने के प्रयास से परिलक्षित भी हो रही है। रामजन्मभूमि से सरयू नदी की ओर बढ़ने पर ऐसे दावों को दम मिलता है। तुलसी उद्यान, रामकी पैड़ी, रानी हो का स्मारक और भजन संध्या स्थल जैसे पर्यटन केंद्र नया कलेवर ग्रहण कर दिव्य अयोध्या की इंद्रधनुषी छठा बिखेर रहे होते हैं।
रामनगरी की उत्कर्ष यात्रा के बीच सरयू तट का स्वरूप परंपरा की शक्ति का एहसास कराता है। प्रशस्त सीढ़ियों पर घाट के पुरोहितों का धारा प्रवाह मंत्र के साथ गोदान का कर्मकांड संतोष की रेखा खींचता है। पुरोहित दान-दक्षिणा से तुष्ट होते हैं, तो यजमान स्वर्ग की राह सहेज कर और संतुष्ट हो रहे होते हैं। सरयू की नित्य सायंकालीन महाआरती की तैयारी प्रथम बेला से ही कर रहे आंजनेय सेवा संस्थान के अध्यक्ष महंत शशिकांतदास कहते हैं, आज भव्य मंदिर और नव्य अयोध्या का निर्माण सृजनात्मकता की उसी शक्ति से संभव हो पा रहा है, जो अयोध्या के डीएनए में है।
आपसी विश्वास का उत्सव मनाएं : गनी
मुस्लिम लीग के प्रांतीय अध्यक्ष डा. नजमुल हसन गनी के अनुसार सर्वोच्च निर्णय आने के बाद विवाद को पीछे छोड़ कर अब आपसी विश्वास का उत्सव मनाया जाना चाहिए और अयोध्या को राम मंदिर के साथ साझी विरासत की नगरी के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। वह याद दिलाते हैं कि अयोध्या दूसरे पैगंबर हजरत शीश सहित अनेक सूफी संतों, जैन तीर्थंकरों, गौतम बुद्ध और सिख गुरुओं की भी नगरी है। इस विरासत के साथ अयोध्या में साझी विरासत की सर्वश्रेष्ठ नगरी बनने की संभावना है।
राम राज्य की स्थापना का संकल्प
हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए प्रयत्नशील जगद्गुरु परमहंस आचार्य कहते हैं, अब यह अवसर विवाद को पीछे छोड़ श्रीराम को केंद्र में रख कर भारत को पुन: विश्व गुरु के रुतबे से विभूषित करने और राम राज्य की स्थापना का संकल्प लेने का है। |