रूसी तेल पर ट्रम्प की सख्ती, पर क्या भारत की खरीद सच में घटेगी (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका की ट्रंप सरकार ने रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों Rosneft और Lukoilपर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं। इसके बाद माना जा रहा है कि भारत की रूस से कच्चे तेल की खरीद में कमी आ सकती है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह बदलाव स्थायी नहीं होगा। भारत आगे भी रूसी तेल खरीदता रहेगा, बस रास्ते बदल जाएंगे, यानी गैर-प्रतिबंधित कंपनियों और कम पारदर्शी चैनलों के जरिए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
भारत ने नवंबर में रूस से तेल की खरीद बढ़ाई है ताकि 21 नवंबर को लागू हुए नए अमेरिकी प्रतिबंधों से पहले ज्यादा माल मिल सके। यही वजह है कि नवंबर में रूसी तेल आयात पांच महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गया।
अमेरिका ने भारत पर 50% तक टैरिफ लगा दिए हैं, जिनमें से 25% अतिरिक्त दंडात्मक शुल्क सिर्फ इसलिए है क्योंकि भारत रूस से तेल खरीद रहा है। ट्रंप प्रशासन का आरोप है कि भारत रूसी तेल खरीदकर यूक्रेन युद्ध में रूस की मदद कर रहा है।
भारत ने साफ कहा है कि वह अपने आर्थिक हित देखकर ही ऊर्जा खरीद का फैसला करेगा। भारत की नजर में रूस से मिलने वाला सस्ता तेल उसके लिए फायदेमंद है। लेकिन अक्टूबर में अमेरिका ने Rosneft और Lukoil पर प्रतिबंध लगाकर भारत के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है।
नतीजा यह हुआ है कि रिलायंस, HPCL, HMEL और MRPL ने कुछ समय के लिए रूसी तेल खरीद रोक दी है। सिर्फ Nayara Energy (जिसमें Rosneft की हिस्सेदारी है) अभी भी रूसी तेल ले रही है।
रूस से भारत को औसतन 1.8 मिलियन बैरल प्रति दिनतेल मिल रहा था, जो कुल आयात का 35% से भी ज्यादा है। 21 नवंबर से पहले यह मात्रा और बढ़कर 1.9-2.0 mbpd तक गई, क्योंकि कंपनियां प्रतिबंध लागू होने से पहले ज्यादा माल मंगा रही थीं।
Kplerके अनुसार, दिसंबर में आयात घटकर लगभग 1.0 mbpdरह सकता है, लेकिन यह गिरावट अस्थायी होगी। रूस की ओर से भी नए तरीके अपनाए जा रहे हैं, जैसे:-
- समुद्र में Ship-to-Ship (STS) ट्रांसफर
- बीच रास्ते में जहाज मोड़ना
- गुप्त या अप्रत्यक्ष आपूर्ति चैनल
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत लंबे समय तक रूसी तेल लेना नहीं छोड़ेगा, क्योंकिराजनीतिक रूप से भारत अमेरिकी दबाव में झुकता दिखना नहीं चाहता और रूसी तेल अब भी सबसे सस्ता विकल्प है, नॉन-सैंक्शन रूसी कंपनियों व थर्ड-पार्टी ट्रेडर्स के जरिए लेनदेन जारी रह सकता है।
Kplerका कहना है कि नए विक्रेता तेजी से उभर रहे हैं, जैसे- Tatneft, RusExport, MorExport और Alghaf Marine DMCC। इनके जरिए भारतीय कंपनियां प्रतिबंधों से बचकर तेल खरीद सकती हैं।
भारत ने अक्टूबर में 568 kbd (हजार बैरल/दिन) अमेरिकी तेल खरीदा,यह 2022 केबादसबसे ज्यादा था। नवंबर में यह घटकर 450 kbd रहा, पर यह साल के औसत 300 kbd से अभी भी काफी ऊपर है। यह बढ़ोतरी प्रतिबंधों की वजह से नहीं थी, बल्किअमेरिका का तेल आर्थिक रूप से फायदेमंद पड़ा और चीन की मांग कम थी।
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दिसंबर में अमेरिका से खरीद फिर घटकर 300-350 kbd रहने की उम्मीद है। अमेरिका से ज्यादा खरीद स्थायी रूप से बढ़ना मुश्किल है, क्योंकियात्रा समय लंबा, भाड़ा ज्यादा और WTI तेल अपेक्षाकृत हल्का और नाफ्था-समृद्ध है।
भारतीय रिफाइनरी तकनीकी रूप से किसी भी ग्रेड का क्रूड प्रोसेस कर सकती हैं। इसलिए समस्या ऑपरेशन की नहीं बल्कि तेल की कीमत की है। रूसी तेल कम होगा तो आर्थिक दबाव बढ़ेगा। इस कमी को पूरा करने के लिए भारतमध्य पूर्व (सऊदी, इराक, UAE, कुवैत), लैटिन अमेरिका (ब्राजील, अर्जेंटीना, कोलंबिया, गुयाना), पश्चिम अफ्रीका, अमेरिका व कनाडा से खरीद थोड़ी बढ़ाएगा।
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