नई दिल्ली, प्रेट्र : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतें भले ही राहत देने के लिए \“जमानत नियम है और जेल अपवाद\“ के सिद्धांत को मानती हैं, लेकिन आपराधिक मामलों में आरोपित को जमानत प्रदान करने के लिए समानता ही एकमात्र आधार नहीं है। जस्टिस संजय करोल और जस्टिसएन. कोटिश्वर सह की पीठ ने हत्या के एक मामले में आरोपित को इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दी गई जमानत को रद कर दिया। हाई कोर्ट ने उसे इसलिए जमानत प्रदान कर दी थी क्योंकि सह-आरोपित को जमानत दे दी गई थी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
शीर्ष अदालत ने कहा कि उस कथित अपराध के हालात पर उचित ध्यान दिए बिना जमानत नहीं दी जा सकती, जिसके लिए आरोपित को गिरफ्तार किया गया है। पीठ ने कहा कि उसे सिर्फ इस आधार पर जमानत दी गई थी कि सह-आरोपी को भी राहत दी गई है। शीर्ष अदालत ने 28 नवंबर के फैसले में कहा, \“जमानत को अक्सर नियम और जेल को अपवाद कहा जाता है। इस बात पर बहुत ज्यादा जोर नहीं दिया जा सकता। साथ ही, इसका मतलब यह नहीं है कि जमानत की राहत उस कथित अपराध के हालात पर ध्यान दिए बिना दी जानी चाहिए जिसके लिए आरोपित को गिरफ्तार किया गया है।
इस संबंध में यह ध्यान रखना होगा कि जमानत देते समय अदालत को कई पहलुओं पर विचार करना होता है। इस न्यायालय ने इतने सारे फैसले दिए हैं, जिनमें ध्यान में रखने लायक जरूरी बातें बताई गई हैं। \“पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने आरोपित को जमानत देने में सभी प्रासंगिक बातों पर विचार नहीं किया। ऐसा लगता है कि हाई कोर्ट ने त्रुटिपूर्ण तरीके से सिर्फ समानता के आधार पर जमानत दे दी, जिसे उसने सीधे तौर पर इस्तेमाल का एक तरीका समझ लिया, जबकि समानता का मकसद आरोपित की भूमिका पर ध्यान देना होता है, न कि एक ही अपराध का होना आरोपितों के बीच एकमात्र समानता थी। समानता एकमात्र आधार नहीं है जिस पर जमानत दी जा सकती है और कानून में यही सही स्थिति है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि कैम्बि्रज शब्दकोश में \“पैरिटी\“ शब्द को \“समानता\“ के तौर पर, खासकर वेतन या पद की बराबरी\“ के तौर पर परिभाषित किया गया है। शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के एक गांव में हत्या के एक मामले में यह आदेश दिया, जो गांव वालों के बीच कहासुनी के कारण हुई थी। इस मामले में लोगों को भड़काने वाले एक आरोपित को जमानत दे दी गई और दूसरे सह-आरोपित को समानता के आधार पर यही राहत दे दी गई। |