डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जो कभी देश के सबसे भयावह और अभेद्य माओवादी गढ़ के रूप में जाना जाता था, अब एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है।
केंद्र सरकार की समग्र उन्मूलन नीति और गृह मंत्री अमित शाह की मार्च 2026 तक माओवादी हिंसा के समूल समाप्ति की रणनीति ने ऐसे परिणाम दिए हैं, जिनकी कल्पना भी पांच वर्ष पूर्व नहीं की जा सकती थी।
बस्तर के आईजीपी सुंदरराज पी. के अनुसार, अब माओवादी संगठन का मुख्य नेतृत्व केवल दो नामों, बारसे देवा और पश्चिम बस्तर डिविजन सचिव पापाराव तक सीमित रह गया है।
इनके साथ केवल 130-150 हथियारबंद सदस्य ही सक्रिय माने जा रहे हैं। अब इन सभी के सामने केवल दो विकल्प हैं, या तो मुख्यधारा में लौटकर आत्मसमर्पण करना या फिर बसवराजू और हिड़मा जैसे अंत का सामना करना।
हिड़मा की मौत ने बदली तस्वीर
दक्षिण बस्तर का कुख्यात माओवादी माड़वी हिड़मा न केवल संगठन का पोस्टर ब्वाय था, बल्कि जंगल युद्ध का सबसे खतरनाक रणनीतिकार भी माना जाता था। पिछले महीने आंध्रप्रदेश में हुई मुठभेड़ में उसकी मौत ने पूरे माओवादी तंत्र का मनोबल चकनाचूर कर दिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
हिड़मा के मारे जाने के केवल 10 दिनों में चार करोड़ रुपये से अधिक इनाम वाले 209 माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया।
निर्णायक प्रहारों का साल
2025 का वर्ष माओवादियों के लिए खात्मे वाला साबित हुआ है। यह वर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ है, लेकिन 11 महीनों में सुरक्षा बलों ने माओवादी नेटवर्क की रीढ़ को पूरी तरह तोड़ दिया है।
वर्ष की शुरुआत गरियाबंद में शीर्ष हिंसक चलपति के मुठभेड़ में मारे जाने से हुई। इसके बाद, दंडकारण्य के सर्वोच्च हिंसक बसवराजू के ढेर होने से पूरा संगठन हिल गया।
इसके पश्चात पोलित ब्यूरो सदस्य भूपति और केंद्रीय समिति सदस्य रूपेश का 261 माओवादियों के साथ आत्मसमर्पण ने माओवादियों को बड़ा झटका दिया। |