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प्रिंस हत्याकांड में पुलिस अधिकारियों को नहीं मिलेगी आरोप से मुक्ति, CBI कोर्ट ने याचिकाएं की खारिज

deltin33 2025-12-2 01:08:29 views 646

  

सीबीआई की विशेष अदालत ने सुनया आदेश।



जागरण संवाददाता, पंचकूला। गुरूग्राम के प्रिंस हत्याकांड (काल्पनिक नाम) मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने आरोपित पुलिस अधिकारियों की डिस्चार्ज यानी आरोपमुक्ति याचिकाओं को खारिज कर दिया।

अदालत ने स्पष्ट कहा कि रिकार्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर आरोपितों के खिलाफ प्रथम दृष्टया गंभीर अपराध बनते हैं। इस निर्णय के साथ ही मामला अब चार्ज-फ्रेमिंग के चरण में प्रवेश कर चुका है, जिससे सुनवाई निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

अदालत में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ विशेष लोक अभियोजक और सीबीआई अधिवक्ता ने आरोपित पुलिस अधिकारियों की भूमिका, जांच में हुई कथित अनियमितताओं और साक्ष्यों से छेड़छाड़ का विस्तार से उल्लेख किया। शिकायतकर्ता बरुण चंदर ठाकुर भी अदालत में मौजूद रहे और उनके अधिवक्ता ने आरोपमुक्ति याचिका का विरोध किया।

इस मामले में आरोपित तत्कालीन निरीक्षक नरेंद्र सिंह खटाना, तत्कालीन एसीपी बीरम सिंह, तत्कालीन उप-निरीक्षक शमशेर सिंह और तत्कालीन ईएसआई सुभाष चंद हैं। मुख्य आरोपित नरेंद्र सिंह खटाना जमानत पर है, लेकिन सुनवाई के दौरान अदालत में उपस्थित नहीं हुआ। उसकी ओर से व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट की अर्जी केवल एक दिन के लिए स्वीकार की गई। अन्य आरोपित बीरम सिंह, शमशेर सिंह और सुभाष चंद भी जमानत पर हैं और उनकी ओर से अधिवक्ता ने पेशी दर्ज कराई।
अगली सुनवाई 9 दिसंबर को

अदालत ने अपने विस्तृत आदेश में कहा कि आरोपितों के खिलाफ आइपीसी की धारा 120-B (आपराधिक साजिश), 166-A (कानून का उल्लंघन), 167 (गलत दस्तावेज तैयार करना), 194 (झूठे साक्ष्य तैयार करना), 330 (यातना देकर स्वीकारोक्ति लेना) और 506 (धमकी देना) सहित अन्य गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा चलाने के पर्याप्त आधार हैं। आरोप तय करने की प्रक्रिया अगली सुनवाई 9 दिसंबर 2025 को होगी।
यह है मामला

यह मामला वर्ष 2017 में गुरूग्राम के एक निजी स्कूल में छात्र प्रिंस की रहस्यमयी हत्या से संबंधित है। शुरुआत में स्कूल बस के कंडक्टर अशोक कुमार को मुख्य अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन बाद में जांच हरियाणा पुलिस से हटाकर सीबीआई को सौंप दी गई।

सीबीआई की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि पुलिस अधिकारियों ने न केवल साक्ष्यों को तोड़ा-मरोड़ा, बल्कि अशोक कुमार पर दबाव डालकर अपराध स्वीकार करवाने का प्रयास भी किया। अदालत ने आदेश में टिप्पणी की कि एसआई शमशेर सिंह, इंस्पेक्टर नरेंद्र खटाना, एसीपी बीरम सिंह और ईएसआइ सुभाष चंद ने मिलकर अशोक कुमार के विरुद्ध झूठे दस्तावेज तैयार किए और वास्तविक अपराधी को बचाने के प्रयास में गंभीर अनियमितताएं कीं।

अदालत ने यह भी कहा कि ये अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग कर साक्ष्यों को गढ़ने और निर्दोष व्यक्ति से झूठी स्वीकारोक्ति लेने जैसे गंभीर कृत्यों में लिप्त पाए गए, जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर थे और न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने की मंशा दिखाते हैं।
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