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जन्मजात एक किडनी वालों के लिए खुशखबरी, एक्सपर्ट्स ने कहा- घबराने के नहीं है जरूरत; बताया कैसे करें देखभाल

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जन्मजात एक किडनी वालों के लिए खुशखबरी (फाइल फोटो)



डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। निरतंर वैज्ञानिक प्रगति ने स्वस्थ मानव जीवन यापन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक किडनी के साथ पैदा हुए बच्चे, जिसे विज्ञान की भाषा में यूनिलेटेरल रीनल एजेनेसिस (यूआरए) कहा जाता है, अक्सर अनचाही आशंकाओं के साये में जिंदगी गुजारते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

मगर, अब उन्हें घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि देशभर के कई बाल स्वास्थ्य विशेषज्ञ, नेफ्रोलाजिस्ट और सर्जन दावा कर रहे हैं कि उचित चिकित्सा देखरेख, पोषण संबंधी मार्गदर्शन और घर व स्कूल के अनुकूल वातावरण मिलने पर वे स्वस्थ और सक्रिय जीवन जी सकते हैं।
कैसे काम कर पाती है एक किडनी?

प्रसवपूर्व इमेजिंग में हुई प्रगति के कारण अब यूआरए के कई मामलों का जन्म से पहले ही पता चल जाता है, जिससे समय पर चिकित्सा संबंधी योजना बनाना और परामर्श देना संभव हो जाता है। इंडियन सोसाइटी आफ पीडियाट्रिक नेफ्रोलाजी (आइएसपीएन) जैसी बाल चिकित्सा संस्थाएं परिवारों में दीर्घकालिक निगरानी की समझ बढ़ाने के लिए व्यापक जागरूकता अभियानों का आह्वान कर रही हैं।

वैश्विक स्वास्थ्य संगठन भी इस बात पर जोर देते हैं कि एक किडनी आमतौर पर सामान्य रूप से कार्य करती है और उच्च गुणवत्ता वाले जीवन को बनाए रखती है, बशर्ते रक्तचाप और प्रोटीन्यूरिया की समय-समय पर निगरानी की जाए। दो हजार बच्चों में से एक बच्चा एक किडनी के साथ पैदा होता है वैश्विक महामारी विज्ञान के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1,000 से 2,000 शिशुओं में से एक शिशु एक किडनी के साथ पैदा होता है।

2023 में 1.5 करोड़ से ज्यादा बच्चों पर किए गए एक विश्लेषण में पाया गया कि 0.03 प्रतिशत जन्मों में रीनल एजेनेसिस होती है, जिनमें से अधिकांश संख्या एक किडनी वाले मामलों की होती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, कई बच्चों में एक क्रियाशील किडनी स्वाभाविक रूप से बड़ी हो जाती है जिससे यह दोनों किडनी का काम प्रभावी ढंग से कर पाती है।
इस प्रक्रिया को क्या कहते हैं?

इस प्रक्रिया को कम्पेंसटरी हाइपरट्राफी कहा जाता है। अध्ययनों से पता चलता है कि जिन बच्चों की किडनी पूरी तरह से काम नहीं करती, उनके लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण बेहद सकारात्मक है। 2,684 रोगियों का विश्लेषण करने वाली एक व्यापक समीक्षा में पाया गया कि जहां कुछ रोगियों में प्रोटीनूरिया या उच्च रक्तचाप की समस्या हो सकती है, वहीं अधिकांश रोगियों में वयस्कता तक किडनी सामान्य रूप से कार्य करती रहती है।

प्रतिबंधित आहार या अत्यधिक सतर्क जीवनशैली जरूरी नहीं विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि एक किडनी वाले बच्चों को प्रतिबंधित आहार या अत्यधिक सतर्क जीवनशैली की आवश्यकता नहीं होती। उनके लिए फुटबाल, दौड़ना, साइकिल चलाना और तैराकी सहित अधिकांश खेल सुरक्षित हैं। कुछ अन्य खेलों के लिए उन्हें सुरक्षात्मक उपकरणों या व्यक्तिगत चिकित्सा सलाह की आवश्यकता हो सकती है।

भारत में बाल चिकित्सा किडनी देखभाल के बारे में जागरूकता और निगरानी को लगातार मजबूत किया जा रहा है। विशेषज्ञ एक बात पर सहमत हैं - एक किडनी क्षमता की कोई सीमा नहीं है, बल्कि एक प्रबंधनीय चिकित्सा स्थिति है, और सही सहयोग से बच्चे स्वस्थ एवं सक्रिय जीवन जी सकते हैं।
कैसे करें देखभाल?

बाल स्वास्थ्य विशेषज्ञ, नेफ्रोलाजिस्ट और सर्जन ने दिए महत्वपूर्ण सुझाव मेदांता अस्पताल, गुरुग्राम में बाल शल्य चिकित्सा और बाल मूत्रविज्ञान विभाग के निदेशक डा संदीप कुमार सिन्हा ने कहा, \“\“जब माता-पिता को पता चलता है कि उनके बच्चे की एक किडनी है तो वे अक्सर चिंतित हो जाते हैं। लेकिन, इनमें से ज्यादातर बच्चे बिना किसी जटिलता के बड़े होते हैं।

नियमित निगरानी और जीवनशैली में कुछ सरल सावधानियों के साथ वे पूरी तरह से सामान्य बचपन का आनंद ले सकते हैं। नियमित देखभाल, खासकर सालाना रक्तचाप जांच और मूत्र परीक्षण से ये बच्चे बिल्कुल सामान्य, स्वस्थ और संतुष्ट जीवन जी सकते हैं।\“\“

रेनबो चिल्ड्रन्स हास्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डा अमित अग्रवाल ने कहा, \“\“शुरुआती जागरूकता और नियमित जांच से बहुत फर्क पड़ता है। एक किडनी वाले बच्चे की पहचान सीमित क्षमता नहीं, बल्कि उसके उस लचीलेपन और आत्मविश्वास से होती है, जिसे हम विकसित करने में मदद कर सकते हैं।\“\“
एक्सपर्ट्स ने क्या कहा?

फोर्टिस अस्पताल, नोएडा के वरिष्ठ सलाहकार और यूनिट प्रमुख डा अंकित प्रसाद ने कहा, \“\“मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक समर्थन समान रूप से महत्वपूर्ण है। उन्हें परामर्श देकर और शिक्षित करके अनावश्यक आशंका को दूर किया जा सकता है। पर्याप्त मात्रा में पानी, पर्याप्त नींद, कम सोडियम वाला आहार, नियमित शारीरिक गतिविधि और नियमित रक्तचाप की जांच आवश्यक है।\“\“

अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डा आशीष गुप्ता ने कहा, \“\“यूनिलेटेरल रीनल एजेनेसिस अक्सर वर्षों तक नजरअंदाज हो जाता है और संयोगवश पता चल जाता है। नियमित मूत्र प्रोटीन जांच, रक्तचाप की निगरानी और कभी-कभार अल्ट्रासाउंड ही आमतौर पर जरूरी होते हैं। रग्बी जैसे खेलों, ज्यादा नमक और किडनी को नुकसान पहुंचाने वाली दवाओं से बचना चाहिए।\“\“

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