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बांकेबिहारी मंदिर में टूटी सालों पुरानी ये बड़ी परंपरा, प्रबंधन समिति ने लगाई रोक

cy520520 2025-11-27 02:07:44 views 703

  



जागरण संवाददाता, वृंदावन। जगमोहन (गर्भ गृह चबूतरा) में प्रवेश पर उच्चाधिकार प्रबंधन समिति की रोक के निर्णय के बाद शनिवार को पहली बार ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में देहरी पूजन नहीं हो सका। जगमोहन का गेट बंदकर उस पर चढ़ने पर रोक लगा दी गई। सेवायतों ने इसका कड़ा विरोध किया। प्रबंधन समिति के चार में से दो सेवायत भी विरोध में शामिल रहे। सेवायतों का कहना है कि समिति का काम व्यवस्था बनना है, न कि व्यवस्था रोकना। देहरी पूजन एक पुरानी परंपरा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इस पर रोक लगाकर धार्मिक कार्यकलापों से छेड़छाड़ की जा रही है। मंदिर में विरोध करने के बाद सेवायतों ने जिलाधिकारी से मिलकर अपनी बात रखी। मंदिर की व्यवस्थाओं की देखरेख के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्चाधिकार प्रबंधन समिति ने भीड़ नियंत्रण के लिए गुरुवार को जगमोहन क्षेत्र में प्रवेश बंद करने का निर्णय लिया। रात ही जगमोहन के आसपास बैरिकेडिंग लगा दी गई।

जगमोहन के सामने वीआइपी कटघरा पांच गुणा बढ़ा दिया गया। जगमोहन में ही देहरी पूजन किया जाता है। यह परंपरा काफी पुरानी है। शनिवार सुबह पौने नौ बजे जब सेवायत यजमानों को लेकर पहुंचे तो उन्हें जगमोहन पर चढने से रोक दिया गया। इसका सेवायतों ने जमकर विरोध किया। सेवायत शैलेंद्र गोस्वामी, श्रीवर्धन गोस्वामी, बब्बू गोस्वामी के प्रतिनिधि शशांक गोस्वामी सहित सभी ने एक स्वर में कहा कि यह मंदिर की मूल सेवा पद्धति से छेड़छाड़ है।

डीएम ने अहित ना होने देने का दिया भरोसा

मंदिर में 20 मिनट विरोध जताने के बाद सेवायत डीएम में मिलने मथुरा पहुंचे। डीएम ने सेवायतों का अहित न होने देने का भरोसा दिया। सेवायतों का कहना है कि यदि व्यवस्था बहाल नहीं हुई तो उन्हें कोर्ट की शरण लेनी पड़ेगी। विजय कृष्ण गोस्वामी ने आशंका जताई कि लगता नहीं कि देहरी पूजन परंपरा दोबारा चालू हो सकेगी। श्रीवर्धन गोस्वामी ने कहा कि सेवायत किसी भी सही व्यवस्था का समर्थन करते हैं, लेकिन यह निर्णय अधिकार समाप्त करने वाला लगता है।

समिति के सदस्य दिनेश गोस्वामी का कहना है कि व्यवस्था ऐसी हो, जिससे श्रद्धालुओं को सुगम दर्शन हो सके। वीआइपी कटघरे का आकार बढ़ा है तो वीआइपी पर्ची सुविधा बहाल की जानी चाहिए, ताकि भीड़ संतुलित रहे। बैरिकेडिंग लगने से पुरुष–महिला दोनों कटघरे खत्म हो गए हैं।

भीड़ को रोका नहीं गया और मंदिर के अंदर जगह कम होने के कारण शनिवार को धक्कामुक्की की स्थिति बन गई। जिलाधिकारी सीपी सिंह का कहना है कि उच्चाधिकार प्रबंधन समिति ने जो नई व्यवस्थाएं लागू की हैं, उन पर सेवायतों ने आपत्ति जताई है। उच्चाधिकार प्रबंधन समिति श्रद्धालुओं के हित में कार्य करती रहेगी। ध्यान रखा जाएगा कि सेवायतों का भी अहित न हो।  

मंदिर निर्माण के साथ ही शुरू हुई देहरी पूजन की परंपरा

सेवायतों का दावा है कि देहरी पूजन की परंपरा 1864 में मंदिर निर्माण के साथ ही शुरू हो गई थी। शुरूआत में सेवायत परिवारों की वृद्ध माताएं ही देहरी पूजन करती थीं। बाद में सेवायत के यजमान भी करने लगे। वरिष्ठ सेवायत चुन्नीलाल, श्रीगोपाल गोस्वामी ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया।

भक्तों की संख्या बढ़ने के साथ पिछले पांच-छह दशक में यह परंपरा काफी लोकप्रिय हो गई। इस परंपरा ही एक कड़ी स्वामी हरिदास से भी जुड़ती है। स्वामी हरिदास के समय में अकबर द्वारा लाया गया इत्र भी ठाकुरजी की देहरी पर अर्पित कराया गया था।
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