श्रवण कुमार की कहानी
जागरण संवाददाता, नालंदा। नालंदा जिले की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ और सादगीपूर्ण नेतृत्व शैली के लिए पहचाने जाने वाले श्रवण कुमार जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेता और बिहार की राजनीति के सबसे प्रभावशाली चेहरों में से एक हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
उन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे करीबी और भरोसेमंद सहयोगियों में गिना जाता है। वे बिहार मंत्रिमंडल में ग्रामीण विकास और संसदीय कार्य मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं।
नालंदा से शुरू हुआ सफर
20 अगस्त 1957 को नालंदा जिले के एक कुर्मी परिवार में जन्मे श्रवण कुमार ने अपनी शुरुआती पढ़ाई स्थानीय विद्यालयों में की। 1977 में उन्होंने एस.पी.एम. कॉलेज, बिहारशरीफ से इंटरमीडिएट की शिक्षा पूरी की।
राजनीति में आने से पहले वे कृषि और सामाजिक कार्य से जुड़े रहे, जिससे उन्हें जमीनी स्तर पर समाज की समस्याओं को समझने का अनुभव मिला।
जेपी आंदोलन से मिली दिशा
श्रवण कुमार की राजनीतिक यात्रा जेपी आंदोलन से शुरू हुई थी। 1994 में जब समता पार्टी का गठन हुआ, तभी से वे नीतीश कुमार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे। यही विश्वास और निष्ठा उन्हें आज भी बिहार की राजनीति में एक मजबूत स्तंभ बनाती है।
लगातार आठ बार विधायक — नालंदा का अटूट विश्वास
1995 में समता पार्टी के टिकट पर पहली बार नालंदा विधानसभा से चुनाव लड़कर उन्होंने जीत दर्ज की और तब से लेकर 2020 तक लगातार आठ बार विजय हासिल की। यह उपलब्धि उन्हें बिहार के सबसे सफल विधायकों की श्रेणी में लाती है।
नालंदा सीट को आज जेडीयू का सुरक्षित गढ़ माना जाता है, जिसका श्रेय बड़े पैमाने पर श्रवण कुमार के मजबूत जनाधार को जाता है।
कैबिनेट में निभाई अहम भूमिका
नीतीश कुमार के नेतृत्व में श्रवण कुमार कई बार मंत्रिमंडल का हिस्सा रहे हैं। ग्रामीण विकास और संसदीय कार्य मंत्री के रूप में उन्होंने राज्य में विकास कार्यों और प्रशासनिक समन्वय में उल्लेखनीय योगदान दिया।
श्रवण कुमार का राजनीतिक जीवन समर्पण, सरलता और जनता के बीच गहरी पकड़ का उदाहरण है। नालंदा जिला ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार की राजनीति में उनका प्रभाव और योगदान लंबे समय तक याद किया जाएगा। |