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ब्लैक फंगस से जबड़ा गंवाने वालों की लौटी मुस्कान, एम्स भोपाल ने 52 मरीजों को दिया नया जीवन

LHC0088 8 hour(s) ago views 413

  



नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। ब्लैक फंगस (म्यूकोरमायकोसिस) के संक्रमण कई मरीजों का जबड़ा छीन लिया, मगर एम्स भोपाल के डॉक्टरों ने ऐसे ही कुछ मरीजों को फिर से मुस्कुराने का कारण दे दिया। कोविड काल के बाद इस बीमारी से जबड़ा गंवा चुके 52 लोग अब न सिर्फ सामान्य जीवन जी रहे हैं, बल्कि आत्मविश्वास से समाज में सक्रिय भी हो गए हैं। सालभर घरों में कैद रहने वाले इन मरीजों को एम्स की सर्जरी टीम ने ‘जायगोमैटिक इम्प्लांट’ तकनीक से नया चेहरा और नई उम्मीद दी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इन मरीजों की इस प्रेरणादायक कहानी को दक्षिण कोरिया के प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘आर्काइव्स ऑफ क्रेनियोफेशियल सर्जरी’ में प्रकाशित किया गया है।
चिड़चिड़ापन गया, लौटा आत्मविश्वास

इस शोध का नेतृत्व डॉ. अंशुल राय, प्रोफेसर (डेंटिस्ट्री विभाग) ने किया। उन्होंने बताया कि उद्देश्य सिर्फ सर्जरी नहीं, बल्कि मरीजों की जीवनशैली को सामान्य बनाना था। ब्लैक फंगस के बाद जबड़ा गंवाने वाले अधिकांश मरीज समाज से कट गए थे। वे अपने ही घर के कार्यक्रमों में शामिल नहीं होते थे और हर वक्त चेहरा ढककर रहते थे। उनमें हीन भावना घर कर गई थी।

एम्स की टीम ने उनके उपचार का बीड़ा उठाया और थ्रीडी प्रिंटिंग तकनीक से सटीक योजना बनाकर आंख के पास की हड्डी (जायगोमैटिक बोन) में 77 इम्प्लांट्स लगाए। यह बेहद जटिल सर्जरी थी, जिसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी।

  
चेहरों पर लौटी मुस्कान

सफल सर्जरी के बाद अब ये मरीज सामान्य रूप से बोल रहे हैं, खा-पी रहे हैं और आत्मविश्वास से समाज में शामिल हो रहे हैं। जो चेहरे पहले नकाब के पीछे छिपे थे, अब वे खुले दिल से मुस्कुरा रहे हैं।

एम्स भोपाल अब उन लोगों के लिए नई उम्मीद बन गया है, जो ब्लैक फंगस या गंभीर मुख-विकृतियों से जूझ रहे हैं। डॉक्टरों की यह उपलब्धि न सिर्फ चिकित्सा क्षेत्र की सफलता है, बल्कि उन लोगों के लिए जीवन की नई शुरुआत है जिन्होंने कभी मुस्कुराना छोड़ दिया था।
क्या है ब्लैक फंगस?

ब्लैक फंगस या म्यूकोरमायकोसिस एक गंभीर फंगल संक्रमण है, जो आमतौर पर कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों को प्रभावित करता है। कोविड-19 संक्रमण और डायबिटीज से पीड़ित मरीजों में इसके मामले अधिक देखे गए थे। यह नाक, आंख, साइनस और जबड़े की हड्डियों को संक्रमित कर सकता है, और समय पर इलाज न मिलने पर जानलेवा साबित हो सकता है।
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