बिहार का मौजूदा ग्रोथ मॉडल कमजोर, इसलिए विकास में रह गया पीछे; खेती-किसानी पर 70% निर्भरता; कोटक की रिपोर्ट
नई दिल्ली। बिहार में हुए विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर से नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। अब इस सरकार को बिहार में विकास लाने के लिए ग्रोथ मॉडल को बदलना होगा। बिहार को लेकर कोटक-ICRIER सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर एग्रीकल्चर पॉलिसी ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार की ग्रोथ रेट क्या है और क्यों उसका वर्तमान विकास मॉडल राज्य को गति नहीं दे पा रहा है, जिसका वह हकदार है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
Kotak ICRIER Centre Of Excellence For Agriculture की रिपोर्ट में बिहार की खेती-बाड़ी की अर्थव्यवस्था में गंभीर ढांचागत दिक्कतों की ओर इशारा किया गया है और दावा किया गया है कि विकास का मौजूदा मॉडल दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य के लिए काम का नहीं रहा है। यानी विकास के लिए बनाए गए मॉडल में बदलाव की आवश्यकता है। राज्य का गैर-लाभकारी कृषि क्षेत्र प्रति व्यक्ति आय को भारत में सबसे कम बनाए हुए है।
70% लोग रोजी रोटी के लिए खेती किसानी पर निर्भर
कोटक-ICRIER सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर एग्रीकल्चर पॉलिसी, सस्टेनेबिलिटी, एंड इनोवेशन्स (KICEAPSI) की रिपोर्ट का टाइटल है ‘बिहार की आर्थिक दुविधा – यह कुछ पिछड़े राज्यों से क्या सीख सकता है?’ में 5 रिसर्च स्टडीज को एक साथ शामिल किया गया है। ये रिपोर्ट राज्य के खेती-बाड़ी के काम में लगातार कमियों और गांवों की इनकम बढ़ाने के लिए जरूरी पॉलिसी बदलावों का पता लगाते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, “बिहार के लिए खेती बहुत जरूरी है क्योंकि लगभग 70-75 प्रतिशत आबादी रोजी-रोटी के लिए खेती या उससे जुड़े कामों पर निर्भर है। जब तक खेती में जान नहीं आती और यह ज्यादा फायदेमंद नहीं हो जाती, बिहार के अधिकतर लोगों के लिए खुशहाल बनना मुश्किल है।”
बिहार में विकास का असंतुलन
इस रिपोर्ट के पूर्वी मध्य राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल की बात की गई है। रिपोर्ट में बताया गया कि ये राज्य आर्थिक इंडिकेटर्स पर पीछे हैं। लेकिन इनमें बिहार सबसे पीछे हैं। यहां विकास का असंतुलन सबसे साफ दिखता है।
2024-25 में प्रति व्यक्ति नेशनल स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (NSDP) ~69,321 के साथ, बिहार सबसे गरीब बड़ा राज्य है। बिहार के 54.2 प्रतिशत वर्कफोर्स को खेती से रोजगार मिलता है और ग्रॉस स्टेट वैल्यू एडेड (GSVA) में इसका 23.1 प्रतिशत हिस्सा है। हालांकि, 97 प्रतिशत से ज्यादा जमीनें मार्जिनल या छोटी हैं, जिनका एवरेज 0.39 हेक्टेयर है, जिससे मशीनीकरण और प्रोडक्टिविटी सीमित हो जाती है।
रोजी रोटी के लिए लाखों लोग दूसरे राज्यों का करते हैं रुख
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “नॉन-फार्म सेक्टर के सीमित विस्तार के कारण, बिहार और यूपी से लाखों लोग लोकल रोजी-रोटी के मौकों की कमी के कारण दूसरे राज्यों में कंस्ट्रक्शन और सर्विस में काम करने के लिए चले जाते हैं।“
खेती किसानी में लाने होंगे ये बड़े बदलाव
कोटक-ICRIER सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर एग्रीकल्चर पॉलिसी, सस्टेनेबिलिटी, एंड इनोवेशन्स (KICEAPSI) की रिपोर्ट में बिहार की चुनौतियों के लिए कई तरह के पॉलिसी समाधान सुझाए गए हैं, जो खेती में अलग-अलग तरह के बदलाव, इंफ्रास्ट्रक्चर और इंस्टीट्यूशनल इनोवेशन पर आधारित हैं।
- इसमें मुख्य फसलों से ज्यादा मत वाली बागवानी और पशुधन पर ध्यान देने, ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को बढ़ावा देने और छोटे किसानों को बेहतर बाजार तक पहुंच और मशीनीकरण के लिए इकट्ठा करने में मदद करने के लिए डिजिटल टूल्स पर ज़ोर दिया गया है।
- डीजल पर निर्भरता कम करने के लिए रिन्यूएबल एनर्जी से चलने वाली सिंचाई को बढ़ाना, डबल क्रॉपिंग को बढ़ावा देना और गैर-खेती के फॉर्मल रोजगार को बढ़ाना, जिसमें कपड़े बनाने जैसे सेक्टर में महिलाओं की भागीदारी शामिल है, कुछ ऐसे समाधान हैं जो दिए गए हैं।
मध्य प्रदेश ने खुद को बदला, बिहार को भी वही बदलाव चाहिए
रिपोर्ट में बिहार की तुलना मध्य प्रदेश में खेती में तेजी से हो रहे बदलाव से करते हुए कहा गया है कि दो ‘बीमारू’ (बिहार-मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) राज्यों के बीच का अंतर बहुत ज्यादा है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “2005 से, MP की मजबूत पॉलिटिकल लीडरशिप ने सिंचाई, प्रोक्योरमेंट और डाइवर्सिफिकेशन में सुधार किए हैं।”
इसके उलट, बिहार सिंचाई के लिए डीजल पर निर्भर है, जहाँ 77 परसेंट पंप डीजल से चलते हैं। इससे प्रोडक्शन की लागत बढ़ती है और पर्यावरण की चिंताएं बढ़ती हैं।
इन क्षेत्रों पर देना होगा ध्यान
रिपोर्ट में बिहार से बुनियादी सुधारों के तौर पर ग्रामीण बिजली, सोलर सिंचाई और फीडर लाइन को अलग करने पर जोर देने की अपील की गई है। 2025 में बनाया गया नेशनल मखाना बोर्ड, इसके प्रोडक्शन, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग और एक्सपोर्ट को बढ़ाने के लिए एक बड़ा इंस्टीट्यूशनल कदम है। लेकिन, रिपोर्ट बताती है कि मखाना प्रोसेसिंग में मशीनीकरण अभी भी शुरुआती दौर में है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “एक अनऑर्गनाइज्ड मार्केटिंग सिस्टम से कीमतों में उतार-चढ़ाव, खराब इंफ्रास्ट्रक्चर और किसानों की मोलभाव करने की ताकत कमजोर होती है।
बिहार में APMC एक्ट न होने से डेटा कलेक्शन और मार्केट ट्रांसपेरेंसी में रुकावट आती है। साथ ही, कम मशीनीकरण, ज्यादा लागत और ट्रेनिंग की कमी से प्रोसेसिंग ठीक से नहीं हो पाती, एक जैसी नहीं रहती और एक्सपोर्ट रिजेक्ट होने का खतरा बना रहता है।”
यह भी पढ़ें- EPFO Pension: 10 साल कर ली प्राइवेट नौकरी तो कितनी मिलेगी पेंशन, सरकारी से कम या ज्यादा; देखें कैलकुलेशन |