बोन मैरो : शरीर की इम्युनिटी से लेकर ब्लड ग्रुप तक का असली नियंता
- अस्थि मज्जा की अद्भुत दुनिया: रक्त निर्माण, रोग प्रतिरोध और मानसिक स्वास्थ्य से गहरा संबंध
- बोन मैरो क्यों है शरीर का सबसे खास हिस्सा? जानिए इसके वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक रहस्य
- 50 अरब रक्त कोशिकाएं रोज बनती हैं यहीं से: बोन मैरो का चमत्कारी योगदान
नई दिल्ली। हमारे शरीर की कार्यप्रणाली में अस्थि मज्जा यानी बोन मैरो की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। यह हड्डियों के भीतर मौजूद स्पंजी ऊतक है, जो रक्त निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। प्रतिदिन लगभग 50–100 अरब नई रक्त कोशिकाएं बोन मैरो से ही बनती हैं।
इसमें दो प्रकार के मज्जा पाए जाते हैं: लाल मज्जा और पीला मज्जा। लाल मज्जा से लाल रक्त कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स का निर्माण होता है, जबकि पीला मज्जा वसा संग्रहित करता है और आवश्यकता पड़ने पर रक्त निर्माण में योगदान देता है। बचपन में लगभग सभी हड्डियों में लाल मज्जा पाया जाता है, लेकिन उम्र बढ़ने पर इसका बड़ा हिस्सा पीले मज्जा में बदल जाता है और वृद्धावस्था में यह मुख्यतः छाती, श्रोणि और पसलियों की हड्डियों में ही सक्रिय रहता है।
बोन मैरो न केवल खून बनाता है, बल्कि हमारी प्रतिरक्षा शक्ति की नींव भी रखता है। यहीं से बनने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं शरीर को वायरस, बैक्टीरिया और फंगस से बचाती हैं। यही कारण है कि जब भी शरीर में अधिक रक्तस्राव होता है, अस्थि मज्जा तुरंत अपनी गति बढ़ाकर नई रक्त कोशिकाएं बनाने लगता है। इतना ही नहीं, यही हमारा ब्लड ग्रुप भी तय करता है।
आधुनिक शोध बताते हैं कि अस्थि मज्जा से उत्पन्न कुछ कोशिकाएं मस्तिष्क की सूजन को प्रभावित करती हैं, यानी इसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी होता है। इसके भीतर मौजूद निच नामक सूक्ष्म वातावरण स्टेम कोशिकाओं को यह तय करने का निर्देश देता है कि उन्हें किस प्रकार की कोशिका बनना है। यही कारण है कि भविष्य की चिकित्सा पद्धति में स्टेम सेल थेरेपी, कृत्रिम अंग निर्माण और ऊतक पुनर्निर्माण में इसका महत्व तेजी से बढ़ रहा है।
बोन मैरो की कमजोरी कई गंभीर बीमारियों का कारण बनती है। इनमें एप्लास्टिक एनीमिया (जहां बोन मैरो पर्याप्त रक्त कोशिकाएं नहीं बना पाता), ल्यूकेमिया (रक्त कैंसर), मायलोफाइब्रोसिस (मज्जा का सख्त होना), थैलेसीमिया (असामान्य आरबीसी का निर्माण) और कीमोथेरेपी या संक्रमण से होने वाली समस्याएं प्रमुख हैं। ऐसे मामलों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट जीवन रक्षक साबित होता है।
आयुर्वेद में बोन मैरो को मज्जा धातु कहा गया है। चरक संहिता के अनुसार मज्जा हड्डियों के भीतर स्थित वह पोषक तत्व है जो शरीर को बल और स्थिरता प्रदान करता है। गिलोय, अश्वगंधा, शतावरी, चुकंदर, अनार, घी और दूध जैसे आहार को मज्जा धातु के लिए श्रेष्ठ माना गया है। वात दोष की वृद्धि और पोषण की कमी अस्थि मज्जा की कमजोरी का मुख्य कारण समझे जाते हैं।

Deshbandhu
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