मुजफ्फरनगर के गांव सोरम में पंचायत को लेकर सजाई गई ऐतिहासिक चौपाल। जागरण
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरनगर। परंपराओं को जीवंत रखने और कुरीतियों को नष्ट करने के कदम उठाने वाली खाप पंचायतें रविवार से गांव सोरम में एक मंच पर होंगी। मौका होगा सर्व खाप महापंचायत का। तीन दिनों तक पंच मंथन करेंगे, आने वाली पीढ़ी की बेहतरी का चिंतन होगा, वर्तमान परिवेश की खामियां इंगित की जाएंगी। अंतिम दिन 18 नवंबर को सर्वखाप पंचायत निर्णय सुनाएगी और इन पर अमल का संकल्प लिया जाएगा। दरअसल 15 साल बाद सोरम में सर्वखाप महापंचायत होने जा रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
16 से 18 नवंबर तक देशभर से खाप चौधरी, थांबेदार समेत गणमान्य लोग जुटेंगे। आयोजन की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। लगभग 100 बीघा भूमि में पंचायत स्थल बना है, जिसमें से 30 बीघा में मंच और लोगों के बैठने की व्यवस्था है। बाकी हिस्से पर पार्किंग और अन्य इंतजाम रहेंगे। प्रथम दिन पंचायत का आरंभ भागवत पीठ श्री शुकदेव आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद महाराज करेंगे। अगले दिन 17 नवंबर को जम्मू-कश्मीर के डिप्टी सीएम सुरेंद्र सिंह पंचायत को संबोधित करेंगे। भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की प्रतिमा का अनावरण भी होगा।
खाप पंचायतों का इतिहास खाप पंचायतों का अपना इतिहास है, जो हिंदू हृदय सम्राट राजा हर्षवर्धन के समय ई. 643 से जुड़ा है। उस दौर में देशभर में 185 खाप थीं, लेकिन वर्तमान में 365 हो गई हैं। सभी खापों के ऊपर एक सर्व खाप है, जिसका मुख्यालय शाहपुर क्षेत्र के गांव सोरम में है। यहां ऐतिहासिक चौपाल से आजादी की लड़ाई का बिगुल भी फूंका गया। मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, मेरठ, बिजनौर, बुलंदशहर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर समेत हरियाणा तक इन खापों की परंपरा चली आ रही है।
खाप में चौधरी के अलावा कुछ गांवों को मिलाकर थांबेदार होते हैं। सर्व खाप पंचायत के निर्णयों को सभी खाप के चौधरी और थांबेदार अमल में लाते हैं। आजादी के बाद से अब तक सर्व खाप की सात पंचायतें हो चुकी हैं। वर्ष 2010 में अंतिम बार सोरम में सर्वखाप पंचायत हुई थी।
पंचायतों के अहम निर्णय
सर्व खाप के मंत्री चौधरी सुभाष बालियान बताते हैं कि वर्ष 1950 में सर्वखाप की पहली पंचायत में विवाह में फिजूलखर्ची रोकने का निर्णय हुआ। तब पांच बर्तन, पांच कपड़े और 11 बराती लाने पर सहमति बनी थी। उसके बाद 1951 में पिछली पंचायतों के निर्णय पर अमल की समीक्षा हुई, जबकि 1952 की पंचायत में परिवारों में होते बिखराव और विवादों का निपटारे का निर्णय हुआ। वर्ष 1965, 1966 व 1967 की पंचायत ने युवाओं को नशाखोरी से हटाने और पारंपरिक खेलों में रुचि बढ़ाने का निर्णय लिया। फिर 2006 में दहेज, भ्रूण हत्या, मृत्यु भोज के खात्मे और गांवों में होते झगड़ों को आपसी समझौते से निपटाने का निर्णय लिया गया। वर्ष 2010 की पंचायत में पुराने निर्णयों की समीक्षा के अलावा युवा पीढ़ी में मोबाइल के दुरुपयोग से बचने का निर्णय हुआ। |