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Teghra Vidhan Sabha: 15 साल बाद तेघड़ा विधानसभा में खिला कमल, रजनीश कुमार ने ध्वस्त किया वामपंथ का किला

LHC0088 2025-11-16 05:35:52 views 669

  

15 साल बाद तेघड़ा विधानसभा में भाजपा का कब्जा



संवाद सूत्र, बीहट (बेगूसराय)। तेघड़ा विधानसभा क्षेत्र में एक बार फिर 15 वर्षों बाद भाजपा प्रत्याशी रजनीश कुमार ने भाकपा प्रत्याशी रामरतन सिंह को बड़े अंतर से पराजित कर कमल फूल खिलाया और शानदार जीत दर्ज की।

जानकारी के अनुसार, विगत वर्ष 1962 से 2005 तक तेघड़ा एवं बरौनी विधानसभा में भाकपा का लगातार दबदबा रहा। लेकिन विगत वर्ष 2010 में तेघड़ा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी ललन कुंवर ने भाकपा प्रत्याशी रामरतन सिंह को 5846 मतों से पराजित कर पहली बार वामपंथ के किले को ध्वस्त कर कमल फूल खिलाया था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा एवं भाकपा को पराजित करते हुए राजद प्रत्याशी वीरेंद्र कुमार ने भाजपा प्रत्याशी रामलखन सिंह को 15611 मतों से पराजित किया। जबकि तीसरे स्थान पर भाकपा प्रत्याशी रामरतन सिंह रहे थे।

इसके बाद विगत वर्ष 2020 में एक बार फिर भाकपा प्रत्याशी रामरतन सिंह ने एकतरफा लहर के साथ जदयू प्रत्याशी वीरेंद्र कुमार एवं लोजपा प्रत्याशी ललन कुंवर को पराजित किया। रामरतन सिंह को जहां 85229 मत, जदयू प्रत्याशी वीरेंद्र कुमार को 37250 मत मिले, वहीं रामरतन सिंह 47979 मतों से विजयी हुए।

इस बार 2025 के विधानसभा चुनाव में भाकपा प्रत्याशी रामरतन सिंह दूसरी बार अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं हो सके। भाजपा एवं एनडीए प्रत्याशी रजनीश कुमार ने भाकपा प्रत्याशी रामरतन सिंह को 35 हजार से अधिक मतों से पराजित कर 15 वर्षों बाद भाजपा का कमल फूल तेघड़ा विधानसभा में खिल गया।

वामपंथ किला को फिर एक बार भाजपा ने ध्वस्त कर दिया। भाकपा की हार के बाद भाकपा बीहट कार्यालय में जहां कार्यकर्ताओं और नेताओं में मायूसी छाई रही। वहीं भाजपा कार्यकर्ताओं में जश्न का माहौल दिखा।

बीहट भाकपा कार्यालय में कार्यकर्ताओं के साथ बैठे तेघड़ा विधानसभा के महागठबंधन प्रत्याशी रामरतन सिंह ने कहा कि इस चुनाव में जब बड़े-बड़े लोग धराशायी हो गए, तो हम क्या हैं।

उन्होंने कहा कि हम सदैव संघर्ष करते रहे हैं और आगे भी संघर्ष जारी रहेगा। एटक के महासचिव प्रहलाद सिंह ने कहा कि इस बार के चुनाव में धनबल और बाहुबल का बोलबाला रहा है। काम करने वाले व सामाजिक कार्यकर्ता की पूछ नहीं रही। यह समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
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