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Jharkhand Tourism: भगवान बुद्ध ने यहां की थी साधना, लेकिन बौद्ध सर्किट से नहीं जुड़ पाया इटखोरी भद्रकाली मंदिर

LHC0088 2025-11-16 05:35:53 views 599
  

इटखोरी में धार्मिक पर्यटन की बड़ी संभावनाओं के बावजूद नहीं हुई कोई ठोस पहल।



पंकज सिंह, जागरण इटखोरी (चतरा) : धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण स्थल होने के बावजूद इटखोरी अब तक बौद्ध सर्किट से नहीं जुड़ पाया है। यह वह स्थान है, जहां बौद्ध धर्म और आस्था की गहरी जड़ें हैं। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने से पहले कुछ समय इटखोरी में साधना की थी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
रघुवर दास की सरकार ने बनाई थी योजना

इसके बावजूद यह क्षेत्र पर्यटन मानचित्र पर अपनी पहचान नहीं बना सका है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की सरकार ने बिहार के बोधगया, चतरा के कौलेश्वरी मंदिर और इटखोरी के ऐतिहासिक मां भद्रकाली मंदिर को जोड़कर एक धार्मिक सर्किट बनाने की योजना बनाई थी। तीनों ही स्थल बौद्ध धर्म से जुड़े होने के कारण इसे बौद्ध सर्किट का नाम दिया गया था।

इस योजना का उद्देश्य था कि बोधगया आने वाले श्रद्धालु कौलेश्वरी और इटखोरी भी जाएं। जिससे झारखंड के धार्मिक पर्यटन को नई पहचान मिले। उस समय के पर्यटन मंत्री अमर बाउरी ने कहा था कि बोधगया, कौलेश्वरी और भद्रकाली मंदिर तीनों ऐतिहासिक स्थल हैं। इन्हें जोड़ने से धार्मिक पर्यटन को बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर खुलेंगे।
बोधगया से कौलेश्वरी होते हुए इटखोरी तक सड़क निर्माण का था प्रस्ताव

योजना के तहत बोधगया से कौलेश्वरी होते हुए इटखोरी तक सड़क निर्माण का प्रस्ताव था, ताकि पर्यटक तीनों जगह आसानी से पहुंच सकें। इस दिशा में कुछ प्रारंभिक पहल भी हुई थी। बिहार के टूर एंड ट्रैवल एजेंटों को इटखोरी बुलाकर मंदिर परिसर का भ्रमण कराया गया था, ताकि इसे बौद्ध सर्किट से जोड़ा जा सके।

लेकिन इसके बाद यह योजना फाइलों में ही अटक गई। न सड़क बनी, न कोई विकास कार्य शुरू हुआ। इसी बीच वर्ष 2017 में रघुवर सरकार ने इटखोरी के विकास के लिए 500 करोड़ रुपये का मास्टर प्लान भी तैयार किया था। 2019 में इस मास्टर प्लान को मंजूरी भी मिल गई थी और पहले चरण को भवन निर्माण विभाग से तकनीकी स्वीकृति भी दी जा चुकी थी।
सरकार बदलने के बाद ठंडे बस्ते में दब गई योजना

लेकिन झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले योजना लागू नहीं हो सकी और सरकार बदलने के बाद पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया। आज की स्थिति यह है कि इटखोरी न तो बौद्ध सर्किट से जुड़ पाया और न ही मास्टर प्लान पर कोई काम हुआ। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर यह सर्किट बन जाता तो चतरा जिला धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सकता था।

हजारों लोगों को रोजगार मिलता और झारखंड का नाम देश-विदेश में धार्मिक पर्यटन मानचित्र पर दर्ज होता। लोगों को अब भी उम्मीद है कि सरकार इस योजना को फिर से शुरू करे, ताकि इटखोरी अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक पहचान को नई दिशा दे सके।
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