बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। इतना ही नहीं. राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की चुनावी भविष्यवाणी भी बिहार चुनाव में बुरी तरह गलत साबित हुई। दिलचस्प बात यह है कि पांच साल पहले की गई प्रशांत किशोर की एक ऐसी ही भविष्यणावी ने उन्हें ‘चुनावी जादूगर’ की पहचान दिलाई थी।
पहली भविष्यवाणी: 2020 का बंगाल चुनाव
दिसंबर 2020 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर ने दावा किया कि “BJP दो अंकों को पार करने के लिए संघर्ष करेगी और 100 से कम सीटें आएंगी। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो मैं अपना काम छोड़ दूंगा।“ नतीजे आए और BJP 77 सीटों पर सिमट गई। प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी सही निकली और उनके आत्मविश्वास को राष्ट्रीय पहचान मिली।
दूसरी भविष्यवाणी: 2025 का बिहार चुनाव
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इस बार परिस्थितियां अलग थीं। प्रशांत किशोर खुद अपनी नई पार्टी के साथ चुनावी मैदान में थे। जून 2025 में उन्होंने कहा था, “आप इसे लिख सकते हैं। JDU अपनी दम पर 25 से अधिक सीटें नहीं ला पाएगी। अगर ऐसा हुआ, तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा। चुनाव के बाद JDU का अस्तित्व ही संकट में होगा।“
लेकिन नतीजे बिल्कुल उलट रहे। नीतीश कुमार की JDU ने 85 सीटें जीतकर PK की भविष्यवाणी को पूरी तरह गलत साबित कर दिया। यह प्रशांत किशोर की रणनीतिक परफॉर्मेंस पर एक बड़ा सवाल है, खासकर जब उनकी खुद की पार्टी को 68 सीटों पर नोटा से भी कम वोट मिले।
PK ने क्यों जताया था इतना आत्मविश्वास?
पूरे चुनाव अभियान में प्रशांत किशोर बार-बार नीतीश कुमार की स्थिति पर सवाल उठाते रहे। उन्होंने दावा किया कि नीतीश कुमार “मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर“ हो चुके हैं। वे जनता के मुद्दों पर “फोकस नहीं कर पा रहे“ हैं। उनकी पार्टी के सर्वे के मुताबिक बिहार में 62% लोग बदलाव चाहते हैं। लेकिन नतीजे बताते हैं कि मतदाताओं ने बदलाव नहीं, स्थिरता को तरजीह दी।
PK की पार्टी का प्रदर्शन और ‘अर्श या फर्श’ वाली बात
जब उनसे उनकी अपनी पार्टी के संभावित नतीजों पर सवाल हुआ, तो वे अक्सर कहते “अर्श पे या फर्श पे” यानी बहुत ऊपर या बिल्कुल नीचे। नतीजों में उनकी पार्टी वाकई निचले पायदान पर रही। इसके बावजूद उन्होंने कहा था कि हार भी हुई तो वे राजनीति छोड़कर नहीं जाएंगे, बल्कि अगले 10 साल बिहार में रहकर काम करेंगे।
उनके एजेंडे में स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में सुधार, माइग्रेशन रोकना, भ्रष्टाचार से निपटना, क्षमता निर्माण, नई राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत, जैसी कई घोषणाएं शामिल थीं।
PK की प्रतिष्ठा: चढ़ाव, उतार और उम्मीदें
साल 2012 में नरेंद्र मोदी के गुजरात अभियान और 2014 लोकसभा चुनाव में भारी जीत दिलाने के बाद प्रशांत किशोर को बड़ा चुनावी रणनीतिकार माना गया था। उत्तर प्रदेश के 2017 जैसे कुछ असफल अभियानों के बावजूद उनकी लोकप्रियता कभी ज्यादा प्रभावित नहीं हुई।
तो अब क्या करेंगे प्रशांत किशोर?
यह इस समय सबसे बड़ा सवाल है। प्रशांत किशोर ने खुद कहा था कि “अगर भविष्यवाणी गलत हुई, तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा।“ लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि वे बिहार में अगले 10 साल तक रहकर बदलाव की राजनीति करेंगे और वे हार के बाद भी जाने वाले नहीं हैं। प्रशांत किशोर ने कहा था कि वे \“10,000 घंटे के नियम\“ की तरह लगातार मेहनत करेंगे। अब सबकी नजरें उनके अगले कदम पर हैं।
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