Margashirsha Masik Shivratri 2025: मासिक शिवरात्रि पूजा विधि।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का व्रत देवों के देव महादेव और माता पार्वती को समर्पित है। यह पर्व हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। मार्गशीर्ष माह में पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि का विशेष महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाने का एक बेहद शुभ अवसर (Margashirsha Masik Shivratri 2025) होता है, तो आइए इससे जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कब है मासिक शिवरात्रि? (Margashirsha Masik Shivratri 2025 Date And Time)
हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 18 नवंबर को सुबह 07 बजकर 12 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इसका समापन 19 नवंबर की सुबह 09 बजकर 43 मिनट पर होगा। मासिक शिवरात्रि पर निशा काल की पूजा का महत्व है। ऐसे में मासिक शिवरात्रि 18 नवंबर को मनाई जाएगी।
मासिक शिवरात्रि का महत्व (Margashirsha Masik Shivratri 2025 Significance)
मार्गशीर्ष महीने की मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा करने से भक्त को सुख, शांति, आरोग्य और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से अविवाहित महिलाओं को मनचाहा वर और विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है। मान्यता है कि इस दिन शिव-पार्वती की एक साथ पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट और बाधाएं दूर होती हैं।
मासिक शिवरात्रि पूजा विधि (Margashirsha Masik Shivratri 2025 Puja Vidhi)
- सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें।
- शिवलिंग का सबसे पहले जल और फिर पंचामृत से अभिषेक करें।
- भगवान शिव को बिल्व पत्र, धतूरा, भांग, शमी के पत्ते, सफेद चंदन, अक्षत, और पुष्प अर्पित करें।
- माता पार्वती को सुहाग की सामग्री, लाल वस्त्र और फूल चढ़ाएं।
- घी का दीपक जलाकर \“ॐ नमः शिवाय\“ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।
- शिवरात्रि व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
- निशिता काल के समय में भी पूजा जरूर करें और अगले दिन सुबह व्रत का पारण करें।
पूजन मंत्र (Margashirsha Masik Shivratri 2025 Pujan Mantra)
- ॐ नमः शिवाय ॥
- शिव गायत्री मंत्र: ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
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