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कोलकाता में देख-रेख को तरस रहा राष्ट्रगीत के रचयिता बंकिम चंद्र का आवास

Chikheang 2025-11-13 04:06:41 views 473

  

\“वंदे मातरम\“ के रचयिता ने जिस घर में ली थी अंतिम सांस, वह स्थान उपेक्षित (फोटो- जागरण)



राजीव कुमार झा, जागरण, कोलकाता। इस समय देश जब राष्ट्र गीत \“वंदे मातरमÓ के 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है, उस अमर गीत के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी ने कोलकाता के जिस घर में अंतिम सांस ली थी, वह आज सरकारी उपेक्षा के कारण देख-रेख को तरस रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
\“वंदे मातरम\“ के रचयिता ने जिस घर में ली थी अंतिम सांस, वह स्थान उपेक्षित

किताबों के लिए मशहूर कोलकाता के कालेज स्ट्रीट से सटे 5, प्रताप चटर्जी लेन स्थित इस घर में प्रसिद्ध लेखक, कवि व उपन्यासकार बंकिम चंद्र ने अपने जीवन के अंतिम करीब छह-सात वर्ष बिताए थे और यहीं अप्रैल, 1894 में उनका निधन हुआ था।
वाममोर्चा सरकार ने घर का अधिग्रहण किया था

लगभग ढाई दशक पहले बंगाल की तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने उनके इस घर का अधिग्रहण किया था। बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने उनके घर को पुस्तकालय में बदलकर उस जगह उनके नाम पर एक भव्य पुस्तकालय भवन बनवाया। फरवरी, 2006 में बुद्धदेव ने ही इस पुस्तकालय का उद्घाटन किया था, लेकिन अब यह बदहाल है।

बंकिम चंद्र के आवास को दूर-दूर से देखने आने वाले लोगों, स्थानीय निवासियों और बंकिम के वंशजों की शिकायत है कि यह घर-सह-पुस्तकालय हमेशा बंद ही रहता है। साल में कभी-कभार ही खुलता है। वर्षों से यह शोभा की वस्तु बनकर रह गई है।
वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ के दिन भी बंद था द्वार

वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर सात नवंबर को जब विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी बंकिम चंद्र के आवास पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने गए थे तो उस दिन भी वह बंद था। परिसर की दीवार पर लगी ग्रिल पर स्थानीय लोग कपड़े सुखा रहे थे और दोनों प्रवेश द्वार पर ताला लटका था।

नतीजतन, सुवेंदु अंदर नहीं जा सके। एक भाजपा कार्यकर्ता ने किसी तरह दीवार फांदकर अंदर दाखिल होकर परिसर में स्थापित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया था। सुवेंदु ने परिसर द्वार को बंद पाकर व बदहाल हालात देखकर निराशा जताते हुए ममता सरकार पर बंगाल व देश के गौरवशाली सपूत का अपमान करने का आरोप लगाया था।
प्रदेश भाजपा ने बंकिम चंद्र के घर के रखरखाव के लिए पीएम को लिखा है पत्र

इसके बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य ने हाल में संवाददाता सम्मेलन कर बदहाली का मुद्दा उठाया और दावा किया कि बंकिम चंद्र का घर उपेक्षित अवस्था में है। उन्होंने इसके रखरखाव के संबंध में प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा है और केंद्र से इसे अपने हाथ में लेने की मांग की।

बंकिम चंद्र की पांचवीं पीढ़ी के दो सदस्य सजल चटर्जी और सुमित्रा चटर्जी ने भी प्रदेश भाजपा नेतृत्व के साथ मिलकर इसकी उपेक्षा का मुद्दा उठाया और राज्य सरकार पर बंकिम की स्मृति का रखरखाव नहीं करने का आरोप लगाया।

सजल ने दावा किया कि पिछले छह महीनों में जब भी वह पुस्तकालय में गए तो उन्होंने उसे बंद पाया। वहीं, सुमित्रा का कहना है कि चूंकि बंकिम चंद्र भारत के गौरव हैं, इसलिए केंद्र को इस घर की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। राज्य सरकार या कोलकाता नगर निगम उसका उचित रखरखाव नहीं कर रहे हैं।

इधर, दैनिक जागरण ने मंगलवार को उस जगह पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया तो घर की बदहाली व उपेक्षा इसकी गवाही देता प्रतीत हुआ। कार्यदिवस के दिन दोनों प्रवेश द्वारा जहां बंद थे, वहीं परिसर की दीवार पर लगी ग्रिल पर कपड़े सुख रहे थे।

मुख्य सड़क से करीब 50 मीटर अंदर स्थित उनके आवास की ओर जाने वाली संकरी गली वाली सड़क भी बदहाल दिखी। विवाद के बीच कुछ दिनों पहले ही इस पूरी गली की क्रंक्रीट की सड़क को खोदकर इसका निर्माण कार्य शुरू किया गया है। वहीं, रखरखाव के अभाव में पुस्तकालय भवन की दीवारों से कई जगह प्लास्टर भी गिर रहे हैं।
तृणमूल ने माकपा पर फोड़ा ठीकरा

दूसरी ओर तृणमूल ने इस उपेक्षा का ठीकरा माकपा पर फोड़ा है। स्थानीय तृणमूल नेता भास्कर सिन्हा ने कहा कि जो पुस्तकालय चल रहा है, उसकी प्रबंधन समिति शुरू से ही माकपा की रही है क्योंकि, पुस्तकालय का निर्माण माकपा सांसदों द्वारा आवंटित धन से हुआ था। माकपा की अक्षमता के कारण राज्य सरकार को गालियां दी जा रही हैं।

वहीं, पुस्तकालय प्रबंधन समिति के सचिव प्रबीर बसु ने कहा कि राज्य के पुस्तकालय विभाग के निर्देशानुसार यह पुस्तकालय हफ्ते में दो दिन - मंगलवार और शुक्रवार को खुला रहता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एक कर्मचारी के सहारे चार पुस्तकालय चला रही है।  

पुस्तकालय का एकमात्र कर्मचारी बीमार होने के कारण नहीं आया, जिसके चलते जिस दिन सुवेंदु आए थे, यह बंद मिला। हालिया विवाद के मद्देनजर बसु ने कहा कि वह अब इस पद पर नहीं रहना चाहते। उन्होंने कहा कि मैं जल्द ही प्रबंधन समिति से इस्तीफा दे दूंगा। मेरी तबियत अब ठीक नहीं है।
बंकिम चंद्र ने इस घर में कुछ उपन्यास भी लिखा था

बताया जाता है कि बंकिम चंद्र ने इस घर में कृष्ण चरित्र और सीताराम जैसे कुछ उपन्यास भी लिखे थे। इस पुस्तकालय में हजारों किताबें पड़ी हुई है जो देखरेख के अभाव में धूलें फांक रही है। अक्सर इस पुस्तकालय के बंद रहने के चलते युवा पीढ़ी व आम लोग इसका लाभ भी नहीं उठा पा रहे हैं। स्थानीय निवासियों की मानें तो बंकिम चंद्र ने प्रताप चटर्जी लेन स्थित यह घर साल 1887 में खरीदा था। 1894 में इसी घर में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।

बताते चलें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते सात नवंबर को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में पूरे देशभर में एक वर्ष तक चलने वाले स्मरणोत्सव की शुरुआत की थी।  

बंकिम चंद्र चटर्जी ने सात नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के दिन वंदे मातरम की रचना की थी। यह गीत पहली बार साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में चटर्जी के उपन्यास आनंदमठ के एक हिस्से के रूप में प्रकाशित हुआ था।
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