बिहार में पिछले कई दशकों से चुनाव को लेकर एक नया बदलाव देखने को मिला है और वो है महिला वोटर, जो आज एक निर्णायक फैक्टर बन चुका है। ये बात आज हर दल और गठबंधन को समझ आ चुकी है कि सत्ता के शीर्ष तक आपको महिलाएं ही पहुंचा सकती हैं। आंकड़े भी बताते हैं कि पिछले 60 सालों में बिहार में वोटिंग पैटर्न में एक बड़ा बदलाव आया है। जहां पुरुषों की मतदान दर 8% घट गई है, तो वहीं महिलाओं की मतदान दर 84% बढ़ी है। इसने बिहार की राजनीति को पूरी तरह बदल दिया है।  
 
  
 
1962 में महिलाओं की मतदान दर पुरुषों के मुकाबले 23% कम थी, जबकि 2020 में यह पुरुषों से 5.2% ज्यादा हो गई। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में महिला वोटरों का मतदान प्रतिशत लगभग 59.6% रहा, जो पुरुषों के 54.7% से करीब 5 प्रतिशत ज्यादा था। यह लगातार तीसरा चुनाव था, जिसमें महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया था। कुल मतदान प्रतिशत इस चुनाव में लगभग 57.05% दर्ज किया गया था।  
 
  
 
राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से लगभग 167 सीटों पर महिलाओं का टर्नआउट पुरुषों से ज्यादा था। खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की भागीदारी जबरदस्त थी।  
 
  
 
  
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हालांकि, विधानसभा में महिला प्रतिनिधित्व अभी भी सीमित था, 2020 के चुनाव में कुल 26 महिलाएं विधायक चुनी गईं, जो कुल सीटों का लगभग 11% हिस्सा थी।  
 
  
 
नारी शक्ति जिसके साथ हो ली, उसकी भर दी झोली!  
 
  
 
अगर आप पिछले कुछ चुनावों के नतीजों और आंकड़ों पर एक नजर डालेंगे, तो आपको ये बात भी बड़ी आसानी से समझ में आ जाएगी कि नारी शक्ति जिसके साथ हो ली, उसकी भर दी झोली।  
 
  
 
लोकसभा चुनाव के नतीजे कुछ ऐसा ही बताते हैं। क्षेत्रवार वोटिंग पैटर्न देखें, तो जहां महिलाओं का वोटिंग रेट ज्यादा था, वहां NDA को ज्यादा बढ़त मिली और जहां कम थी वहां महागठबंधन को।  
 
  
 
बिहार के दो रीजन कोसी और दरभंगा में महिलाओं की मतदान दर पुरुषों से ज्यादा रही। कोसी में महिलाओं का वोटिंग रेट 12.5% ज्यादा रहा और NDA को वहां 77% सीटों पर जीत मिली। जबकि दरभंगा में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 11.9% ज्यादा रहा, तो NDA ने 73% सीटें जीती।  
 
  
 
वहीं मगध और पटना, जहां महिलाओं की मतदान दर पुरुषों से कम थी, वहां NDA का प्रदर्शन खराब रहा। पटना में जहां महिलाओं ने पुरुषों से 4.5% कम मतदान किया, NDA ने केवल 30% सीटें जीतीं। मगध में यह आंकड़ा 1.8% कम था, वहां NDA ने केवल 23% सीटें जीतीं।  
 
  
 
यहां से अब आपको समझ आएगा कि आखिर NDA हो या महागठबंधन क्यों महिला वोटरों को सीधे अपने पाले में करना चाहते हैं।  
 
  
 
NDA ने मार ली बाजी!  
 
  
 
वैसे इस प्रयास में सत्ताधारी NDA काफी हद तक सफल भी नजर आ रहा है और उसका एक बड़ा कारण है- “मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना“, जिसके तहत लगभग 1.25 करोड़ महिलाओं के बैंक अकाउंट में 10,000 रुपए की पहली किस्त सीधे DBT के जरिए ट्रांसफर भी कर दी गई है।  
 
  
 
इसके अलावा बिहार में नीतीश कुमार की शराब बंदी और केंद्र की मोदी सरकार की तरफ से से मिलने वाले फ्री राशन ने भी महिला खेमे में मजबूत पकड़ बनाने में काफी मदद की है।  
 
  
 
इतना ही नहीं बिहार सरकार ने ग्रेजुएशन कर रही या स्नातक पास कर चुकी छात्राओं के बैंक अकाउंट में भी 50,000 रुपए भेजे हैं। यह धनराशि मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना (मुख्यमंत्री बालिका स्नातक प्रोत्साहन योजना) के तहत दी गई।  
 
  
 
इस योजना का उद्देश्य बिहार की अविवाहित छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना और उनकी पढ़ाई में आर्थिक सहायता देना है। इस योजना की प्रक्रिया अक्टूबर 2025 के पहले हफ्ते यानी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले से जारी है और लाखों छात्राओं को इसका लाभ मिल रहा है।  
 
  
 
दूसरी तरफ विपक्षी महागठबंधन ने अपने घोषणा-पत्र “तेजस्वी प्रण“ में महिलाओं के लिए “माई-बहिन मान योजना“ की घोषणा की है, जिसके तहत महिलाओं को दिसंबर से 2500 रुपए प्रतिमाह यानी सालाना 30,000 रुपए दिए जाएंगे। साथ ही उन्हें मुफ्त यात्रा सुविधा, महिला सुरक्षा के लिए विशेष पुलिस थाने, महिला हेल्पलाइन को सशक्त बनाना, महिला स्वरोजगार के लिए लोन और ट्रेनिंग जैसी कई सुविधाएं देने का वादा किया गया है।  
 
  
 
हालांकि, बड़ा फर्क ये है कि विपक्ष सत्ता में आने के बाद ही अपने ये वादे पूरे कर पाएगा, जबकि सत्ताधारी NDA सरकार पहले ही महिलाओं को 10,000 रुपए और छात्राओं को 50,000 रुपए दे चुकी है, जो इस पूरे चुनाव का रुख बदल सकता है।  
 
  
 
...फिर भी साइलेंट वोटर हैं महिलाएं!  
 
  
 
भले ही महिलाएं बिहार की गेम चेंजर हैं, लेकिन एक तथ्य ये भी है कि बिहार की महिलाएं साइलेंट वोटर भी हैं। जहां महिलाएं अपने एक वोट से खेल बना या बिगाड़ देती हैं, तो वहीं ये वर्ग बड़े से बड़े ओपिनियन पोल को भी गलत साबित करवा देता है।  
 
  
 
दरअसल 2000 से 2020 तक बिहार के 25 सर्वे देखें, तो औसत सर्वे या ओपिनियन पोल सही विजेता की भविष्यवाणी नहीं कर पाए। बिहार में सर्वे के गलत होने की संभावना उसके सही होने से ज्यादा है। डेटा बताता है कि 56% बिहार के सर्वे गलत भविष्यवाणी करते हैं और केवल 44% सही।  
 
  
 
ऐसा इसलिए क्योंकि भले ही महिलाएं पुरुषों के मुकाबले चुनाव और वोटिंग प्रक्रिया में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती है, लेकिन जब बात ओपिनियल पोल या सर्वे की आती है, तो महिलाएं बात करने से बचती हैं।  
 
  
 
आंकड़े बताते हैं कि जब भी कोई सर्वे या पोलिंग एजेंसी ग्राउंड पर सर्वे करने जाती है, तो उसमें सवाल पूछने वाले 90% लोग पुरुष ही होते हैं और बिहार के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं खासतौर से अजनबी पुरुषों से बात करने या उनके सवालों का जवाब देने में झिझकती हैं।  
 
  
 
Bihar Chunav 2025: तेजस्वी चाहें जुमले नहीं रोजगार की हो बात, मगर राहुल के बयानों ने मचा दिया उत्पात! महागठबंधन बढ़ेगा टकराव? |