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AIIMS ने कार्बाइड गन को आंखों के लिए बताया हानिकारक, तत्काल रोक की मांग

deltin33 6 day(s) ago views 744

  

दिवाली के दौरान कार्बाइड गन के बढ़ते इस्तेमाल से एम्स के नेत्र रोग विशेषज्ञ चिंतित हैं।



जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिवाली के दौरान कार्बाइड गन के बढ़ते इस्तेमाल और उससे होने वाली चोटों व आंखों की क्षति ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के नेत्र रोग विशेषज्ञों को चिंतित कर दिया है। उनका कहना है कि कार्बाइड गन से आंखों को होने वाला नुकसान पारंपरिक पटाखों से होने वाले नुकसान से अलग और अधिक विनाशकारी है। इससे रासायनिक-तापीय जलन होती है जो पारंपरिक पटाखों से अधिक खतरनाक है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इस दिवाली पटाखों से आंखों में चोट लगने की शिकायत लेकर एम्स के राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र (आरपी सेंटर) में आए 190 लोगों में से 30 को कार्बाइड गन के इस्तेमाल के कारण हमेशा के लिए दृष्टि हानि का सामना करना पड़ा। कई मरीजों की आंखों में गंभीर जलन हुई और कुछ की दृष्टि हमेशा के लिए चली गई।

चिंताजनक बात यह है कि ज्यादातर घायल युवा हैं, जिनकी औसत आयु 13 से 19 वर्ष है और लगभग 90 प्रतिशत मरीज पुरुष हैं। यह जानकारी बुधवार को आरपी सेंटर में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. राधिका टंडन और डॉ. राजपाल ने दी।

डॉ. राधिका टंडन ने कहा कि ऑनलाइन ट्यूटोरियल, सामग्री की आसान उपलब्धता और जागरूकता की कमी ने कार्बाइड गन को खतरनाक बना दिया है। आरपी सेंटर की ओर से, उन्होंने सरकार से कैल्शियम कार्बाइड की बिक्री पर सख्ती से नियंत्रण करने, ऑनलाइन वीडियो हटाने, स्कूलों में जागरूकता फैलाने और कार्बाइड गन को “घातक उपकरण“ घोषित करने का आग्रह किया।

उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस साल दिल्ली-एनसीआर में केवल प्रमाणित “ग्रीन पटाखों“ की बिक्री और इस्तेमाल पर रोक लगाने और पटाखे फोड़ने की अवधि 20 और 21 अक्टूबर तक सीमित रखने का आदेश दिया है। इसके बावजूद, उभरती स्थिति चिंताजनक है।

अवैध पटाखों और घर में बनी कार्बाइड गन की आसान उपलब्धता ने आँखों की चोटों की घटनाओं में वृद्धि की है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की मंज़ूरी की आड़ में, हरित पटाखों की जगह अवैध पटाखों और कार्बाइड गन के इस्तेमाल से दिवाली के दौरान पटाखों से आँखों की चोटों के मामलों में पिछले साल की तुलना में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
रासायनिक-तापीय जलन

एक प्रश्न के उत्तर में, डॉ. राजपाल ने कहा, “यह कोई मज़ाक नहीं है; यह एक रासायनिक-तापीय जलन है। लगभग 80 प्रतिशत मामलों में कॉर्नियल जलन देखी गई। यह खतरनाक है, जिसमें कई मरीज़ों की दृष्टि 6/60 से भी कम रह गई है।“ उन्होंने आगे कहा कि दोनों आँखें प्रभावित हुईं, 35 प्रतिशत मामलों में स्थायी दृष्टि हानि हुई, और 70 प्रतिशत मामलों में तत्काल सर्जरी की आवश्यकता पड़ी।

उन्होंने आगे बताया कि अध्ययन के दौरान, मध्य प्रदेश के कुछ अस्पतालों से कार्बाइड गन से जुड़े मामलों के बारे में गंभीर जानकारी भी मिली। इसमें व्यापक रूप से आँखों की चोटों का उल्लेख है, कई जिलों में ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें गंभीर सर्जरी की आवश्यकता पड़ी है।
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