Delhi’s Cloud Seeding: दिल्ली में कृत्रिम बारिश लाने के लिए अब तक तीन बार क्लाउड-सीडिंग के प्रयास किए गए हैं, जिसमें से हालिया दो प्रयासों के बाद भी बारिश की एक बूंद तक नहीं गिरी है। इस विफलता के बाद विशेषज्ञों ने मंगलवार को दिल्ली सरकार को सलाह दी है कि वह हर साल ठंडी की शुरुआत में होने वाले प्रदूषण से राहत पाने के लिए \“फौरी समाधानों\“ पर निर्भर रहने के बजाय, पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार करको को कम करने पर फोकस करने की जरूरत है।
\“कॉस्मेटिक\“ उपाय नहीं, ठोस कार्रवाई जरूरी: विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का कहना है कि क्लाउड-सीडिंग एक महंगा और बड़े पैमाने पर अप्रभावी प्रयोग है जो प्रदूषण के असली स्रोतों से ध्यान भटकाता है। थिंक-टैंक \“एनवायरोकैटालिस्ट्स\“ के प्रमुख विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा कि वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए परिवहन, बिजली और निर्माण जैसे क्षेत्रों से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करना अनिवार्य है। उन्होंने कहा, \“स्मॉग टावर, एंटी-स्मॉग गन या क्लाउड-सीडिंग जैसे \“कॉस्मेटिक उपाय\“ अल्पकालिक लाभ दे सकते हैं, लेकिन वे टिकाऊ समाधान नहीं हैं।\“
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क्यों काम नहीं कर रहा क्लाउड-सीडिंग?
क्लाउड-सीडिंग एक मौसम संशोधन तकनीक है जिसमें सिल्वर आयोडाइड (AgI) जैसे यौगिकों का उपयोग करके बादल की बारिश करने की क्षमता को बढ़ाया जाता है। हालांकि, दिल्ली में यह प्रयास विफल रहा। IIT कानपुर के वायु प्रदूषण विशेषज्ञ मुकेश खरे ने कहा कि क्लाउड-सीडिंग का प्रभाव अस्थायी और सीमित दायरे का होता है। उन्होंने बताया, \“वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए दो कारक महत्वपूर्ण हैं: तेज बारिश और व्यापक कवरेज का क्षेत्र। यहां तक कि अगर बारिश हो भी जाए, तो गैसों को नीचे नहीं लाया जा सकेगा, और सुधार बहुत कम समय के लिए ही रहेगा।\“ दहिया ने कहा कि वैश्विक स्तर पर, क्लाउड-सीडिंग का उपयोग मुख्य रूप से सूखे से निपटने के लिए किया गया है, न कि वायु प्रदूषण को कम करने के लिए।
IIT दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज के असिस्टेंट प्रोफेसर शहजाद गनी ने कहा कि यह तकनीक तभी काम कर सकती है जब बारिश वाले बादल पहले से मौजूद हों, और प्रदूषण जब अपने चरम पर होता है, तब ये स्थितियां अत्यंत दुर्लभ होती हैं।
अस्थायी तमाशों के बजाय निरंतर उपायों की है जरूरत: विशेषज्ञ
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि क्लाउड-सीडिंग महंगे अस्थायी तमाशों के समान है, जबकि जरूरत प्रमाणित और निरंतर उपायों की है। IIT दिल्ली के प्रोफेसर कृष्णा अचुटा राव ने कहा कि बुनियादी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। उन्होंने स्वच्छ परिवहन, बेहतर अपशिष्ट और निर्माण प्रबंधन, कठोर औद्योगिक नियंत्रण और स्वच्छ बिजली जैसे उपायों को अपनाने पर जोर दिया।
राव ने यह भी कहा कि सिल्वर आयोडाइड जारी करने के पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभावों का भी पहले अध्ययन करने की जरूरत है। मौसम विज्ञानियों ने भी पुष्टि की है कि हाल की स्थितियां प्रयोग के लिए उपयुक्त नहीं थीं, क्योंकि वायुमंडल स्थिर था और नमी की मात्रा कम थी। विशेषज्ञों का स्पष्ट मानना है कि उत्तर भारत को केवल दिल्ली को लक्षित करने के बजाय, पूरे इंडो-गंगेटिक प्लेन्स में निरंतर और साल भर कार्रवाई की आवश्यकता है। |