रुड़की में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय शुभांशु शुक्ला। जागरण  
 
  
 
रीना डंडरियाल, रुड़की। भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने कहा कि वैश्विक स्तर पर भारत और उसके अंतरिक्ष कार्यक्रम को काफी सम्मान एवं महत्व मिल रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके साथ बाकी देशों से यात्रा करने वाले अंतरिक्ष यात्रियों ने उनसे एक कोरे कागज पर हस्ताक्षर करवाए हैं कि जब भी गगनयान मिशन होगा तो एक सीट उनकी होनी चाहिए। क्योंकि उन्हें भी जाना है। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को लेकर दूसरे देशों का विश्वास ही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय शुभांशु शुक्ला ने ये बातें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की में आत्मनिर्भर भारत-विकसित भारत की राह (मिशन 2047) कार्यक्रम के दौरान कही। शुभांशु शुक्ला ने कहा कि उन्हें लगता है कि भारत 2047 से पहले ही किफायती अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का नेतृत्व करेगा।  
 
आइआइटी रुड़की के मल्टी एक्टिविटी सेंटर में शुक्रवार को आत्मनिर्भर भारत-विकसित भारत की राह (मिशन 2047) कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने विशिष्ट वक्ता के रूप में शामिल होते हुए सभागार में उपस्थित प्रतिभागियों एवं छात्र-छात्राओं के साथ अपने अनुभव एवं विचार साझा किए। अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने छात्र-छात्राओं को प्रेरित करते हुए कहा कि जब वे कोई बड़ी चीज या कार्य देखते हैं तो यह बिल्कुल मत सोचें कि यह उनकी बस की बात नहीं है। क्योंकि उसे करने वाला भी हमारी तरह ही होता है।  
 
विद्यार्थियों में जोश भरते हुए कहा कि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का जो मिशन है उसे पूरा करने का आप संकल्प लें। बड़े सपने देखें, नए तरीके से सोचें और समस्याओं का समाधान खोजें। उन्होंने कहा कि जीवन में आगे बढ़ने का जो भी मौका आए उसके लिए हां बोलना सीखें। क्योंकि यह हां आपके लिए कौन सा सुनहरा मौका लाएगा और कौन से दरवाजे खोलेगा यह आपको भी मालूम नहीं होता है। यही हां बोलना अधिकांश समय आपके हित में होता है।  
 
इतना जरूर है कि जब आप कुछ नया करते हैं या कोई नए क्षेत्र में जाते हैं तो चुनौती एवं कार्य का दबाव भी अधिक होता है। शुभांशु शुक्ला ने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि उनके अंतरिक्ष यात्री बनने की यात्रा भी कोई एक पल नहीं था। उन्होंने कहा कि यदि उन्होंने वायु सेना में रहते हुए टेस्ट पायलट के लिए हां नहीं बोला होता तो जब अंतरिक्ष यात्री के लिए आवेदन आए थे तो वे उसके लिए आवेदन नहीं कर सकते थे। उन्होंने बताया कि 20 दिन के मिशन के लिए उन्होंने पांच साल प्रशिक्षण लिया।  
 
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जब से वे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा करके लौटे हैं कई लोग उनसे सफलता प्राप्त करने के तरीके के बारे में पूछते हैं। जबकि उनका मानना है कि सफलता हासिल करने का कोई एक रास्ता नहीं होता है और यह किसी को भी नहीं पता होगा। उनके अनुसार सफलता के लिए अनुशासन अकेला सबसे महत्वपूर्ण है।  
 
अनुशासन में रहते हुए कोशिश न छोड़ी जाए तो शत प्रतिशत सफलता निश्चित है। साथ ही परिवार एवं दोस्तों का सहयोग एवं विश्वास भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि आइआइटी सहित अन्य तकनीकी संस्थान अंतरिक्ष कार्यक्रमों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। वहीं कार्यक्रम के दौरान अन्य वक्ताओं ने भी नवाचार, उद्यमिता एवं स्वदेशी तकनीक को विकसित भारत के ईंधन के रूप में प्रयोग करने को लेकर चर्चा की।  
आप सभी उत्साहित रहें   
 
 
रुड़की: अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने कहा कि एक्सिओम मिशन-4 के पीछे उनकी मानसिकता गगनयान मिशन को एग्जीक्यूट करना ही था। इस मिशन से उन्हें बहुत कुछ सीखने का मौका मिला है। मिशन से जो अनुभव एवं तकनीकी ज्ञान प्राप्त हुआ है उससे गगनयान मिशन को सफल बनाने में सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि इसको लेकर टीम के साथ विचार-विमर्श भी शुरू हो गया है। उन्होंने कहा कि गगनयान मिशन बहुत जल्द होगा और उसके बाद कई सारे फालोअप होंगे।  
 
फिर भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भी काम शुरू हो चुका है। उसके बाद कोई भारतीय चांद पर जाएगा। शुभांशु शुक्ला ने कहा कि आप सभी उत्साहित रहें और इसका हिस्सा बनिए। क्योंकि जीवन में इससे अच्छा अनुभव और कुछ नहीं हो सकता है। वहीं उन्होंने कहा कि गगनयान, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और किसी भारतीय को चांद पर उतारने के भारत के राष्ट्रीय मिशन में देश के प्रत्येक संसाधन का प्रयोग करना चाहिए। |   
                
                                                    
                                                                
        
 
    
                                     
 
 
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