झारखंड में ग्रामीण हुनर और गोबर क्राफ्ट की वजह से इस दीपावली में रौनक रहेगी।  
 
  
 
संवाद सहयोगी जागरण, कोडरमा। दीपावली की रोशनी इस बार न केवल घरों को सजाएगी, बल्कि गांव की महिलाओं के  
जीवन में भी उम्मीदों की लौ जलाएगी।  
 
कोडरमा जिले के सुदूरवर्ती सतगावां प्रखंड के भखरा स्थित पहलवान आश्रम में दीपावली को लेकर पारंपरिक, पर्यावरणीय और आत्मनिर्भर भारत की त्रिवेणी एक साथ बह रही है।  
 
यहां गोबर क्राफ्ट के जरिए दीये और गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां तैयार की जा रही हैं, जो न केवल इको-फ्रेंडली हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की भी मजबूत मिसाल बन रही हैं।  
 
गुजरात के भूज से प्रशिक्षण प्राप्त कर लौटे राष्ट्रीय झारखंड सेवा संस्थान के कोषाध्यक्ष विजय कुमार, नीतू कुमारी और ईशान चंद महतो ने गांव की महिलाओं को गोबर से दीया और मूर्ति बनाने की तकनीक सिखाई।  
 
आज 6 महिलाएं, सविता देवी, कविता देवी, राज नंदिनी, सुषमा देवी, सीमा कुमारी और डॉली कुमारी न केवल इन उत्पादों का निर्माण कर रही हैं, बल्कि हर महीने ₹5000 से ₹7000 की आमदनी भी कर रही हैं।  
 
दीयों के साथ-साथ गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां, द्वार झालर, शुभ-लाभ, स्वास्तिक चिन्ह, गुग्गुल कप धूप, \“शुभ दीपावली\“ और \“जय छठी मैया\“ जैसे नेम प्लेट भी तैयार किए जा रहे हैं। गोबर और लकड़ी के बुरादे से बनी इन वस्तुओं को धूप में सुखाकर, आकर्षक रंगों से सजाया जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
झुमरीतिलैया में खुलेगा आउटलेट  
 
 
संस्थान के सचिव मनोज दांगी ने बताया कि धनतेरस से लेकर छठ पर्व तक झुमरीतिलैया में इन उत्पादों की अस्थाई दुकान लगेगी, और जल्द ही शहर में एक स्थायी आउटलेट खोलने की योजना भी है, जहां इन उत्पादों की लगातार बिक्री हो सकेगी।  
राजधानी में भी मिली सराहना  
 
हाल ही में रांची में आईएएस ऑफिसर्स वाइव्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित दीपावली मेले में इन गोबर उत्पादों को विशेष स्थान मिला। राज्य के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने इन उत्पादों की खुले दिल से सराहना और खरीदारी की। वहां भी लोगों ने कहा कि इस कार्य से महिला सशक्तिकरण, गौसंरक्षण और पर्यावरण बचाव तीनों एक साथ संभव हो रहा है।  
गोबर क्राफ्ट के फायदे  
 
गोबर से बने ये उत्पाद रेडिएशन से बचाव में मददगार होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। उपयोग के बाद ये मिट्टी में समाहित होकर खाद का रूप ले लेते हैं, जिससे पर्यावरण को कोई हानि नहीं होती। साथ ही, दूध न देने वाले बुजुर्ग गौवंश के गोबर का सदुपयोग कर इन्हें भी संरक्षण मिल रहा है। |