तेजस्वी यादव के विरूद्ध ट्रायल चलने की सूचना  
 
  
 
अरुण अशेष, पटना। आइआरसीटीसी घोटाले में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के विरूद्ध ट्रायल चलने की सूचना से एनडीए खेमा उत्साहित है।राजद खेमे में भी उदासी नहीं है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की पहली प्रतिक्रिया यह आई कि तूफानों से लड़ने में मजा ही कुछ और है। उन्हें इस तरह के निर्णय का अनुमान पहले से था, जब गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार की एक सभा में कहा था कि तेजस्वी चुनाव लड़ने लायक नहीं रह जाएंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
दूसरी तरफ एनडीए का उत्साह इसलिए बढ़ा हुआ है कि उसे विधानसभा चुनाव में एक नया मुद्दा मिल गया। अबतक लालू प्रसाद से जुड़े पशुपालन घोटाला के नाम पर वह जनता को बता रहा था कि यह परिवार भ्रष्टाचार और अपराध को बढ़ावा देने वाला है।अब तेजस्वी का भी नाम जुड़ गया, जिन्हें राजद मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तावित कर चुका है।  
 
कांग्रेस राउज एवेंन्यु कोर्ट के इसी निर्णय की प्रतीक्षा कर रही थी। जल्द ही वह बता देगी कि वह महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव को भावी मुख्यमंत्री प्रस्तावित करने जा रही है नहीं। जहां तक इस ताजा मामले का विधानसभा चुनाव पर बड़ा असर पड़ने का प्रश्न है, पृष्ठभूमि को देखते हुए बड़े असर की संभावना नजर नहीं आ रही है।  
 
1997 में पशुपालन घोटाला के कारण लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। उसी समय से लालू प्रसाद ने अपने समर्थकों को यह समझाना शुरू कर दिया था कि उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया है। उस समय से आज तक विरोधी उन्हें पशुपालन घोटाला का आरोपी बताते रहे हैं। इस अवधि में लालू प्रसाद अपने समर्थकों को सहमत कराने में सफल हुए हैं कि उन्हें केंद्र की तत्कालीन सरकार और केंद्रीय एजेंसियों ने नाहक फंसा दिया है।  
 
तेजस्वी यादव भी यही कह रहे हैं। राज्य में जब राजद की मदद से नीतीश कुमार की सरकार चल रही थी, उस समय जदयू के बड़े-बड़े नेताओं ने लालू के सुर में सुर मिला कर कहना शुरू कर दिया था कि पशुपालन घोटाले और दूसरे मामले में लालू प्रसाद और उनके स्वजनों को फंसाया गया है। दिलचस्प यह है कि पशुपालन घोटाले की शुरुआती जांच के समय केंद्र में लालू प्रसाद के अपनों की सरकार थी। निर्णायक कार्रवाई का आधार जिस कालखंड में तैयार हुआ, पीबी नरसिम्हा राव, एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की सरकार थी। लालू प्रसाद की गिरफ्तारी के समय गुजराल ही प्रधानमंत्री थे।उन्हें लालू प्रसाद ने ही बिहार से राज्यसभा भेजा था।  
 
 
एनडीए पहले से ही लालू परिवार के विरूद्ध भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा रहा है। केवल 2010 के विधानसभा चुनाव में राजद को भारी धक्का लगा था, जब विधानसभा में उसके सदस्यों की संख्या 22 पर पहुंच गई थी। लेकिन, एनडीए की उस ऐतिहासिक जीत की जड़ में नीतीश कुमार की अगुआई वाली राज्य सरकार की विकास और कानून-व्यवस्था से जुड़ी उपलब्धियां थीं। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में भी राजद पर कुशासन, जंगलराज और भ्रष्टाचार का आरोप लगा। परिणाम सबके सामने है। 2015 में 80 और 2020 में विधानसभा की 75 सीटों पर राजद की जीत हुई। |