जागरण संवाददाता, लखीमपुर। कभी कभी समय इंसान को ऐसे दो राहों पर लाकर के खड़ा कर देता है जहां जिंदगी को जीना मुश्किल और मौत को गले लगाना आसान सा लगने लगता है। ऐसा एक वाक्या लखीमपुर जनपद की गोला तहसील क्षेत्र के गांव बेंचेपुरवा में देखने को मिला है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
यहां अनाथ हुए बच्चों की जिंदगी किसी पहाड़ से कम नहीं दिख रही है। शारदा नदी के किनारे बसे गांव बेचेपुरवा निवासी रामगणेश पुत्र इतवारी का परिवार मेहनत मजदूरी करके अपना भरण पोषण करता था। परिवार में तीन बच्चे व पति-पत्नी शामिल थे।  
 
भूमिहीन होने चलते जैसे तैसे मेहनत मजदूरी करके जीवन का गुजारा हो जाता था, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। करीब चार साल पहले रामगणेश की करंट लगने से मौत हो गई तो उसके बाद परिवार की जिम्मेदारी पत्नी सुनीला देवी के कंधों पर आ गई। चूंकि जमीन थी नही तो ऐसे में मेहनत मजदूरी करके बच्चों का भरण पोषण करने लगी।  
 
जीवन किसी तरह चल रहा था कि सुनीता की भी आकस्मिक मौत हो गई। मां बाप की मौत के बाद मासूमों पर पहाड़ टूट पड़ा। किशोरी प्रियंका ने बताया कि पिता की करीब चार साल पहले करंट लगने से मौत हो गई थी उसके बाद मां ने किसी तरह खेतों में मजदूरी करके हम तीनों बच्चों प्रियंका उम्र बारह वर्ष, अमित दस वर्ष व शिवानी आठ वर्ष का पेट पालती थी।  
 
प्रियंका ने बिलखते हुए बताया कि दस दिन बाद दीपावली का त्यौहार आने वाला है, मम्मी ने कहा कि हम अपनी बहन के यहां जा रहे हैं धान की कटाई शुरू हो गई है। सभी साथ मिलकर धान कटाई करके मजदूरी के पैसे इक_े कर लेंगे जिससे त्यौहार हंसी.खुशी से मनाएंगे।  
 
मम्मी बीते रविवार को मौसी के यहां गई थी जहां उनकी तबीयत खराब हुई और तबीयत खराब होने के बाद थोड़ा बहुत इलाज कराया गया, लेकिन पैसे न होने के चलते उनका सही तरीके से इलाज नहीं हो पाया और बीते शुक्रवार को मां ने भी दम तोड़ दिया। अब हम सभी अनाथ हो गए हैं। न खेती है न जमीन है जिंदगी काटने को दौड़ रही है।   
  
दो बहन हैं एक भाई है, माता पिता की मृत्यु हो चुकी है। आवश्यक दस्तावेज लिए जा रहे हैं और पारिवारिक योजना और बाल सुरक्षा योजना का फार्म भराकर लाभ दिया जाएगा। भोजन और राशन की व्यवस्था करा दी गई है।  
  
युगांतर त्रिपाठी, एसडीएम-गोला गोकरननाथ   |