Navagraha Katha: यहां पढ़ें नवग्रहों की पौराणिक कथाएं और दिव्य रहस्य

deltin33 2025-9-25 21:06:49 views 1158
  Navagraha Katha: नवग्रहों को कैसे प्रसन्न करें?





आनंद सागर पाठक, एस्ट्रोपत्री। यह लेख नवग्रहों (navagraha stories) हिंदू धर्म के नौ प्रमुख ग्रहों से जुड़ी पौराणिक कथाओं, धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिषीय महत्व को सरल भाषा में प्रस्तुत करता है। प्रत्येक ग्रह जैसे सूर्य देव, चंद्र देव, मंगल देव, बुध देव, बृहस्पति देव, शुक्र देव, शनि देव, राहु देव और केतु देव का वर्णन उनके जन्म, स्वभाव, शक्तियों और पौराणिक घटनाओं के आधार पर किया गया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें





इसमें यह भी बताया गया है कि इन ग्रहों को पश्चिमी संस्कृतियों में कैसे देखा जाता है और किस नाम से जाना जाता है। लेख का उद्देश्य पाठकों को इन ग्रहों (Nine Planets Mythological Stories) की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को संक्षेप और सहज भाषा में समझाना है।
सूर्य देव

  

हिदुं संस्कृति में सूर्य देव को अदिति और कश्यप ऋषि का पुत्र माना जाता है। अदिति देवताओं की माता थीं। जब राक्षसों ने देवताओं को हरा दिया, तब अदिति ने सूर्य देव से प्रार्थना की कि वे उनके पुत्र बनें और राक्षसों को हराएं। सूर्य देव ने स्वीकार किया और आदित्य के रूप में जन्म लिया।



सूर्य देव जीवन, शक्ति और प्राण के स्रोत हैं, इसलिए उनकी पूजा की जाती है। पश्चिमी लोग सूर्य को अपोलो कहते हैं। वे मानते हैं कि वह बृहस्पति और लटोना का पुत्र है और डायना का भाई है। हिंदू मानते हैं कि सूर्य देव सात घोड़ों वाले रथ में चलते हैं, क्योंकि उनमें सात रंग (विबग्योर) होते हैं। माना जाता है कि सूर्य देव रोज मेरु पर्वत के चारों ओर घूमते हैं, जिससे दिन और रात होते हैं।
चंद्र देव

  



हरिवंश पुराण के अनुसार चंद्र देव ऋषि अत्रि के पुत्र थे और दस दिशाओं ने उनका पालन-पोषण किया। उन्होंने दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह किया, जो 27 नक्षत्रों के रूप में जानी जाती हैं। चंद्रदेव हर नक्षत्र के पास एक दिन रुकते हैं, लेकिन उन्होंने रोहिणी को विशेष स्नेह दिया।

चंद्रदेव बृहस्पति देव की पत्नी के साथ भाग गए। इससे क्रोधित होकर दक्ष ने उन्हें क्षय रोग का श्राप दिया। बृहस्पति देव की पत्नी से बुध देव का जन्म हुआ।पश्चिमी मान्यता में चंद्रमा को वर्जिन मेरी माना जाता है, जो आकाश की पोषक माता हैं। उन्हें रात्रि की रानी और लूना (डायना) कहा जाता है। डायना, अपोलो की जुड़वां बहन हैं और पवित्रता व प्रजनन की देवी मानी जाती हैं।मंगल देव



हिंदू मान्यता में मंगल देव को भूमिपुत्र कहा जाता है, इसलिए उनका एक नाम भौम भी है। मंगलदेव धरती माता के पुत्र माने जाते हैं। कहा जाता है कि जब पृथ्वी समुद्र में डूबी थी, तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर उसे बाहर निकाला और सही कक्षा में स्थापित किया। तब धरती माता ने वर मांगा “हे प्रभु, मुझे आपका एक पुत्र दें।“

भगवान ने स्वीकार किया और मंगल देव का जन्म हुआ। एक कथा के अनुसार मंगल देव भगवान शिव और धरती माता के पुत्र भी माने जाते हैं। पश्चिमी ज्योतिष में मंगल को युद्ध और शिकार का देवता माना गया है। बाइबिल में यह शैतान का प्रतीक है। मंगल शक्ति और ऊर्जा के देवता हैं तथा स्वर्गीय सेनाओं के सेनापति माने जाते हैं। उनका संबंध सामवेद से भी जोड़ा गया है।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय,एकात्म मानववाद,पीडीडीयू नगर,मुगलसराय जंक्शन,गुरुबख्श कपाही,अंत्योदय,दीनदयाल उपाध्याय संग्रहालय,पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुण्यतिथि,भारतीय जनसंघ,पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्मदिवस, चंदौली टाप न्‍यूज, Varanasi top news, Varanasi latest news, Varanasi trending news,
बुध देव

बुध देव सूर्य के बहुत पास हैं, इसलिए उनके चारों ओर कोई वातावरण नहीं है। उनका एक हिस्सा बहुत गर्म होता है (करीब 360 डिग्री सेल्सियस) और दूसरा हिस्सा बहुत ठंडा। बुध देव का घूमना और सूर्य देव की परिक्रमा एक ही समय में होता है, इसलिए एक हिस्सा हमेशा सूर्य की ओर रहता है और दूसरा हिस्सा हमेशा अंधेरे में, जहां बहुत ठंड होती है। बुध देव का जन्म चंद्र देव और तारा (जो बृहस्पति देव की पत्नी थीं) से हुआ। चंद्र देव तारा को अपने साथ शुक्राचार्य के आश्रम ले गए। बाद में जब देवताओं ने समझाया, तो चंद्र देव ने तारा को वापस लौटा दिया।



तारा गर्भवती थीं और उन्होंने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। तारा ने बताया कि बच्चा चंद्रदेव का है। बृहस्पति देव ने उसे अपनाया। पश्चिमी मान्यता में बुध को बृहस्पति और माया (एटलस की बेटी) का पुत्र माना जाता है। उसे अपोलो का दोस्त भी कहा जाता है, शायद इसलिए क्योंकि वह सूर्य के सबसे पास है।
बृहस्पति देव

बृहस्पति देव देवताओं के गुरु हैं। उनके पिता महर्षि अंगिरा थे। महर्षि की पत्नी ने पुत्र की प्राप्ति के लिए सनत कुमारों से व्रत की विधि और ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने श्रद्धा से व्रत किया। देवता प्रसन्न हुए और उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ वही थे बुद्धि और ज्ञान के स्वामी बृहस्पतिदेव। प्राचीन ग्रीक लोग बृहस्पति को देवताओं का पिता ज़ीउस (ZEUS) मानते हैं। मिस्रवासी अम्मोन (AMMON) कहते हैं। नॉर्स लोग उन्हें थोर (THOR) और बेबीलोन के लोग मेरोडाक (MERODACH) कहते हैं।


शुक्र देव

शुक्राचार्य महर्षि भृगु के पुत्र हैं। वे दानवों के गुरु माने जाते हैं। केवल शुक्र देव ही ऐसे थे जिन्हें भगवान शिव ने मृत-संजीवनी विद्या देने योग्य समझा। यह विद्या मृत को भी जीवित कर सकती है।शुक्रदेव को प्रेम, विवाह, सौंदर्य और सुख-सुविधा का देवता माना जाता है। इन्हें महालक्ष्मी का स्वरूप माना गया है, जो भगवान विष्णु की पत्नी हैं। शुक्रदेव का संबंध यजुर्वेद और वसंत ऋतु (अप्रैल–मई) से भी जोड़ा जाता है।पश्चिमी ज्योतिष में शुक्र को लूसीफर कहा जाता है और हिब्रू लोग इसे एस्टोरेथ (Astoreth) कहते हैं।


शनि देव

शनि देव सूर्य देव और छाया के पुत्र हैं। उन्हें कई बार गलत समझा गया है। उन्हें उनकी पत्नी और मां पार्वती द्वारा श्राप भी मिला था। लेकिन बाद में मां पार्वती ने उन्हें वरदान दिया कि किसी भी व्यक्ति के जीवन में कोई बड़ा कार्य तब तक नहीं होगा जब तक शनि देव अपनी दृष्टि या गोचर से उसे मंजूरी न दें।

शनि देव यमराज के बड़े भाई हैं, इसलिए वे यम की भूमिका भी निभा सकते हैं और जीवन का अंत ला सकते हैं। यदि अशुभ दशा चल रही हो, शनि देव का बुरा गोचर हो और मृत्यु का समय आ गया हो, तो शनि देव मृत्यु दे सकते हैं। लेकिन शनि देव वैराग्य के प्रतीक भी हैं और उनका गहरा आध्यात्मिक महत्व है। कोई भी संत बिना शुभ और मजबूत शनि के जन्म नहीं ले सकता।


राहु देव और केतु देव

  

यह कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र का मंथन किया। भगवान विष्णु ने असुरों को अमृत से दूर रखने के लिए मोहिनी रूप (एक अनुपम सुंदर स्त्री) धारण किया। मोहिनी ने देवताओं को पहले अमृत देना शुरू किया। स्वर्भानु नामक एक असुर ने चालाकी से देवता का रूप धारण किया और सूर्य व चंद्र के बीच बैठ गया। जब उसकी बारी आई, तो उसने अमृत ले लिया। लेकिन सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया।



भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन अमृत की कुछ बूंदें उसके अंदर जा चुकी थीं, इसलिए सिर और धड़ दोनों अमर हो गए। सिर बना राहु, और धड़ बना केतु। सिंहिका, स्वर्भानु की माता, ने कटे सिर की देखभाल की।

यह सिर कालांतर में सर्पमुखी बन गया यही राहु कहलाया। वहीं, एक ब्राह्मण मिनी ने धड़ को पाला। भगवान विष्णु ने उसे सर्प का सिर दिया। यही केतु बना और समय के साथ एक संत समान पूज्य ग्रह हुआ। राहु और केतु को सूर्य और चंद्र से शिकायत रही, इसलिए कुछ शास्त्रों के अनुसार वे ग्रहण कराते हैं।

आनंद सागर पाठक, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।
like (0)
deltin33administrator

Post a reply

loginto write comments
deltin33

He hasn't introduced himself yet.

1210K

Threads

0

Posts

3810K

Credits

administrator

Credits
388010

Get jili slot free 100 online Gambling and more profitable chanced casino at www.deltin51.com