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Bihar Election: पैराशूट प्रत्याशी कार्यकर्ताओं की मेहनत पर फेर रहे पानी, 35 से अधिक नेताओं ने बदला पाला

deltin33 2025-10-12 16:05:58 views 295

  



जयशंकर बिहारी, पटना। विधानसभा चुनाव में पहले चरण के लिए नामांकन की प्रक्रिया प्रारंभ होने के साथ ही प्रमुख दलों में आने-जाने वालों की रफ्तार बढ़ गई है। राष्ट्रीय दल भाजपा व कांग्रेस, राज्यस्तरीय दल जदयू, राजद, लोजपा (आर) हो या क्षेत्रीय निबंधित दल हम, रालोमो आदि सभी में दलबदल चरम पर है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

35 से अधिक पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक तथा दलों में प्रमुख पद धारण करने वाले समर्थकों के साथ टिकट की संभावना वाली पार्टी की विचारधारा को रातोरात अपना चुके हैं। नामांकन के कुछ दिनों पहले दूसरे दलों से आने वाले पैराशूट नेताओं से सभी दलों के कार्यकर्ता हलकान हैं।

कार्यकर्ता जिन सीटों पर पांच वर्षों से टिकट की आस में मेहनत कर रहे थे, वह उम्मीद पर्व के शुरुआती दिनों में ही समाप्त होता देखकर सन्न हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में 42 पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री और विधायक पाला बदलकर अपनी पंसदीदा सीट प्राप्त करने में सफल रहे थे।

इसमें 22 अपनी जीत सुनिश्चित करने में भी सफल रहे। इस बार की रफ्तार को देखते हुए पिछला रिकार्ड टूटने का पूरी उम्मीद जताई जा रही है। दलबदल करने वालों में बाहुबल और धनबल वाले नेता अधिक हैं। यह दल को जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त करने के साथ अन्य सहयोग भी प्रदान करते हैं।

वीरचंद पटेल पथ के आसपास टिकट की आस में कई दिनों से डेरा डाले विनोद कुमार कहते हैं कि अपने नेता के समर्थन में आए हैं। यहां आने पर पता चला कि वहां से प्रतिद्वंदी दल के पूर्व सांसद की पत्नी का टिकट पक्का कर दिया गया है। ऐसी स्थिति में विकल्प ही क्या बचता है?
यह नहीं रुका तो समर्पित कार्यकर्ता दुर्लभ हो जाएंगे

राष्ट्रीय दल से जुडकर दो दशक तक राजनीति करने वाले जहानाबाद के निरंजन कुमार का कहना है कि 1996 से 2009 तक पार्टी को चौबीस घंटे दिया। 2010 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला, आश्वासन दिया गया कि 2015 में पक्का है।

उस समय भी नहीं दिया गया, कहा गया कि एमएलसी बना देंगे। दल और व्यवस्था से निष्ठा टूट गई। पार्टी से जुड़े हैं, लेकिन अब अपने बिजनेस पर ध्यान दे रहे हैं। ऐसे कार्यकर्ता आजकल पार्टी कार्यालयों के आसपास बहुमत में मिल जा रहे हैं, जो लंबे समय से पार्टी के लिए काम किया और जब टिकट की बारी आई तो दूसरे दल वाले जीत की उम्मीद बन गए।
दलों में नैतिकता की लोप को दर्शाता है

एडीआर के राज्य समन्वयक राजीव कुमार का कहना है कि चुनाव के दौरान दल-बदल सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। यह कुछ ऐसा ही है कि पांच साल जिस सिलेबस को पढ़ा, परीक्षा में कह दिया जाए उससे प्रश्न ही नहीं पूछा जाएगा।

इसका प्रतिकूल प्रभाव कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ना स्वभाविक है। इसके पीछे का दर्शन है कि दलों में नैतिकता और विचारधारा का लोप हो चुका है। लोकतंत्र में तो मतदाता ही निर्णायक होते हैं।

इस प्रवृति को खत्म करने की शक्ति भी मतदाताओं के पास ही है। नैतिकता, विचारधारा, समाजसेवा जैसे तत्व कमतर होंगे तो धनबल, बाहुबल आदि को बढ़ावा मिलना स्वभाविक है।
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